Wednesday 23 November 2011

संस्कार और दुख

कई जन्मों के संस्कार हमारी आत्मा में पड़े हुए हैं। यह तो हमारा सौभाग्य है, वे याद नहीं आते, जन्म-जन्मांतरों में हमने जो अनुभव किया, उसमें जो प्रगाढ़ संस्कार थे, जो मजबूत संस्कार थे, बस वही साथ रह जाते हैं। कुछ लोग कहते हैं, ये संस्कार मन में पड़े हुए हैं, तो कुछ कहते हैं, आत्मा में पड़े हुए हैं। उनका कोई उदबोधक नहीं मिलता, उनको कोई जगाने वाला नहीं मिलता। संसार में तमाम तरह के कर्म हैं, जो पूर्वजन्म में किए गए होंगे, जिनका स्मरण नहीं होता। जाने किस-किस योनी में जन्मे होंगे, गिद्ध रहे होंगे, कभी कुत्ता रहे होंगे, कभी बिल्ली रहे होंगे, कितने चूहों को दबा दिया होगा। लोग कहते हैं कि हमने कोई पाप नहीं किया, फिर हमारे जीवन में कष्ट क्यों गया। व्यवसाय में मंदी गई, तो कई लोग सोच रहे होंगे, हमने तो कुछ नहीं किया, फिर यह मंदी कैसे गई। जरा अपने पिछले जन्म का तो ध्यान करो, भले आदमी। बिल्ली रहे होगे, जाने कितने चूहों का गला दबा दिया होगा। कितने पाप हुए, कितनी अनुभूतियां हुईं गलत, जो मजबूत संस्कार थे, वही रह गए। संस्कार यदि मजबूत हों, तभी रहते हैं, वरना मिट जाते हैं।
तभी तो कृष्ण ने कहा, ‘अंत में मेरा स्मरण करो?’
अर्जुन ने कहा, ‘अंत में कैसे होगा?’
तो कृष्ण ने कहा, ‘तब तो निरंतर स्मरण करना होगा।
जो निरंतरता, प्रगाढ़ता, अनन्यता के साथ अत्यंत श्रद्धा के साथ स्मरण होता है, वही अंतिम काल में होता है। तो हम सभी लोग भगवद स्मरण करें और अपने जीवन को धन्य बनाएं। अपने संस्कारों को सशक्त करें। भगवद स्मरण के लिए सबसे बड़ी सामग्री है कि हम भगवान की सुनें, सत्संग करें, सत्संग से कई काम होते हैं, पाप नष्ट होते हैं। आप प्रवचन सुनते हैं, ईश्वर के प्रति श्रद्धा बढ़ती है, तो मन पवित्र होता है। लगता है, आज मैंने कुछ काम अच्छा किया।

Sunday 20 November 2011

भगवद स्मरण करें

भगवद स्मरण करें
लोग कहते हैं, हम मानवता धर्म को मानते हैं। यह कैसा धर्म है? वास्तव में भारत भूमि से जुड़ा मनुष्य जीवन सच्चा जीवन है, वैदिक सनातन धर्म से जुड़ा हुआ मनुष्य जीवन ही प्रशस्त है। सडक़ से दूर धान के खेत में कोई गाड़ी फंसी हो, तो पेट्रोलिंग वाले भी उसे कुछ नहीं बोलते, कोई मूर्ख आदमी होगा, जो गाड़ी को खेत में ले गया, फंसी रहने दो, जो गाड़ी नेशनल हाईवे पर हो, उसकी मदद की जा सकती है, लेकिन जो गाड़ी मार्ग पर ही नहीं है, उसकी मदद कौन करेगा? पश्चिम में जहां न औरत का ठिकाना, न बाप की चिंता, न भोजन की स्वच्छता न धन की पवित्रता, न दया, न संयम, यह कैसा मानवता धर्म है। भारत में तो वैदिक सनातन धर्म है, लोग सुबह उठते हैं, तो हथेली पर ही ईश्वर के दर्शन करते हैं। भगवान के नाम से सुबह की शुरुआत करता है। पृथ्वी पर पांव रखने से पहले उसे प्रणाम करते हैं, ईष्ट देव को प्रमाण करते हैं। पग-पग पर भगवद् स्मरण, यही सनातन जीवन है।
दु:ख क्यों होता है?