Tuesday, 20 March 2012

धर्म क्या है?

भाग - चार
धर्म का धीरे-धीरे समय के अनुसार परिष्कार हुआ। लोगों को विश्वास नहीं होगा, महात्मा गांधी ने अपने राजनीतिक जीवन में पांच बार झूठ बोला होगा। उस जमाने में जितने लोग थे, अनेक नेता थे, राजेन्द्र प्रसाद इत्यादि, ये लोग ७५ प्रतिशत सच बोलते थे।
मेरे एक पटेल व्यवसायी शिष्य हैं। मुझे अपने साथ ले गए, घर बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि आप देख रहे हैं, लोगों ने रोड तक घर बना लिए है, जबकि नियम है कि सडक़ से जगह छोडक़र घर बनाना चाहिए। मैंने जगह छोडक़र घर बनाया है। यही नियम है। जब मेरे घर पर उत्सव-कार्यक्रम होंगे, तो घर के सामने छोड़ी हुई जगह पर गाड़ी खड़ी करूंगा। यहां तो किसी के दुकान इत्यादि लगाने का तो सवाल ही नहीं उठता है। मूर्ख हैं वो लोग, जो राष्ट्र के नियम को पालन नहीं करते हैं। उनका हृदय कमजोर होगा, क्योंकि राष्ट्र का धर्म और राष्ट्रीयता को उन्होंने तोड़ा है। कल कानून लागू हुआ, तो उसके घर की दीवार टूट जाएगी। लेकिन मेरी जो दीवार नियम से बनी है, वह कभी नहीं टूटेगी। मेरा आत्मबल मजबूत है, क्योंकि मैंने सारे नियमों का पालन किया है। देश के संविधान के पालन से मजबूती बनती है। संविधान ही धर्म है और उससे भी बड़ा सबसे बड़ा एक संविधान है, उसे सनातन धर्म कहा गया है। उसका पालन होना चाहिए, यही धर्म है।
बतलाइए, संसार में किसका मन नहीं होगा कि सारी दुनिया की औरतें मेरी हो जाएं, लेकिन जब पत्नी पैसे मांगती होगी, कहती होगी बाजार चलो, तब पता चलता होगा कि अच्छा हुआ, एक ही पत्नी है। पत्नी के अलावा दूसरी स्त्रियां तभी तक ठीक लगेंगी, जब तक वे कुछ मांगें नहीं। मन ललचाता है। मानव स्वभाव है। इसीलिए पथभ्रष्ट होने से बचाने के लिए नियम-संयम और धर्म है।
स्त्री के अनेक रूप हैं - पत्नी, बहन, बेटी इत्यादि, लेकिन स्त्रित्व का जो परम परिष्कार है, वह मां के रूप में है। पत्नी का भी बहुत योगदान है, बहन का भी योगदान है, बहुत-सी बहनें हैं, जिन्होंने भाइयों के लिए क्या नहीं किया है। करोड़ों बहनों ने अपने भाइयों को जीवन दिया है। कुछ ही बहनें हैं, जो अपने भाई के लिए गलत हो जाती हैं। वरना बहनों की क्या बात है। कौन होगा बहन जैसा? कोई नहीं हो सकता, लेकिन इन सभी परिष्कारों को आगे बढ़ाते जाइए, कहां रुकेगा, मातृत्व में जाकर रुक जाएगा। इसके अनेक उदाहरण हैं।
कहा गया है, मातृ देवो भव:, आप बताइए क्लिंटन की भी मां होगी, सद्दाम हुसैन की भी मां होगी। सबके लिए मां की सेवा धर्म है। जिससे आप पैसे लेंगे, उसको लौटाएंगे नहीं क्या? दुनिया कितनी परिष्कृत होगी, लेकिन एक अपेक्षा तो करेगी ही कि हमने जो दिया है, उसे लौटाइए। कोई देन-लेन नहीं होगा, तो व्यवस्था कैसे चलेगी? लेन-देन से ही संसार चलता है।
पाकिस्तान का साथ अमरीका ने दिया, भारत का साथ रूस ने दिया। भारत की प्रतिबद्धता थी रूस के साथ। जहां कुछ भी होगा, हम एक दूसरे को सहयोग करेंगे। एक भी प्लांट अमरीका का भारत में नहीं था, बोकारो से लेकर अनेक प्लांट रूस के साथ सहयोग से बने। रूस ने विमान दिया, तकनीक दिया। भारत ने भी रूस का पूरा साथ दिया। यही उचित है।
धर्म का यह स्वरूप अगर नहीं मान्य होगा, तो राष्ट्र एक कदम नहीं बढ़ सकता। राष्ट्रीय स्तर पर इस भावना का परिपालन होगा, तभी देश बच सकेगा। रूस का साथ नहीं होता, तो क्या होता? इतना दिमाग था नेहरू जी में, मानना पड़ेगा, उस आदमी को, यदि अमरीका से मित्रता हो गई होती, जो रूस से हुई, मैं पत्रकार नहीं हूं, मैं राजनीतिक शास्त्र का आदमी नहीं हूं, मैं बहुत बड़ा विद्वान नहीं हूं, लेकिन दावे के साथ कहता हूं, अमरीका के साथ मित्रता हो गई होती, तो जैसा भारत हुआ, वैसा कभी न हो पाता। अमरीका बतलाए कि उसने अपने किस साथी को भारत जैसा बनाया है। किस देश का विकास किया? अमरीका ने अपने किसी साथी को अपने जैसा नहीं बनाया।
ठीक इसी तरह, जिस माता ने मल-मूत्र से लेकर पालन-पोषण के लिए सबकुछ किया। सी ए टी कैट, एम ए टी मैट। संवारना, नहलाना, धुलाना, खिलाना, सुरक्षा के लिए रात-रात पर जागना। मां की भला क्या तुलना है, इसलिए उसकी सेवा धर्म है।
क्रमश:

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