समापन भाग
तुलसीदास जी ने लिखा है - अनसूया जी कह रही हैं -
एकइ धर्म एक ब्रत नेमा। कायँ बचन मन पति पद प्रेमा।।
तन, वचन और मन से पति के चरणों में प्रेम करना स्त्री के लिए बस एक ही धर्म, एक ही व्रत, एक ही नियम है। अनसूया जी ने पतिव्रता नारियों के चार स्वरूपों का वर्णन भी किया।
पतिव्रता का सबसे श्रेष्ठ स्वरूप इस प्रकार है - श्रेष्ठतम पतिव्रता के मन में एक दृढ़ विश्वास होता है, दृढ़ निश्चय होता है कि मेरा पति संसार में अकेला पुरुष है और बाकी सब नारियां हैं। मेरे लिए पूर्ण रूप से समर्पित रहने वाला वही है, जिसे माता-पिता ने दिया है, बाकी पुरुष सब नारियां। श्रेष्ठ पतिव्रता के लिए पति के अलावा कोई दूसरा जीव पुरुष होता ही नहीं है।
उत्तम के अस बस मन माहीं। सपनेहूँ आन पुरुष जग नाहीं।।
पति ही जगत का अकेला पुरुष है, दूसरा कोई पुरुष नहीं है। रामानंद संप्रदाय में लोग इस तरह की उपासना करते हैं, भगवान को पति और अपने को पत्नी मानकर। भगवान ही पति हैं और बाकी संसार के सभी जीव पत्नियां हैं। यह कांता भाव रामानंद संप्रदाय में प्रचलित है। दूसरा जब कोई पुरुष ही नहीं है मान्यता में, तो कहां से विकार आएगा?ï इससे उनका पतिव्रत सुदृढृ बनता है। यह सबसे अच्छा तरीका है कि स्त्री अपने पति को ही पुरुष माने। भटकाव को आधार देने की आवश्यकता ही नहीं है।
दूसरे प्रकार की पतिव्रता जो होती हैं - जिन्हें मध्यम पतिव्रता कहा अनसूया जी ने। ऐसी पतिव्रता स्त्रियां दूसरे पुरुषों को देखती तो हैं, लेकिन पुत्र, भाई और पिता के रूप में देखती हैं। छोटा है, तो पुत्र के रूप में, समान है, तो भाई के रूप में और बड़ा है, तो पिता के रूप में देखती हैं। ये भी पति के लिए संपूर्ण समर्पित रहती हैं। ऐसा भी अगर सोचा जाए, तो तमाम तरह की मर्यादाओं के उल्लंघन से बचा जा सकता है।
तीसरी पतिव्रता वो हैं - उन्हें अत्यंत नीच कहा गया है - जो स्त्रियां धर्म का विचार करके, कुल का विचार करके, दूसरे पुरुष पर मन नहीं लगाती हैं। इस तरह से जो स्त्रियां पतिव्रत धर्म का पालन करती हैं, वे निकृष्ट हैं।
चौथी पतिव्रता के लिए कहा - अवसर नहीं मिलने के कारण जो पतिव्रता बनी रहती हैं, भय के कारण पति के साथ जुड़ी रहती हैं, उनके विचारों में क्षमता नहीं है, उनके विचारों में ऊंचाई नहीं है। ऐसी स्त्रियां अधम पतिव्रता हैं।
इन चारों पतिव्रताओं का वर्णन अनसूया जी ने जानकी जी के लिए किया और आशीर्वाद दिया कि जो पति को ठगती हैं, दूसरे पति के साथ विहार करती हैं, उन्हें घोर नरक यात्रा होती है। क्षणभंगुर सुख के लिए जो अपने पति की उपेक्षा कर देती हैं, उन्हें बाद में सौ करोड़ जन्म तक नर्क की प्राप्ति होती है। कोई अन्य श्रम करने की कोई जरूरत नहीं है, नारी को पतिव्रत धर्म से परमपद की प्राप्ति हो सकती है।
उन्होंने कहा कि नारी का जीवन बहुत ही अपावन है, अपावन मतलब - पावन कहते हैं पवित्र को, नारियां तभी पावन अवस्था को प्राप्त करती हैं, जब पति की सेवा करती हैं। दुनिया का कोई भी संसाधन, विज्ञान स्त्री जीवन को उत्कर्ष देने वाला नहीं है, जितना पतिव्रत धर्म है।
नारी की सुंदरता के लिए, नारी के सुख के लिए, पति के सेवन के लिए पति के प्रति समर्पण अति महत्वपूर्ण है। यदि समर्पण होता है, तो परिवार ही नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र को मजबूती मिलती है। इस भाव में मानव को पहुंचना ही चाहिए।
जानकी जी को अंतिम आशीर्वाद देते हुए अनसूया जी ने कहा कि जो स्त्रियां तुम्हारे नाम का स्मरण करेंगी और पतिव्रत का पालन करेंगी, वो अपने पतिव्रत के पालन में सफल होंगी। स्त्रियों को यह बात बतलाई जानी चाहिए कि जानकी जी के नाम का स्मरण करें, क्योंकि आशीर्वाद है, उनके नाम से पतिव्रत धर्म के पालन में बल मिलेगा।
अनेक महिलाएं हैं, जिनका जीवन कोसते-कोसते बीत जाता है, उन्हें कुछ भी नहीं मिलता, लेकिन जो संपूर्ण जीवन अपने पति के लिए जीती हैं, ऐसी महिलाएं अगर सीता जी के नाम का स्मरण करती हैं, तो बहुत लाभ होता है। अनसूया जी ने हृदय की गहराई से आशीर्वाद दिया। पतिव्रत की सफलता ही परिवार की सफलता है, राज्य-राष्ट्र की सफलता है। पत्नी में यदि कोई खोटापन है, वह भी धीरे-धीरे दूर हो जाएगा। खोटेपन से जो हानि हो रही है, वो दूर हो जाएगी। यह वैदिक सनातन धर्म की अद्भुत स्थापना है। जीवन को सर्वविधि सुन्दर बनाने के लिए स्त्रियों के समर्पण से बढक़र कोई उपाय नहीं है।
मेरा आग्रह है कि अनसूया जी का नाम भी महिलाएं जपा करें। धन्य हैं अनसूया और धन्य हैं सीता, जिन्होंने हर परिस्थिति में समर्पित होकर अपने पति के साथ जीवन बिताया। वे अपने जीवन के लिए ही नहीं, पूरे संसार के लिए मानक हैं। तमाम तरह के जो उपकरण बने हैं दुनिया में, लोग जिन्हें शक्तिशाली मान रहे हैं, वो कभी समाज के दूषण को मिटाने वाले नहीं हैं, कितना भी ग्रहों पर लोग चले जाएं, संसाधन बढ़ जाएं, जीवन के संसाधन बढ़ जाएं, लेकिन जब तक पतिव्रता स्त्रियां पैदा नहीं होंगी, तब तक समाज का वह स्वरूप कभी नहीं आएगा, जिसकी कल्पना ऋषियों ने की थी। पतिव्रता की शक्ति बहुत बड़ी शक्ति है, इसको कोई माप नहीं सकता, यह शुभ ही शुभ को देने वाली है। जो हर तरह के श्रेष्ठ भावों को देने वाली है।
जगदंबा की जय हो, अनसूया माता की जय हो, सीता माता की जय हो... इससे केवल महिलाओं का सुधार नहीं होगा। संपूर्ण मानवता का उद्धार हो जाएगा।
जय श्री राम
तुलसीदास जी ने लिखा है - अनसूया जी कह रही हैं -
एकइ धर्म एक ब्रत नेमा। कायँ बचन मन पति पद प्रेमा।।
तन, वचन और मन से पति के चरणों में प्रेम करना स्त्री के लिए बस एक ही धर्म, एक ही व्रत, एक ही नियम है। अनसूया जी ने पतिव्रता नारियों के चार स्वरूपों का वर्णन भी किया।
पतिव्रता का सबसे श्रेष्ठ स्वरूप इस प्रकार है - श्रेष्ठतम पतिव्रता के मन में एक दृढ़ विश्वास होता है, दृढ़ निश्चय होता है कि मेरा पति संसार में अकेला पुरुष है और बाकी सब नारियां हैं। मेरे लिए पूर्ण रूप से समर्पित रहने वाला वही है, जिसे माता-पिता ने दिया है, बाकी पुरुष सब नारियां। श्रेष्ठ पतिव्रता के लिए पति के अलावा कोई दूसरा जीव पुरुष होता ही नहीं है।
उत्तम के अस बस मन माहीं। सपनेहूँ आन पुरुष जग नाहीं।।
पति ही जगत का अकेला पुरुष है, दूसरा कोई पुरुष नहीं है। रामानंद संप्रदाय में लोग इस तरह की उपासना करते हैं, भगवान को पति और अपने को पत्नी मानकर। भगवान ही पति हैं और बाकी संसार के सभी जीव पत्नियां हैं। यह कांता भाव रामानंद संप्रदाय में प्रचलित है। दूसरा जब कोई पुरुष ही नहीं है मान्यता में, तो कहां से विकार आएगा?ï इससे उनका पतिव्रत सुदृढृ बनता है। यह सबसे अच्छा तरीका है कि स्त्री अपने पति को ही पुरुष माने। भटकाव को आधार देने की आवश्यकता ही नहीं है।
दूसरे प्रकार की पतिव्रता जो होती हैं - जिन्हें मध्यम पतिव्रता कहा अनसूया जी ने। ऐसी पतिव्रता स्त्रियां दूसरे पुरुषों को देखती तो हैं, लेकिन पुत्र, भाई और पिता के रूप में देखती हैं। छोटा है, तो पुत्र के रूप में, समान है, तो भाई के रूप में और बड़ा है, तो पिता के रूप में देखती हैं। ये भी पति के लिए संपूर्ण समर्पित रहती हैं। ऐसा भी अगर सोचा जाए, तो तमाम तरह की मर्यादाओं के उल्लंघन से बचा जा सकता है।
तीसरी पतिव्रता वो हैं - उन्हें अत्यंत नीच कहा गया है - जो स्त्रियां धर्म का विचार करके, कुल का विचार करके, दूसरे पुरुष पर मन नहीं लगाती हैं। इस तरह से जो स्त्रियां पतिव्रत धर्म का पालन करती हैं, वे निकृष्ट हैं।
चौथी पतिव्रता के लिए कहा - अवसर नहीं मिलने के कारण जो पतिव्रता बनी रहती हैं, भय के कारण पति के साथ जुड़ी रहती हैं, उनके विचारों में क्षमता नहीं है, उनके विचारों में ऊंचाई नहीं है। ऐसी स्त्रियां अधम पतिव्रता हैं।
इन चारों पतिव्रताओं का वर्णन अनसूया जी ने जानकी जी के लिए किया और आशीर्वाद दिया कि जो पति को ठगती हैं, दूसरे पति के साथ विहार करती हैं, उन्हें घोर नरक यात्रा होती है। क्षणभंगुर सुख के लिए जो अपने पति की उपेक्षा कर देती हैं, उन्हें बाद में सौ करोड़ जन्म तक नर्क की प्राप्ति होती है। कोई अन्य श्रम करने की कोई जरूरत नहीं है, नारी को पतिव्रत धर्म से परमपद की प्राप्ति हो सकती है।
उन्होंने कहा कि नारी का जीवन बहुत ही अपावन है, अपावन मतलब - पावन कहते हैं पवित्र को, नारियां तभी पावन अवस्था को प्राप्त करती हैं, जब पति की सेवा करती हैं। दुनिया का कोई भी संसाधन, विज्ञान स्त्री जीवन को उत्कर्ष देने वाला नहीं है, जितना पतिव्रत धर्म है।
नारी की सुंदरता के लिए, नारी के सुख के लिए, पति के सेवन के लिए पति के प्रति समर्पण अति महत्वपूर्ण है। यदि समर्पण होता है, तो परिवार ही नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र को मजबूती मिलती है। इस भाव में मानव को पहुंचना ही चाहिए।
जानकी जी को अंतिम आशीर्वाद देते हुए अनसूया जी ने कहा कि जो स्त्रियां तुम्हारे नाम का स्मरण करेंगी और पतिव्रत का पालन करेंगी, वो अपने पतिव्रत के पालन में सफल होंगी। स्त्रियों को यह बात बतलाई जानी चाहिए कि जानकी जी के नाम का स्मरण करें, क्योंकि आशीर्वाद है, उनके नाम से पतिव्रत धर्म के पालन में बल मिलेगा।
अनेक महिलाएं हैं, जिनका जीवन कोसते-कोसते बीत जाता है, उन्हें कुछ भी नहीं मिलता, लेकिन जो संपूर्ण जीवन अपने पति के लिए जीती हैं, ऐसी महिलाएं अगर सीता जी के नाम का स्मरण करती हैं, तो बहुत लाभ होता है। अनसूया जी ने हृदय की गहराई से आशीर्वाद दिया। पतिव्रत की सफलता ही परिवार की सफलता है, राज्य-राष्ट्र की सफलता है। पत्नी में यदि कोई खोटापन है, वह भी धीरे-धीरे दूर हो जाएगा। खोटेपन से जो हानि हो रही है, वो दूर हो जाएगी। यह वैदिक सनातन धर्म की अद्भुत स्थापना है। जीवन को सर्वविधि सुन्दर बनाने के लिए स्त्रियों के समर्पण से बढक़र कोई उपाय नहीं है।
मेरा आग्रह है कि अनसूया जी का नाम भी महिलाएं जपा करें। धन्य हैं अनसूया और धन्य हैं सीता, जिन्होंने हर परिस्थिति में समर्पित होकर अपने पति के साथ जीवन बिताया। वे अपने जीवन के लिए ही नहीं, पूरे संसार के लिए मानक हैं। तमाम तरह के जो उपकरण बने हैं दुनिया में, लोग जिन्हें शक्तिशाली मान रहे हैं, वो कभी समाज के दूषण को मिटाने वाले नहीं हैं, कितना भी ग्रहों पर लोग चले जाएं, संसाधन बढ़ जाएं, जीवन के संसाधन बढ़ जाएं, लेकिन जब तक पतिव्रता स्त्रियां पैदा नहीं होंगी, तब तक समाज का वह स्वरूप कभी नहीं आएगा, जिसकी कल्पना ऋषियों ने की थी। पतिव्रता की शक्ति बहुत बड़ी शक्ति है, इसको कोई माप नहीं सकता, यह शुभ ही शुभ को देने वाली है। जो हर तरह के श्रेष्ठ भावों को देने वाली है।
जगदंबा की जय हो, अनसूया माता की जय हो, सीता माता की जय हो... इससे केवल महिलाओं का सुधार नहीं होगा। संपूर्ण मानवता का उद्धार हो जाएगा।
जय श्री राम
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