( जगदगुरु महाराज के प्रवचन से )
वाल्मीकि रामायण में जानकी जी के साथ जो संवाद है हनुमान जी का, उसमें लिखा है कि जानकी जी की खोज के लिए हनुमान जी लंका गए, अशोक वाटिका में पहुंचे, वहां पहुंचकर जानकी जी का दर्शन किया। रावण भी उस समय जानकी जी के पास आया था, उसने भी अनेक प्रकार का प्रलोभन दिया था, जानकी जी को पीडि़त करने वाले व्यवहार को संपादित किया, उसको भी हनुमान जी ने देखा, उसके बाद जानकी जी के समक्ष प्रकट हुए, राम कथा को सुनाया, निशानी के रूप में जो अंगूठी लाए थे, वह दिया। तो एक लंबा संवाद जानकी जी के साथ हनुमान जी का है। जानकी जी ने खुशी भी प्रकट की और कष्ट भी जताया, आशंका भी जताई, ऐसा लग रहा था कि जीवन से निराश हो गई थीं, इतना विलंब कैसे हो गया राम जी को मेरे पास आने में, मेरी समस्या का समाधान करने में। कहीं भूल तो नहीं गए, कहीं और कोई अवरोध तो नहीं आ गया। मुझे दो महीने ही रहना है, रावण ने एक साल का समय दिया था, यदि एक साल में स्वीकार नहीं किया, तो राक्षस खा जाएंगे, दस महीने बीत चुके थे, केवल दो महीने बाकी थे। तो अनेक दृष्टि से जानकी जी सशंकित हैं, भयभीत हैं, एक तरह के ऊहापोह से जुड़ी हुई हैं, उनको लग रहा है कि किसी भी तरह से रावण मान नहीं रहा है, विभीषण ने समझाया, विभीषण की कन्या कला ने समझाया रावण को, किन्तु वह मान नहीं रहा है। बहुत निवेदन हुए, जानकी जी को छोड़ दीजिए, राम जी जैसे शक्ति संपन्न की पत्नी को आप ले आए हैं, छोड़ दीजिए, दूसरे लोगों ने भी जो रावण के हितचिंतक थे, उन्होंने भी जानकी जी को लौटाने के लिए कहा, किन्तु रावण किसी की बात को सुनने के लिए तैयार नहीं था, तो जानकी जी की बातों से ऐसा लग रहा था कि जानकी जी उत्साहहीन हो गई हैं, कहीं से जीने का इनको सहारा नहीं दिख रहा है।
ऐसी स्थिति में बहुत मार्मिक विचार हनुमान जी ने भी प्रस्तुत किये। कहा, 'यदि आपको लगता है कि राम जी को आने में विलंब हो रहा है, आपको यदि लग रहा हो कि वह समुद्र पार कर पाएंगे या नहीं, कहीं समय व्यतीत नहीं हो जाए, तो मैं आज ही आपको लेकर रामजी के पास चलता हूं। क्रमशः
वाल्मीकि रामायण में जानकी जी के साथ जो संवाद है हनुमान जी का, उसमें लिखा है कि जानकी जी की खोज के लिए हनुमान जी लंका गए, अशोक वाटिका में पहुंचे, वहां पहुंचकर जानकी जी का दर्शन किया। रावण भी उस समय जानकी जी के पास आया था, उसने भी अनेक प्रकार का प्रलोभन दिया था, जानकी जी को पीडि़त करने वाले व्यवहार को संपादित किया, उसको भी हनुमान जी ने देखा, उसके बाद जानकी जी के समक्ष प्रकट हुए, राम कथा को सुनाया, निशानी के रूप में जो अंगूठी लाए थे, वह दिया। तो एक लंबा संवाद जानकी जी के साथ हनुमान जी का है। जानकी जी ने खुशी भी प्रकट की और कष्ट भी जताया, आशंका भी जताई, ऐसा लग रहा था कि जीवन से निराश हो गई थीं, इतना विलंब कैसे हो गया राम जी को मेरे पास आने में, मेरी समस्या का समाधान करने में। कहीं भूल तो नहीं गए, कहीं और कोई अवरोध तो नहीं आ गया। मुझे दो महीने ही रहना है, रावण ने एक साल का समय दिया था, यदि एक साल में स्वीकार नहीं किया, तो राक्षस खा जाएंगे, दस महीने बीत चुके थे, केवल दो महीने बाकी थे। तो अनेक दृष्टि से जानकी जी सशंकित हैं, भयभीत हैं, एक तरह के ऊहापोह से जुड़ी हुई हैं, उनको लग रहा है कि किसी भी तरह से रावण मान नहीं रहा है, विभीषण ने समझाया, विभीषण की कन्या कला ने समझाया रावण को, किन्तु वह मान नहीं रहा है। बहुत निवेदन हुए, जानकी जी को छोड़ दीजिए, राम जी जैसे शक्ति संपन्न की पत्नी को आप ले आए हैं, छोड़ दीजिए, दूसरे लोगों ने भी जो रावण के हितचिंतक थे, उन्होंने भी जानकी जी को लौटाने के लिए कहा, किन्तु रावण किसी की बात को सुनने के लिए तैयार नहीं था, तो जानकी जी की बातों से ऐसा लग रहा था कि जानकी जी उत्साहहीन हो गई हैं, कहीं से जीने का इनको सहारा नहीं दिख रहा है।
ऐसी स्थिति में बहुत मार्मिक विचार हनुमान जी ने भी प्रस्तुत किये। कहा, 'यदि आपको लगता है कि राम जी को आने में विलंब हो रहा है, आपको यदि लग रहा हो कि वह समुद्र पार कर पाएंगे या नहीं, कहीं समय व्यतीत नहीं हो जाए, तो मैं आज ही आपको लेकर रामजी के पास चलता हूं। क्रमशः
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