समापन भाग
सीता जी जरा भी निन्दित होने योग्य नहीं हैं। वाल्मीकि जी ने लिखा है। सर्वथा अनिन्दिता सीता। उनके जीवन में ऐसा कोई पक्ष नहीं है, जिसकी निन्दा हो सके। धरती से जन्म लेने से लेकर धरती में समाने तक उन्होंने सदा ही उच्चता का परिचय दिया। वह सर्वथा अनिन्दिता हैं।
तो जितने भी संदेह हो सकते हैं, संभावना हो सकती है, इन सबको जानकी जी ने उपस्थित किया और सबका समाधान हनुमान जी ने किया। समुद्र पार करके आएं हैं, तो जाएंगे भी, बड़ा स्वरूप दिखा दिया, तो यह भी सिद्ध हो गया कि उनमें क्षमता है। सभी दृष्टि से संतुष्ट होने के बाद जानकी जी ने कहा कि मैं पर-पुरुष का स्पर्श नहीं कर सकती।
भारतीय पतिव्रता नारी पर-पुरुष का स्पर्श नहीं करती है, यह बहुत बड़ा सबक है। रावण के यहां निवास किया, तमाम तरह के शास्त्रों के जानकार लोग हैं। जिन्होंने वाल्मीकि रामायण को नहीं पढ़ा है, वे संदेह में डूबते उतराते हैं, मन को गंदा करते हैं कि जानकी जी सामान्य जीवों में हैं, जिनके सम्बंध में उंगली उठाई जा सकती है। जो नारी चरित्र की चरम हैं, जो नारी शक्ति की चरम हैं, इस बात को इस प्रसंग ने सिद्ध कर दिया।
जब राम जी के दासों के दास भक्त शिरोमणि हनुमान जी जिनमें कोई त्रुटि नहीं है, अंगूठी देकर जिन्हें भेजा था, शंकाओं का निर्मूल करके, पतिव्रता नारी के स्वरूप को स्थापित किया और बताया कि नारी छवि को कैसे संसार में स्थापित करना चाहिए, उनका जीवन का कोई भी कोण, अयोध्या में रही हों, लंका में रही हों, जनकपुर में रही हों, पृथ्वी में विलीन होने तक, उनका सम्पूर्ण चरित्र अनिन्दित है, उस चरित्र से नारियों को प्रेरणा लेनी चाहिए। आज तमाम तरह की विकृतियां महिलाओं में आ गई हैं, बलात्कार हो रहे हैं, शोषण हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि नारी समाज के साथ अत्याचार हो रहा है, सम्पूर्ण दोष पुरुष को दिए जाते हैं, किन्तु नारी को स्वयं भी विवेकवान रहना चाहिए। नारी यदि सजग है, यदि वह छोटे-मोटे प्रलोभन के लिए बिगडऩे को तैयार नहीं है, ऐसी नारी को कोई बिगाड़ नहीं सकता, कहीं से वह अत्याचार का भाजन नहीं बनेगी। जो अत्याचारी हैं, दुराचारी हैं, जो कामलोलुप हैं, उनका शिकार नहीं होंगी। सम्पूर्ण समाज को नारी शक्ति का बल मिलेगा। जानकी जी का चरित्र आदर्श है।
जय सियाराम...
लोकसंत सेनाचार्य जी स्वामी अचलानन्द जी एवं अपने पट शिष्य स्वामी पदमनाभ जी के साथ जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज |
सीता जी जरा भी निन्दित होने योग्य नहीं हैं। वाल्मीकि जी ने लिखा है। सर्वथा अनिन्दिता सीता। उनके जीवन में ऐसा कोई पक्ष नहीं है, जिसकी निन्दा हो सके। धरती से जन्म लेने से लेकर धरती में समाने तक उन्होंने सदा ही उच्चता का परिचय दिया। वह सर्वथा अनिन्दिता हैं।
तो जितने भी संदेह हो सकते हैं, संभावना हो सकती है, इन सबको जानकी जी ने उपस्थित किया और सबका समाधान हनुमान जी ने किया। समुद्र पार करके आएं हैं, तो जाएंगे भी, बड़ा स्वरूप दिखा दिया, तो यह भी सिद्ध हो गया कि उनमें क्षमता है। सभी दृष्टि से संतुष्ट होने के बाद जानकी जी ने कहा कि मैं पर-पुरुष का स्पर्श नहीं कर सकती।
भारतीय पतिव्रता नारी पर-पुरुष का स्पर्श नहीं करती है, यह बहुत बड़ा सबक है। रावण के यहां निवास किया, तमाम तरह के शास्त्रों के जानकार लोग हैं। जिन्होंने वाल्मीकि रामायण को नहीं पढ़ा है, वे संदेह में डूबते उतराते हैं, मन को गंदा करते हैं कि जानकी जी सामान्य जीवों में हैं, जिनके सम्बंध में उंगली उठाई जा सकती है। जो नारी चरित्र की चरम हैं, जो नारी शक्ति की चरम हैं, इस बात को इस प्रसंग ने सिद्ध कर दिया।
जब राम जी के दासों के दास भक्त शिरोमणि हनुमान जी जिनमें कोई त्रुटि नहीं है, अंगूठी देकर जिन्हें भेजा था, शंकाओं का निर्मूल करके, पतिव्रता नारी के स्वरूप को स्थापित किया और बताया कि नारी छवि को कैसे संसार में स्थापित करना चाहिए, उनका जीवन का कोई भी कोण, अयोध्या में रही हों, लंका में रही हों, जनकपुर में रही हों, पृथ्वी में विलीन होने तक, उनका सम्पूर्ण चरित्र अनिन्दित है, उस चरित्र से नारियों को प्रेरणा लेनी चाहिए। आज तमाम तरह की विकृतियां महिलाओं में आ गई हैं, बलात्कार हो रहे हैं, शोषण हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि नारी समाज के साथ अत्याचार हो रहा है, सम्पूर्ण दोष पुरुष को दिए जाते हैं, किन्तु नारी को स्वयं भी विवेकवान रहना चाहिए। नारी यदि सजग है, यदि वह छोटे-मोटे प्रलोभन के लिए बिगडऩे को तैयार नहीं है, ऐसी नारी को कोई बिगाड़ नहीं सकता, कहीं से वह अत्याचार का भाजन नहीं बनेगी। जो अत्याचारी हैं, दुराचारी हैं, जो कामलोलुप हैं, उनका शिकार नहीं होंगी। सम्पूर्ण समाज को नारी शक्ति का बल मिलेगा। जानकी जी का चरित्र आदर्श है।
जय सियाराम...