सनातन धर्म के अनुसार इस सृष्टि को ईश्वर ने बनाया है, मनुष्य ने नहीं।
भगवान ने संसार को बनाने के बाद वेदों को बनाया और वेद ही इस सृष्टि का
संविधान हैं। जैसे हमारी शासन व्यवस्था संविधान से चलती है, उसी तरह यह
सम्पूर्ण संसार भी वेदों से संचालित होता है। ईश्वर ही इस सृष्टि का मुख्य
संचालक है। उसकी जगह और कोई नहीं ले सकता। यह सही है कि वेदों में तंत्र,
मंत्र, यज्ञ का भी वर्णन है। लेकिन इनको भी विशेष योग्यता प्राप्त लोगों को
ही कराने का अधिकार है। अगर किसी में इनको साधने की क्षमता नहीं है और वह
तंत्र-मंत्र करवा रहा है, तो अनर्थ निश्चित है। जैसे - जिसमें मिसाइल बनाने
की योग्यता है, वह मिसाइल बनाए, तो कोई दिक्कत नहीं है, अगर पटाखे बनाने
वाला मिसाइल बनाएगा, तो वह विनाशकारी ही सिद्ध होगा। हमारा धर्म कभी भी इस
तरह के तंत्र-मंत्र की इजाजत नहीं देता, लेकिन कुछ ढोंगी बाबा धर्म का चोला
ओढ़कर, जनता को मूर्ख बनाओ अभियान में लगे हुए हैं। ये ढोंगी तंत्र, मंत्र
के नाम पर जनता को मूर्ख बनाकर आम लोगों की गाढ़ी कमाई पर डाका डाल रहे
हैं। ऐसे अधर्मियों के चेहरे का नकाब अवश्य उतरना चाहिए। अगर कोई इलाज के
लिए डॉक्टर के बजाय झोलाछाप नीम-हकीमों के पास जाएगा, तो उसे मरने से कौन
रोक सकता है। धर्म की आड़ में गलत काम करने वाले ऐसे पोंगापंथियों से समाज
को सतर्क रहने की जरूरत है। बड़े धर्माचार्यों या धर्म की स्थापना में लगे
हुए मनीषियों, महर्षियों और संतों को इनके खिलाफ खड़ा होना चाहिए। लोगों को
मुखर और प्रखर होकर इनके खिलाफ अभियान छेडऩा चाहिए।
एक बार मेरे पास एक सज्जन आए, उन्होंने कहा कि चन्द्रास्वामी आपसे मिलना चाहते हैं। मैंने उनसे मिलने से मना कर दिया। जब रामालय ट्रस्ट का गठन हो रहा था, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव चाहते थे कि उस ट्रस्ट में चन्द्रास्वामी भी हों। मैंने राव से पूछा कि वे चन्द्रास्वामी को क्यों लेना चाहते हैं, जबकि उन्हें तो धर्म का क, ख, ग भी नहीं आता। इस तरह हमने उनको ट्रस्ट में घुसने ही नहीं दिया। हमारे देश में एक रविशंकर जी भी हैं, जो लोगों को जीने के तरीके बताने के नाम पर ही लूट में लगे हुए हैं। बाबा रामदेव योग के नाम पर जनता को लूटने में लगे हुए हैं। योग का जितना अवमूल्यन बाबा रामदेव ने किया, उतना किसी ने नहीं किया। एक दिन आसाराम बापू बनारस आए, लोगों को दीक्षा बेचने लगे। हमने खड़े होकर कहा कि जो व्यक्ति दीक्षा बेच रहा हो, वह साधु कैसे हो सकता है। दिक्कत यह है कि हम लोग मुखर और निर्भीक होकर उनके खिलाफ नहीं बोल पा रहे हैं। बड़े लोग उनसे लाभान्वित हो रहे हैं। दुर्भाग्य है कि राजनेता भी इन पाखंडियों को प्रश्रय प्रदान कर रहे हैं, जो गलत है। जो भी व्यक्ति आध्यात्मिक समाधान के लिए इनके पास जा रहे हैं, उन्हें पहले जानकारी लेनी चाहिए कि कौन सही है और कौन गलत। हमारे पूर्वजों ने भी इस बात को समझा कि पोगापंथी समाज को मूर्ख बना सकते हैं, इसलिए उन्होंने एक कहावत लिखी कि पानी पीओ छानकर और गुरु बनाओ जानकर। जब हम मटकी लेते हैं, तो अगल-बगल से बजाकर देखते हैं कि कहीं वह खराब न हो, उसमें कहीं छेद न हो। कोई भी धार्मिक गुरु यह नहीं कहता कि हम आपको मुकदमा जीतवा देंगे, नौकरी लगवा देंगे, असाध्य बीमारी दूर कर देंगे। अगर धर्म का हवाला देकर कोई ऐसा करने का दावा करता है, तो वह सिवाय पाखंडी के और कोई नहीं हो सकता। इनके पाखंड को रोकने का काम प्रशासन का कम और समाज का ज्यादा है। धर्माचार्यों को भी आगे आकर ऐसे पांखडियों पर हमला बोलना चाहिए। साधु समाज की भी यह जिम्मेदारी है कि ऐसे ठगों के बारे में लोगों को सावचेत करे। आश्चर्य है कि नए धर्माचार्य तो परामर्श शुल्क तक ले रहे हैं। इन ढोंगियों का समाज को सम्मान नहीं, बल्कि बहिष्कार करना चाहिए।
(राजस्थान पत्रिका व पत्रिका में २२ अप्रेल को मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित महाराज के विचार)
एक बार मेरे पास एक सज्जन आए, उन्होंने कहा कि चन्द्रास्वामी आपसे मिलना चाहते हैं। मैंने उनसे मिलने से मना कर दिया। जब रामालय ट्रस्ट का गठन हो रहा था, तो तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव चाहते थे कि उस ट्रस्ट में चन्द्रास्वामी भी हों। मैंने राव से पूछा कि वे चन्द्रास्वामी को क्यों लेना चाहते हैं, जबकि उन्हें तो धर्म का क, ख, ग भी नहीं आता। इस तरह हमने उनको ट्रस्ट में घुसने ही नहीं दिया। हमारे देश में एक रविशंकर जी भी हैं, जो लोगों को जीने के तरीके बताने के नाम पर ही लूट में लगे हुए हैं। बाबा रामदेव योग के नाम पर जनता को लूटने में लगे हुए हैं। योग का जितना अवमूल्यन बाबा रामदेव ने किया, उतना किसी ने नहीं किया। एक दिन आसाराम बापू बनारस आए, लोगों को दीक्षा बेचने लगे। हमने खड़े होकर कहा कि जो व्यक्ति दीक्षा बेच रहा हो, वह साधु कैसे हो सकता है। दिक्कत यह है कि हम लोग मुखर और निर्भीक होकर उनके खिलाफ नहीं बोल पा रहे हैं। बड़े लोग उनसे लाभान्वित हो रहे हैं। दुर्भाग्य है कि राजनेता भी इन पाखंडियों को प्रश्रय प्रदान कर रहे हैं, जो गलत है। जो भी व्यक्ति आध्यात्मिक समाधान के लिए इनके पास जा रहे हैं, उन्हें पहले जानकारी लेनी चाहिए कि कौन सही है और कौन गलत। हमारे पूर्वजों ने भी इस बात को समझा कि पोगापंथी समाज को मूर्ख बना सकते हैं, इसलिए उन्होंने एक कहावत लिखी कि पानी पीओ छानकर और गुरु बनाओ जानकर। जब हम मटकी लेते हैं, तो अगल-बगल से बजाकर देखते हैं कि कहीं वह खराब न हो, उसमें कहीं छेद न हो। कोई भी धार्मिक गुरु यह नहीं कहता कि हम आपको मुकदमा जीतवा देंगे, नौकरी लगवा देंगे, असाध्य बीमारी दूर कर देंगे। अगर धर्म का हवाला देकर कोई ऐसा करने का दावा करता है, तो वह सिवाय पाखंडी के और कोई नहीं हो सकता। इनके पाखंड को रोकने का काम प्रशासन का कम और समाज का ज्यादा है। धर्माचार्यों को भी आगे आकर ऐसे पांखडियों पर हमला बोलना चाहिए। साधु समाज की भी यह जिम्मेदारी है कि ऐसे ठगों के बारे में लोगों को सावचेत करे। आश्चर्य है कि नए धर्माचार्य तो परामर्श शुल्क तक ले रहे हैं। इन ढोंगियों का समाज को सम्मान नहीं, बल्कि बहिष्कार करना चाहिए।
(राजस्थान पत्रिका व पत्रिका में २२ अप्रेल को मुख्य पृष्ठ पर प्रकाशित महाराज के विचार)
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