Wednesday, 30 May 2012

समस्याओं का समाधान

आज देश दुनिया का अहम मुद्दा है, सबसे बड़ी समस्या व चिंता का विषय है कि चारों ओर आतंकवाद, चारों ओर भ्रष्टाचार है और सारी जो अच्छी व्यवस्थाएं हैं, टूट रही हैं। इसके लिए कौन-सा समाधान होना चाहिए, कौन-सा रास्ता निकालना चाहिए, इसकी चिंता में दुनिया व देश के सभी मनीषी व तत्वज्ञानी और सभी जो नायक हैं राष्ट्र के, संसार के, वे सब लगे हुए हैं। हमारे संसार में आतंकवाद के निदान के लिए और भ्रष्टाचार के निदान के लिए पहले भी अभियान चले हैं, तब भी सामाजिक मान्यताएं विखंडित हो रही थीं, टूट रही थीं, गलत ढंग से उनका निरूपण हो रहा था, तब समाधान केे लिए जो लोग लगे, उसमें सबसे बड़ा प्रयास भगवान श्रीराम का है। भगवान श्रीराम के समय में समस्त दुराचारों का सम्पादक शिरोमणि रावण उपस्थित था, जिसमें मानव या मानवता से विरुद्ध कोई पराकाष्ठा शेष नहीं थी। वह आतंकवादी भी, दुराचारी भी, भ्रष्टाचारी भी, सर्वस्व समाज का सर्वस्व दोहन करके वह लंका में था। आजकल कभी-कभी बलात्कार, अपहरण होता है, लेकिन लंका में तो बलात्कार, अपहरण का अड्डा ही था। नारियों की कोई सीमा नहीं, भोग की कोई सीमा नहीं, मांस-मदिरा की सीमा नहीं है, वैसे ही रावण के पास बल भी था, सेना भी थी, लेकिन कोई नियम-कानून नहीं, मन में आया, तो कहीं भी आक्रमण कर देना। रावण को देख राजा लोग ऐसे भागते थे, जैसे बाघ को देखकर दूसरे जीव जंगल में भागते हैं। ऐसे दुराचारी व मानवता के शोषक व्यक्ति के विरुद्ध रामजी ने जो अभियान चलाया, वह बहुत ही प्रेरणादायक है और ऐसा अभियान, जिसने अपने समूह से एक पैसा नहीं लिया। इतना बड़ा आतंकवाद निरोधक व भ्रष्टाचार निरोधक अभियान के लिए रामजी ने अयोध्या से एक व्यक्ति को भी नहीं बुलाया, एक पैसा नहीं मंगाया, लेकिन उस अभियान में उन्होंने लोगों को जोड़ा, वानरों को, भालुओं को, रिछों को, उपेक्षितों को। आज हम देखते हैं कि समाज के उपेक्षित-शोषित वर्ग को बरगलाकर आतंकवादी बनाया जा रहा है। जहां-जहां नक्सल हिंसा चल रही है, वहां-वहां गरीबी है, आदिवासी हैं, उन्हें बरगलाया जा रहा है कि आपका शोषण हो रहा है। ठीक इसी तरह से मुसलमानों को भडक़ाकर कि आपका शोषण कर रहे हैं हिन्दू लोग, आपको वहां का शासक होना चाहिए, गलत पढ़ाकर अशांति फैलाई जा रही है। लेकिन ऐसे ही उपेक्षितों को रामजी ने अपनी सेना में उस काल में शामिल किया था। जो लोग उस काल में आतंकवादी हो सकते थे, क्योंकि शोषित थे, जब उन्हें ही रामजी ने अपने साथ ले लिया, तो बड़ा अभियान छेडऩे में सफल रहे। आज राम जी के अभियान से लोगों को प्रेरणा लेनी चाहिए।
जहां से आतंकवाद और नक्सलवाद को ‘रॉ मेटेरियल’ मिल रहा है, उन इलाकों को अपने साथ लिया जाए और जो लोग आतंकवाद-नक्सलवाद को धन मुहैया करा रहे हैं, उन पर आक्रमण किया जाए, तो इससे उस समस्या का समाधान होगा, जो आज बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है।
अन्ना हजारे या रामदेव जी जैसे जो लोग भी इस सम्बन्ध में वर्तमान काल में चर्चित हैं, जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध अनशन कर रहे हैं, अभियान चला रहे हैं। इनके पास समाज से जुड़े हुए दो-चार-पांच लोग ही ऐसे हैं, जिनकी छवि अच्छी है। आज ऐसे आंदोलनों को सफल होने के लिए एक बहुत बड़े समुदाय की जरूरत है। जो लोग शोषित हों, जो साफ सुथरी छवि के हों, जिनका कहीं से भी कोई बड़ा स्वरूप नहीं रहा हो, आंदोलन में वे लोग आएं, तो यह अभियान आगे बढ़ेगा। ऐसे आगे नहीं बढ़ेगा, जैसे अभी बढ़ रहा है। इसमें रामदेव जी ने जो अभियान चलाया, उसमें बालकृष्ण और रामदेव, बस दोनों ही दिखाए पड़े, वे स्वयं ही धन के ऊपर आधिपत्य वाले हैं, उनका अपना जो धन संग्रह है, वह संदेह की परिधि में है, उसमें त्रुटियां हैं। दूसरी बात, बहुत कम ही दिनों में ये लोग किसी पार्टी विशेष से जुड़े नजर आने लगे, यह गलत हुआ। चुनाव प्रचार करने की जरूरत नहीं थी। उनकी अपनी बात बोलनी चाहिए थी कि धन की पवित्रता को लाना है, अर्जन की पवित्रता को लाना है, धन संग्रह की पवित्रता को लाना है। सम्पूर्ण देश की संपत्ति सम्पूर्ण देश की है, जितनी जरूरत है, उतनी ही हमको मिलनी चाहिए। हमें दूसरे की संपत्ति नहीं चाहिए। उपनिषदों में लिखा है, जो व्यक्ति अपने उपभोग से ज्यादा संपत्ति अर्जित करता है, वह चोर है। जीवनयापन के लिए जितनी संपत्ति चाहिए, मकान कपड़ा, भोजन, यदि इससे ज्यादा आपने संग्रह कर लिया, बहुत ज्यादा संग्रह कर लिया, तो आप चोर हैं, महाचोर हैं। यह धारणा नई नहीं है, यह उपनिषद काल से चली आ रही है, किन्तु उसके अभिप्राय को भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं ने भी नहीं पढ़ा होगा। अच्छे संघर्ष का अपना भारतीय विधान है, अपनी शैली है, लेकिन चिंता की बात है, आज जो लोग संघर्षरत हैं, वे भारतीय विधान को नहीं जानते। क्रमश:
(जगदगुरु का एक प्रवचन)

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