Wednesday, 4 April 2012

धर्म क्या है?

भाग - दस
विनोबा भावे कहते थे, जो मजदूर हैं, वही शेषनाग हैं, यदि ये नहीं होते, तो पृथ्वी को धारण कौन करता?
मेहतर माने महत्तर। महान काम जो करता है, उसको महत्तर बोलते हैं, वही बिगडक़र मेहतर हो गया। महत्त शब्द से तरप प्रत्यय करने पर महत्तर बनता है, दो में जो महान हो। अपना ही आदमी जब मल-मूत्र साफ करता है, तो बहुत मुश्किल से सुबह वाली बेला बीतती है, किन्तु जो दिन भर यही काम करता है, उसे महान का दर्जा होना ही चाहिए। किन्तु लोग उससे ही घृणा करने लगे। हमारे धर्म ने कभी यह नहीं कहा कि महत्तर से घृणा करो।
हमने कहा, तुम भी नहाकर आओ। वैसे बारह बजे तक जो झाड़ू लगाएगा, वह सुबह मंदिर कैसे आएगा, तो कहा गया, तुम शिखर का दर्शन करो, तो तुम्हें बराबरी का फल मिलेगा। इसमें क्या समस्या है? पति को एड्स हो जाए, तो पत्नी बोले कि मैं आपकी पत्नी हूं, लेकिन आप दूर रहेंगे, तो हमारा जीवन सुरक्षित होगा। क्या दिक्कत है, वह कैसे व्याभिचारिणी हुई? आचार का वर्गीकरण, विद्या का वर्गीकरण, धर्म का वर्गीकरण हो, किन्तु ईश्वर के आधार पर घृणा नहीं होनी चाहिए। यहां तो भगवान ने सबरी को भी स्वीकार किया। कुब्जा जिसके सभी अंग टेढ़े-मेढ़े थे, लेकिन उसमें भावना आसक्ति की थी कि भगवान एक बार आलिंगन कर लें, भगवान ने इच्छा पूरी की, गले लगा लिया, तो सारे अंग ठीक हो गए, कुब्जा सुन्दरी हो गई।
भगवान का जो अवतार है, ये साम्यवाद के प्रयोग की पराकाष्ठा है। ये जो कथाकार हैं, जो पाउडर लगातार मंच पर बैठकर कथा कर रहे हैं, ये तो गलत कर रहे हैं। ये तो उस बात को कह ही नहीं रहे हैं कि भगवान ने श्रेष्ठ मानवीय मूल्यों को, जो धर्म का श्रेष्ठ स्वरूप है, उसे बिछा दिया सडक़ों पर।
सभी के साथ खेलना, सभी के साथ दूध पीना, दूसरों के लिए चोरी करना। ईश्वर मक्खन भी चुराता है, तो सम वितरण करता है, अपने लिए नहीं, अपने भूखे साथियों के लिए चुराता है।
एक मित्र ने कहा कि साधु लोग भी अब दो नंबर का पैसा ले रहे हैं। साधु अगर सहज है और जो दो नंबर का पैसा है, उससे भंडारा कर दिया गरीब से ब्राह्मण तक सबको भोजन करा दिया, तो इससे बढिय़ा क्या हुआ। उस ब्राहण को दान दे, जो वेद पढऩे या पढ़ाने में लगा है, तो क्या बुरा है? आज साधुओं को बहुत सारी जो दक्षिणा मिल रही है, वह ऐसी ही मिल रही है। वे जीवित इसलिए हैं, क्योंकि वे उस पैसे का सदुपयोग करते हैं।
जो अपनी मानसिकता को मेंटेन करके या संभाल करके नहीं चलेगा, वह कदम-कदम पर शोकग्रस्त होगा। मानसिकता को मेंटन रखने का एकमात्र संसाधन धर्म है, जैसे टेंपरेचर को मेंटन रखना है। सादगी पूर्ण जीवन और सद् चिंतन नहीं होगा, तो कोई इस संसार में एक क्षण भी सुख से नहीं रह सकेगा। आप जिस अपेक्षा से आए हैं, उस अपेक्षा के अनुरूप नहीं हुआ, तो आप तुरंत शोकग्रस्त हो जाएंगे। अपमानित हो जाएंगे। अमरीकियों ने जो सोचकर बराक ओबामा को राष्ट्रपति बनाया था, वह यदि नहीं हुआ, तो बराक जी क्या करेंगे? मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री बने थे, इच्छाएं पूरी नहीं हुईं, तो वे क्या करेंगे? हर आदमी की अपनी सीमा और शक्ति है। ऐसी स्थिति में भी धर्म का पारिपालन होना चाहिए और लोग जान ही नहीं रहे हैं धर्म भोग को भी देता है और धन को भी देता है।
चोरी करके भी धर्म कमाया जाता है, धन कमाया जाता है, झूठ बोलकर भी धर्म कमाया जाता है। आज धार्मिक लोग भी ढोंग करके धन और भोग कमा रहे हैं। संन्यासी जीवन में धन की प्रधानता नहीं होनी चाहिए, धन आया है, तो उसका उपयोग समाज के लिए होना चाहिए। गृहस्थ जीवन में भोग प्रधान नहीं होना चाहिए, वह भी धर्म प्रधान होगा, तब उन्नति होगी, बच्चे ठीक होंगे, परिवार ठीक होगा। बहुत धन हो गया, धर्म नहीं हुआ, तो किडनी डैमेज होगी, जीवन का सबकुछ बिगड़ जाएगा। ऐसे ही नेताओं का है, धार्मिक आचरण नहीं रहेगा, तो आपने जो धन कमाया है, भोग कमाया है, वह आपको जेल पहुंचा देगा। बहुत से नेता जेल में सड़ रहे हैं। कई अधर्मी और पापी जेल में हैं, इसलिए धन जरूर आए, लेकिन उसका सही रास्ते से उपयोग हो, तो धन आपको और बढ़ा देगा, बड़ा बना देगा।
क्रमश:

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