भाग - ५
राम पूर्णत: आश्वस्त हैं कि सीता कहीं से लांछित नहीं हैं। लंका में पूर्ण विजय की प्राप्ति के बाद जो अग्निपरीक्षा हुई, तो संपूर्ण संसार के लोगों ने सुना-देखा कि सीता पूर्णत: पवित्र हैं। लेकिन जिनके पास अच्छी या शुद्ध दृष्टि नहीं थी, उन लोगों के मन में यह भावना रही होगी कि सीता जी रावण के यहां रही थीं। राम जी के मन में था कि मेरे सम्बंध में कोई अपवाद नहीं होना चाहिए। महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में सीता को छोडऩे के पीछे ठोस कारण हैं।
जब कोई गर्भवती होती है, तो इस अवस्था में अभिभावक पूछते हैं कि आपके मन में कोई इच्छा हो, तो बताना। गर्भावस्था में जो इच्छाएं होती हैं, उनका संतति पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।
राम जी ने भी सीता जी से पूछा, ‘आप मां बनने वाली हैं कोई भी मन में भावना हो, तो बतलाएं, मैं कोशिश करूंगा पूरी करने की।’
सीता जी ने कहा, ‘मुझे वन की याद बहुत आती है, कितना शांत वातावरण था, प्रकृति की सुंदरता आंखों से निकलती ही नहीं है, कहीं से वेद ध्वनि आ रही है, ऋषियों का आवागमन हो रहा है। लोग जप-तप में लगे हैं। उससे मन को बहुत प्रेरणा मिलती है। ऋषि जीवन स्वीकार करने के लिए प्रेरणा मिलती है। मैं चाहती हूं कि इस जीवन का लाभ लूं। जब बच्चों को आपके जैसा बनाना है, तो आप बहुत मदद नहीं कर पाएंगे। आप व्यस्त रहने वाले राजा हैं, तो बच्चों की जो देखभाल होनी चाहिए, वह नहीं हो पाएगी। आपने तो १४ वर्षों का संन्यासी जीवन बिताया, अयोध्या जी में बच्चे रहेंगे, तो उस जीवन से वंचित रह जाएंगे। उनमें राजसी भाव आ जाएगा, रघुवंशी भाव आ जाएगा, लेकिन ऋषित्व कैसे आएगा? मैं चाहती हूं कि ऋषियों के साथ उनकी छाया में अपने बच्चे बड़े हों। तपस्वी की तरह वे जिएं। ऐसे जीवन का प्रबंध आप कर सकें, तो करें।’
राम जी ने चर्चा की अपने मित्रों, भाइयों से, सभी लोग हिचक रहे थे। कितनी सुन्दर इच्छा है, बच्चे पहले ऋषि बनें, फिर राजा बनें। राम जी ने तपस्वी रहते हुए ही अनेक असुरों व रावण को मारा। कितना सम्मान दिया ऋषियों-महर्षियों को, अभी भी आपकी संपूर्ण जय-जयकार हो रही है।
राम जी ने लक्ष्मण जी से कहा, ‘भाभी को जंगल में छोडक़र आओ।’ इसके लिए जानकी जी ने ही प्रेरित किया था। संदेह को बहाना बनाकर। राम जी भी चाहते थे कि उनके बच्चे केवल महाराजा ही नहीं बनें, ऋषित्व को भी प्राप्त करें। उनमें दोनों साथ-साथ रहे, इसके फलस्वरूप जानकी जी सहर्ष वाल्मीकि जी के आश्रम आ गईं।
कहा गया है, जितना चिंतन बच्चों के लिए मां करती है, उतना कोई नहीं करता। माता की जिम्मेदारियां बड़ी होती हैं। लक्ष्मण जी ने वाल्मीकि जी के आश्रम के आसपास जानकी जी को छोड़ा था। वाल्मीकि जी रघुवंशियों से बहुत प्रभावित थे, उनका आत्मीय भाव था जानकी जी के लिए। उल्लेख मिलता है, सीता जी वनवास काल में राम जी के साथ पहले भी एक बार वाल्मीकि आश्रम जा चुकी थीं। उन्हें वहां बहुत अच्छा लगा था।
जो लोग इस बात को नहीं समझते हैं, वे आक्रोश प्रकट करते हैं कि राम जी ने जानकी जी को जंगल में छोड़ दिया। यह जानना चाहिए, वन जाने का जो क्रम हुआ, उसमें मूल प्रेरक, मूल भावना जानकी जी की रही और उन्होंने अपनी संतति के भले के लिए ऐसा किया था।
क्रमश:
राम पूर्णत: आश्वस्त हैं कि सीता कहीं से लांछित नहीं हैं। लंका में पूर्ण विजय की प्राप्ति के बाद जो अग्निपरीक्षा हुई, तो संपूर्ण संसार के लोगों ने सुना-देखा कि सीता पूर्णत: पवित्र हैं। लेकिन जिनके पास अच्छी या शुद्ध दृष्टि नहीं थी, उन लोगों के मन में यह भावना रही होगी कि सीता जी रावण के यहां रही थीं। राम जी के मन में था कि मेरे सम्बंध में कोई अपवाद नहीं होना चाहिए। महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में सीता को छोडऩे के पीछे ठोस कारण हैं।
जब कोई गर्भवती होती है, तो इस अवस्था में अभिभावक पूछते हैं कि आपके मन में कोई इच्छा हो, तो बताना। गर्भावस्था में जो इच्छाएं होती हैं, उनका संतति पर बड़ा प्रभाव पड़ता है।
राम जी ने भी सीता जी से पूछा, ‘आप मां बनने वाली हैं कोई भी मन में भावना हो, तो बतलाएं, मैं कोशिश करूंगा पूरी करने की।’
सीता जी ने कहा, ‘मुझे वन की याद बहुत आती है, कितना शांत वातावरण था, प्रकृति की सुंदरता आंखों से निकलती ही नहीं है, कहीं से वेद ध्वनि आ रही है, ऋषियों का आवागमन हो रहा है। लोग जप-तप में लगे हैं। उससे मन को बहुत प्रेरणा मिलती है। ऋषि जीवन स्वीकार करने के लिए प्रेरणा मिलती है। मैं चाहती हूं कि इस जीवन का लाभ लूं। जब बच्चों को आपके जैसा बनाना है, तो आप बहुत मदद नहीं कर पाएंगे। आप व्यस्त रहने वाले राजा हैं, तो बच्चों की जो देखभाल होनी चाहिए, वह नहीं हो पाएगी। आपने तो १४ वर्षों का संन्यासी जीवन बिताया, अयोध्या जी में बच्चे रहेंगे, तो उस जीवन से वंचित रह जाएंगे। उनमें राजसी भाव आ जाएगा, रघुवंशी भाव आ जाएगा, लेकिन ऋषित्व कैसे आएगा? मैं चाहती हूं कि ऋषियों के साथ उनकी छाया में अपने बच्चे बड़े हों। तपस्वी की तरह वे जिएं। ऐसे जीवन का प्रबंध आप कर सकें, तो करें।’
राम जी ने चर्चा की अपने मित्रों, भाइयों से, सभी लोग हिचक रहे थे। कितनी सुन्दर इच्छा है, बच्चे पहले ऋषि बनें, फिर राजा बनें। राम जी ने तपस्वी रहते हुए ही अनेक असुरों व रावण को मारा। कितना सम्मान दिया ऋषियों-महर्षियों को, अभी भी आपकी संपूर्ण जय-जयकार हो रही है।
राम जी ने लक्ष्मण जी से कहा, ‘भाभी को जंगल में छोडक़र आओ।’ इसके लिए जानकी जी ने ही प्रेरित किया था। संदेह को बहाना बनाकर। राम जी भी चाहते थे कि उनके बच्चे केवल महाराजा ही नहीं बनें, ऋषित्व को भी प्राप्त करें। उनमें दोनों साथ-साथ रहे, इसके फलस्वरूप जानकी जी सहर्ष वाल्मीकि जी के आश्रम आ गईं।
कहा गया है, जितना चिंतन बच्चों के लिए मां करती है, उतना कोई नहीं करता। माता की जिम्मेदारियां बड़ी होती हैं। लक्ष्मण जी ने वाल्मीकि जी के आश्रम के आसपास जानकी जी को छोड़ा था। वाल्मीकि जी रघुवंशियों से बहुत प्रभावित थे, उनका आत्मीय भाव था जानकी जी के लिए। उल्लेख मिलता है, सीता जी वनवास काल में राम जी के साथ पहले भी एक बार वाल्मीकि आश्रम जा चुकी थीं। उन्हें वहां बहुत अच्छा लगा था।
जो लोग इस बात को नहीं समझते हैं, वे आक्रोश प्रकट करते हैं कि राम जी ने जानकी जी को जंगल में छोड़ दिया। यह जानना चाहिए, वन जाने का जो क्रम हुआ, उसमें मूल प्रेरक, मूल भावना जानकी जी की रही और उन्होंने अपनी संतति के भले के लिए ऐसा किया था।
क्रमश:
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