गुरुदेव महाराज के प्रवचन से---
जो व्यक्ति सम्पूर्ण
मानवता के लिए सिद्धांत पढ़ता है, समझता है,
उसको अनुभव करता है और अपने जीवन में उतारता है
दूसरों को देने के लिए, इसी का नाम ज्ञान
है, मैं बार बार दोहराता रहता
हूं आचार्य पतंजलि ने लिखा है, ज्ञान की चार
अवस्थाएं होती हैं। पहली अवस्था ज्ञान पढऩा, इसे परोक्ष ज्ञान बोलते हैं - यह ज्ञान की कच्ची अवस्था है।
दूसरी अवस्था, परिपक्व ज्ञान,
यानी अपरोक्ष ज्ञान - इसमें ज्ञान पक जाता है।
तीसरी अवस्था, उस ज्ञान को जीवन
में उतारना। फिर चौथी अवस्था, ज्ञान दूसरों को
पेश करना। यदि मैं संन्यासी ज्ञान की सम्पूर्ण अवस्था में जीवन जी रहा हूं,
तो मेरा सम्मान होना चाहिए। अध्यापक का सम्मान
तो अमरीका में भी किया जाता है, क्या आप नहीं
करेंगे? अध्यापक या गुरु का
सम्मान होना ही चाहिए, यह भी धर्म ही
है।
जय सियाराम
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