Thursday, 31 December 2020

ओम जय जगदीश हरे


ओम जय जगदीश हरे

ओम जय जगदीश, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का
सुख-सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति

दीनबंधु दुःखहर्ता, तुम रक्षक मेरे.
करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पडा तेरे

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा

ओम जय जगदीश, स्वामी जय जगदीश हरे

पं. श्रद्धाराम शर्मा (या श्रद्धाराम फिल्लौरी) (१८३७-२४ जून १८८१) लोकप्रिय आरती ओम जय जगदीश हरे के रचयिता हैं। इस आरती की रचना उन्होंने १८७० में की थी।

ऋषियों से दिशा लेनी है

हमें ऋषियों से गौरव लेना है, ज्ञान लेना है, दिशा लेनी है। रामजी को परिपूर्ण जीवन मिला। गृहस्थ जीवन बिना दान-त्याग के अधूरा होता है। हम कह सकते हैं कि विश्वामित्र जी ने ही जानकी जी से राम जी का विवाह करवाया। यह भी अद्भुत घटना है। जनकपुर में रामजी हैं, उस विवाह में वशिष्ठ जी भी पहुंचते हैं, वहां विश्वामित्र जी पहले से हैं, कहीं कोई संतुलन नहीं बिगड़ता है। दोनों एक दूसरे के लिए भरपूर सम्मान रखते हैं, एक दूसरे का प्रभाव बढ़ाते हुए रामराज्य को सशक्त करते हैं। यदि हम इन ऋषियों से कुछ भी सीखते हैं, तो हमारा खोया हुआ जगतगुरुत्व, खोया हुआ जो संसार का नेतृत्व है, जो खोया हुआ हमारा वैभव है, वह हमें अवश्य प्राप्त हो जाएगा।


 


 


 


 


 


 

गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से

गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से

जाहूं हम जनतीं गुरुजी हमार आएब रामा
चरण पखरतीं अपना हाथ से
गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से
जाहूं हम जनतीं गुरुजी हमार आएब रामा
आसन लगइतीं अपना हाथ से
गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से
जाहूं हम जनतीं गुरुजी हमार आएब रामा
भोगवा बनइतीं अपना हाथ से
गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से
जाहूं हम जनतीं गुरुजी हमार आएब रामा
पनियां छनइतीं अपना हाथ से
गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से
जाहूं हम जनतीं गुरुजी हमार आएब रामा
आरती उतरतीं अपना हाथ से
गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से।

जय जय सियाराम

जगद्गुरु