Thursday, 2 February 2012

क्या धर्म अफीम है? धर्म क्या है?

भाग - तीन
हम कभी नहीं चाहते कि मेरी कोई हिंसा कर दे, मेरी वाणी की, मेरी सुन्दरता की, मेरे बल की, मेरे धन की हिंसा कर दे। वेदों ने कहा, मा हिंस्यात् सर्वाणि भूतानि
। किसी भी जीव की हिंसा वर्जित है। कथा है कि एक ऋषि ने एक उडऩे वाले पतंगे के पंख पर कुछ गड़ा दिया, तो उनको सूली पर चढऩा पड़ा। एक मेरे भक्त हैं, मुझे सुना रहे थे, ‘एक बार मैंने बंदूक का निशाना किया, विनोद कर रहा था, ऊपर एक चिडिय़ा थी, दुर्भाग्य से उसकी आंख में गोली लगी, वह गिर गई, वह बची नहीं।’ वह भक्त मेरे बड़े शुभचिंतकों में हैं, मैं उन्हें कर्म का सिद्धांत बता रहा था, तो उन्होंने मुझसे कहा, ‘मैं आइंस्टीन हूं कर्म का, प्रयोगकर्ता। मुझे बेटा हुआ, उसकी दाहिनी आंख ठीक नहीं थी, जन्म से ही अंधा था, डॉक्टरों को दिखाया, उसका कोई इलाज नहीं था।’ तो तुरंत न्याय हो गया, इधर से लीजिए, उधर से दीजिए, कहीं और जाने का कोई मतलब ही नहीं है।
वेद जिसको कहता है कि करो, वह धर्म है या उस कर्म से उत्पन्न ऊर्जा धर्म है। धर्म की दो परिभाषाएं हैं, कुमारिल भट्ट और प्रभाकर जी की। वेदनिहित कर्म को धर्म कहते हैं, वेदनिहित कर्म से उत्पन्न कर्म से जो शक्ति उत्पन्न होती है, जो दिखाई नहीं पड़ती, उसे धर्म कहते हैं। वेदों में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो दुनिया के लोगों के लिए मान्य नहीं हो। उसके लिए मुझे दो बातें कहनी है। पहली बात, वह जो बनाई हुई पद्धति है, हमारा सनातन धर्म कहता है, अनादि सृष्टि का अनादि चिंतन हो और सबके लिए चिंतन हो। हरिजन के लिए भी चिंतन हो।
जो दुकानदार लोग दिन भर झूठ बोलते हैं, वे भी घर में अपनी पत्नी से यही उम्मीद करते हैं कि पत्नी सत्य बोले। जिसने दिन भर झूठ बोला है, यह सामान इतने का है, इसमें मार्जिन बिल्कुल नहीं है, लेकिन वह भी उम्मीद करता है कि उससे सच बोला जाए। सारे लोग ऐसा नहीं करते, लेकिन ज्यादातर लोग व्यवसाय में झूठ बोलते हैं, लेकिन वे भी चाहते हैं कि उनसे सच बोला जाए। हुआ न, सत्यम् वद्।
मेरे लिए तो अवसर ही नहीं आता है कि झूठ बोलूं। मेरा यह कहना है कि सत्य की किसको जरूरत नहीं है? उसके बाद परिष्कार हुआ। अहिंसा की सबको जरूरत है। दान की किसको जरूरत नहीं है? आप अपनी लेखनी की रोटी खा रहे हैं, हम दान की रोटी खा रहे हैं, लेकिन आपमें और हममें कोई अंतर नहीं है। दोनों को दान की जरूरत है। पत्नी कहीं से दान में आई है या कोई बहन है आपकी? यदि बहन से शादी कर लिए होते, तो आज यहां कोई बैठने देता क्या? दरवाजा बंद कर दिया जाता। माता-पिता ही बाहर कर देते, समाज में सब थू-थू करते। दान है, कन्यादान प्राप्त हुआ है, किसी ने अपनी बेटी आपको दान की। जो आपके घर में बैठकर आपके बच्चों को संभाल रही है, आपके घर को संभाल रही है, हर व्यक्ति दान से चलता है। यह संसार दान से चलता है।
आपके पिता जी का ऑक्सीजन है क्या? रतन टाटा भी ऑक्सीजन का बिल नहीं भरते हैं, अंबानी भी बिल नहीं भरते हैं? दान हुआ। आकाश हमारे पिताजी के द्वारा निर्मित है क्या? किसी ने दान किया है। हम ले रहे हैं, लेकिन लौटा नहीं रहे हैं। जिसने वायु, चंद्रमा, आकाश और सब कुछ दिया, जिसको हम सुप्रीम पावर कहते हैं, उसी ने वेद दिए। माना जाता है, वेद सृष्टि के साथ हमेशा चलते रहते हैं। वे ऐसे हैं, जिनका कभी नाश नहीं होता।
एक बार राधाकृष्णन से किसी ने विदेश, शायद अमरीका या जर्मनी, में पूछा था, ‘आप धर्म पर नहीं, सनातन धर्म पर बोलिए कि आपके धर्म में सनातनत्व कैसा है?’
राधाकृष्णन ने कहा, ‘अमरीका, यूरोप, जापान के लोग बतलाएं, मिस्र और रोम के लोग बतलाएं कि क्या आपके यहां सौ साल पुरानी कोई ऐसी चीज है, जिसे आप आज भी चला रहे हों?’
उन्हें जवाब मिला, ‘नहीं है।’
तो राधाकृष्णन ने जवाब दिया, ‘सनातनत्व यह है कि हमारे यहां राम जी की शादी जैसे और जिस विधिविधान से हुई थी, आज भी उसी तरह से हमारे यहां रिक्शा चलाने वाले की भी शादी होती है।’