हमें ऋषियों से गौरव लेना है, ज्ञान लेना है, दिशा लेनी है। रामजी को परिपूर्ण जीवन मिला। गृहस्थ जीवन बिना दान-त्याग के अधूरा होता है। हम कह सकते हैं कि विश्वामित्र जी ने ही जानकी जी से राम जी का विवाह करवाया। यह भी अद्भुत घटना है। जनकपुर में रामजी हैं, उस विवाह में वशिष्ठ जी भी पहुंचते हैं, वहां विश्वामित्र जी पहले से हैं, कहीं कोई संतुलन नहीं बिगड़ता है। दोनों एक दूसरे के लिए भरपूर सम्मान रखते हैं, एक दूसरे का प्रभाव बढ़ाते हुए रामराज्य को सशक्त करते हैं। यदि हम इन ऋषियों से कुछ भी सीखते हैं, तो हमारा खोया हुआ जगतगुरुत्व, खोया हुआ जो संसार का नेतृत्व है, जो खोया हुआ हमारा वैभव है, वह हमें अवश्य प्राप्त हो जाएगा।
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