Wednesday, 28 June 2017

ढोल गंवार शूद्र पशु नारि

भाग - ५
गोस्वामी जी के साहित्य में जो स्थापनाएं हैं, उनके विचारों के क्रम में ऐसे विचार भी प्रकट हुए, जिन्हें आपदात: देखने से लगता है कि वे संकीर्ण विचाराधारा के हैं, उनका विचार सांप्रदायिक है। वे संकीर्ण दायरे से प्रेरित होकर चल रहे हैं, यह भी उन पर लांछन लगता है।  
ढोल गंवार शूद्र पशु नारि सकल ताडऩा के अधिकारी
ढोल की ताडऩा में किसी को दिक्कत नहीं है। उसे जोर से लगाना ही पड़ता है, तभी आवाज निकलती है। जो आदमी विचारों से विकसित नहीं है, बिल्कुल ही कुछ नहीं समझता है, विवेकहीन है, शास्त्र का अध्ययन नहीं किया, इसके लिए उसे डराकर उसे विकास के लिए प्रेरित करना, इसमें विवाद नहीं है कि गंवार आदमी को रास्ते पर लाना चाहिए। 
छोटी आयु में ताडऩा की जरूरत पड़ती है, राम और कृष्ण को भी उनकी माता डराती थीं, कभी कान गरम करना भी होता होगा। अपने बच्चों को सही मार्ग पर रखने के लिए आज भी अभिभावक करते हैं। पशु को भी सत्संग सुनाकर आप श्रेष्ठ नहीं बना सकते। यह उचित नहीं है कि पशु से सबकुछ कराया जा सके, उसे अनुशासित रखने के लिए हम उसे डराते हैं, बांधते हैं, घेरते हैं। 
अब शूद्र की चर्चा। कितने शूद्रों के साथ राम की मुलाकात हुई, राम जी ने भी सबको गले लगाया, निषादराज, केवट शूद्र हैं। कोल-भील्ल, जो बड़े अपराधी हैं। उनको राम जी ने अपने प्रभाव से, स्नेह से उनमें परिवर्तन लाया। उन्हें किसी की पिटाई नहीं करनी पड़ी। न आंखें दिखानी पड़ीं, किसी तरह की ताडऩा की जरूरत नहीं पड़ी। जहां जो लोग नहीं मानते, जो लोग नहीं समझ पाते, उन्हें मारने के लिए राम जी ने धनुष उठाया। खर दूषण को मारा, राक्षस जाति के बहुत बिगड़े हुए लोगों को मारा। राम जी को कोई नहीं कहता कि वे शूद्र विरोधी हैं, क्योंकि असंख्य शूद्रों को उन्होंने श्रेष्ठ जीवन दिया। जहां औषधि काम नहीं करती, वहां डॉक्टर ऑपरेशन करते हैं। 
हम दवाई तभी तक लेते हैं, जब तक उसका असर दिखता है, लेकिन जब दवाई काम नहीं करे, तो ऑपरेशन करना ही पड़ेगा। जब यह लगता है कि किसी व्यक्ति को सुधारने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन प्रयास बार-बार नाकाम हो रहा है, तो उसका एनकाउंटर हो जाता है। बड़े अपराधी को भी अच्छे विचारों, कानूनों से सुधारने की भी कोशिश होती है। 
जो नहीं मानते, उनको सुधारने की वैदिक क्रिया मानी जाति है कि ताडऩा दी जाए। ढोलक को तभी पीटा जाता है, जब आवाज की जरूरत हो। ढोलक को भी कोई यों दिन-रात नहीं पीटा जाता। गलत लोगों को रास्ते पर लाने के लिए ताडऩा कई बार जरूरी हो जाती है। गलत लोगों के जीवन को सही जगह पहुंचाने के लिए ताडऩा अनुचित नहीं है। ऐसा नहीं है कि शूद्रों की पिटाई के लिए ही कहा गया है। पशु भी प्रिय होते हैं, लोग उनसे खूब प्यार करते हैं। उसे कोई यों ही नहीं ताडऩा देता। 
क्रमश:

No comments:

Post a Comment