Monday 18 April 2016


 महाराज के जोधपुर चातुर्मास की कुछ शुरुआती ख़बरें







 महाराज के जोधपुर चातुर्मास की कुछ शुरुआती ख़बरें








कैसे दूर होगा भ्रष्टाचार?


सीबीआई जांच या कुछ लोगों को जेल भेजने से भ्रष्टाचार दूर नहीं होगा। यह भावना आनी चाहिए कि भ्रष्टाचार नहीं करके भी हम बड़े हो सकते हैं। जब तक यह विवेक जागृत नहीं होगा कि भ्रष्टाचार करने के बाद क्या कुफल होगा, तब तक भ्रष्टाचार नहीं रुकेगा। किसी भी अच्छी चीज को देखकर, सुदर्शन पुरुष या सुंदर स्त्री को देखकर मन जाता है, अच्छा मकान देखकर भी मन बहकता है, किसी का सम्मान हो रहा हो, तो अपने मन को भी लगता है कि अपना भी सम्मान होता। यह भावना स्वाभाविक है, लेकिन इस भावना को नियंत्रित अनुशासित करने के लिए विवेक जरूरी है। यदि हम चरित्र सम्बंधी भ्रष्टाचार की बात करें, तो स्त्री और पुरुष का परस्पर आकर्षण स्वाभाविक है, उनकी जो संरचना है, उसे भगवान ने ही बनाया है। पुरुष का आकर्षण महिला के लिए, महिला का आकर्षण पुरुषों के लिए स्वाभाविक है।
जब धर्मराज युधिष्ठिर की अंतिम परीक्षा चल रही थी, ऋषियों ने उनसे पूछा, 'आपकी मां सुन्दर है, कभी मन आपका जाता है या नहीं जाता। धर्मराज ने उत्तर दिया, जाता है, ईश्वर ने मन ही ऐसा बनाया है, किसी का अच्छा मकान हो, सम्मान हो, तो मन होता है कि अपना भी होता। इसमें कोई बुराई नहीं है। फिर मैं बोलता हूं कि धर्मशास्त्र में क्या लिखा है, मां हैं, ईश्वर हैं, इन्होंने ही जन्म दिया है, ये भोग के साधन नहीं हैं, मल-मूत्र धोया है, इनको दर्जा वह प्राप्त है, जो सीता और सावित्री को प्राप्त है। इनके चरण छूऊंगा तो कल्याण होगा। जब समझाते हैं, तब मन बोलता है - गलती हो गई, क्षमा कीजिये। 
यहां हम आए हैं, यह भवन बहुत अच्छा है, मन करे कि यह भवन हमारे मठ का ही हो जाता। किन्तु राम जी का यह अर्थ नहीं है कि आप जहां जाएं, वह भवन, भूमि, वस्तु आपकी हो जाए। इसलिए भ्रष्टाचार को रोकने के लिए विवेक आवश्यक है। मन कहां नहीं जाएगा, किसी भी वस्तु पर जाएगा, खाने की वस्तु पर जाएगा, स्त्री पर जाएगा, लेकिन उसको रोकने का जो तरीका लोकतंत्र में है, दंड है, संविधान है, उसकी पालना होनी चाहिए। लोकतांत्रिक भाव में वृद्धि होनी चाहिए। रामभाव का भी प्रचार होना चाहिए। लोगों में विवेक जागृ़त हो। संस्कार सदियों से चले आ रहे हैं, स्त्रियों में बहन को बहन, मां को मां, बेटी को बेटी, पुत्रवधू को पुत्रवधू मानने का संस्कार चला आ रहा है। किसी स्त्री को आप क्या मानेंगे, यह किसी संविधान में नहीं लिखा है, किन्तु मानने का संस्कार तो अनादि काल से चला आ रहा है। मां अपने बड़े बेटे को गले से लगा लेती है, वह भाव भिन्न होता है। मां गले लगाती है, तो लगता है, जैसे ईश्वर ने गले लगा लिया। कितना भी बड़ा बच्चा हो, मां को ध्यान ही नहीं है, वह बच्चे को गले लगा लेती है। स्त्री किसी दूसरे या अनजाने व्यक्ति को गले नहीं लगाती। यह संविधान की बात नहीं है, यह विज्ञान की बात भी नहीं है। जिन मूल्यों की अनादिकाल से स्थापना हुई थी कि मां मां है, बहन बहन है, बेटी बेटी है, उन्हीं मूल्यों व विवेक  के कारण भाव में बुराई नहीं पनपती, भाव अच्छाई पर बने रहते हैं। मैं बतलाना चाह रहा हूं कि तमाम जो बुराइयां पनप रही हैं, जाति, धर्म, समाज, परिवार में, सबके समाधान के लिए लोकतांत्रिक प्रयास होने ही चाहिए, यह गलत नहीं है। कानून हो, दंड हो, रोकने के उपाय हों, किन्तु पापों व भ्रष्टाचार के समूल नाश के लिए विवेक का होना परम आवश्यक है।
जगदगुरु के एक प्रवचन से