समापन भाग
नारी के साथ भी ऐसा ही है। वह सुख देने वाली है, सेवा देने वाली है, परिवार को सही राह पर रखने वाली है, वह पुत्र को जन्म देती है, लेकिन अगर वह गलत दिशा में जा रही है, तो क्या किया जाए? यहां ताडऩा का मतलब पीटना नहीं है। आंख दिखाना भी ताडऩा है, सुधारने के लिए धमकाना भी ताडऩा ही है। कोई न माने, तो ताडऩा में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन यह मानना कि मारने के लिए ही लिखा गया है, ऐसा किसी परंपरा में नहीं है। कोई प्यार करता है, पीटना हुआ क्या, नारी पर ही घर को छोड़ दिया जाता है, बीमार पडऩे पर नारियों का भी उपचार कराया जाता है, कोई वहां अस्पताल में उन्हें पीटता है क्या?
अमरीका में २५ प्रतिशत से ज्यादा अश्वेत लोग जेलों में हैं, क्यों? वे अपराध करते हैं, इसलिए उनके साथ ऐसा करना पड़ा है, इसे कोई गलत कहेगा क्या? ऐसा नहीं है कि हर अश्वेत को जेल में डाल दिया जाता है।
देखना पड़ेगा, नारियों को जिस तरह से भारत में अनादिकाल से मान मिला, वैसा कहीं नहीं मिला। गोस्वामी जी ने जब रामायण शुरू किया, तो सबसे पहले नारी का ही नाम लिया। प्रथा तो सबसे पहले गणेश जी की पूजा की है, लेकिन गोस्वामी जी ने कहा कि मैं नारी का पक्षधर हूं, सीता जी के लिए ही जीवन जीता हूं। उनकी वंदना से शुरुआत हुई। महर्षि वाल्मीकि ने तो रामायण का नाम ही सीताचरित रखा है। यहां लक्ष्मी जी, दुर्गा जी, सरस्वती जी, सारी जो मुख्य शक्तियां वे देवियां हैं। अपने देश में जब लोकतंत्र आया, तो इंदिरा गांधी को लोगों ने सबसे बड़े पद पर पहुंचाकर आदर दिया, वर्षों तक पद पर रखा, यदि यह धारणा होती है कि नारी तो पीटने ही योग्य है, तो उन्हें कौन प्रधानमंत्री बनाता। सोनिया गांधी आज नारी हैं, लेकिन पूरी पार्टी के लोग उन्हें सिर पर लिए हुए हैं। ऐसा किस देश में है, कहां है। अमेरिका में ऐसा है क्या, चीन में इतने बड़े-बड़े नेता हुए, नारी कहां है, उनकी पत्नियां कहां हैं? कहां गईं? दुनिया में नारी को बड़े पद पर चढऩे नहीं दिया गया, लेकिन हमारे देश में ऐसा नहीं हुआ। धर्म के सबसे बड़े क्षेत्र उत्तर प्रदेश में भी मायावती जी को भी पूरा सम्मान दिया गया।
जहां जरूरत पड़े, वहां ब्राह्मण की भी ताडऩा होती है, क्षत्रिय की भी होती है, केवल शूद्र की ही नहीं होती। सुधार के लिए ही ताडऩा होनी चाहिए। यह कोई दूषित परंपरा नहीं है, यह कोई आलोचना नहीं है, यह कोई संकीर्णता से जुड़ी परंपरा नहीं है। यहां देखिए कि मंदोदरी का कितना सम्मान है, रावण को शिक्षा देती है। तारा का कितना सम्मान है। बाली को मारा। पूछा बाली ने कि आपने क्यों मारा?
उत्तर दिया, जब तुम्हें मालूम हो गया कि जब मैं पक्षधर हो गया सुग्रीव का, तब तुम्हें युद्ध नहीं करना चाहिए था। तुमने छोटे भाई की पत्नी को ही रख लिया। जिस पत्नी के साथ एक छत के नीचे तुम रहते हो, मोक्ष के अवलंब के रूप में उसे स्वीकार करते हो, जो घर की संरक्षिका है, जो घर का प्रकाश है, कितने तरह के अवसर तुम्हें उसके साथ सुख के मिलते हैं, तुमने उसकी सही बात को नहीं माना। इससे अधिक नारी का सम्मान क्या होगा?
इसलिए धर्म में स्त्रियों की बराबर की सहभागिता है। पुरुष जलता है हवन में तो वह दाहिने हाथ में हाथ लगाती है और पुण्य में आधी भागीदारी होती है। गोपियों को समाज ने जाने दिया, तभी तो भगवान के यहां गईं भक्ति की आचार्य हो गईं, तो यह सम्मान है कि जाने दिया, माताओं का कितना बड़ा सम्मान है।
जब राम जी जंगल में जाने लगे, तो उनकी 350 माताएं थीं। राम जी ने कहा कि जैसे मैंने कौसल्या, कैकयी, सुमित्रा को सम्मान दिया, आपके लिए भी वैसा किया है, आपको पिता दशरथ जी का पत्नी माना, इसलिए माना, क्योंकि जो हमारे पिता के लिए सम्मान स्नेह प्रदर्शित करता है, जो यह कहता है कि मेरा जीवन इनको सुख देने के लिए है, उसे मैं सम्मान अवश्य दूंगा। कोई भूल हुई हो, तो क्षमा करना, पुन: मैं १४ वर्ष बाद आपकी सेवा में हाजिर हो जाऊंगा।
वाल्मीकि रामायण में यह लिखा है।
ताडऩा के बारे गोस्वामी जी ने लिखा, केवल सुधार के लिए। ऐसा उदाहरण होना चाहिए कि जिससे दूसरों को समझ में आए। उनमें संकीर्णता का कोई भाव नहीं है। सभी लोगों को वे समान भाव से जोड़ते हैं। राम जी निषादराज को गले लगा रहे हैं। सारी दुनिया को सीखना चाहिए कि यह कोई संकीर्ण परंपरा नहीं है। हमारी परंपरा हमारी शिक्षाएं उज्ज्वल हैं। सनातन धर्म आकाश के सामान उदार है, सभी के लिए है, सबके लिए उसमें सम्मान की भावना है, विकास के लिए प्रेरणा है। सभी तरह की शक्ति देने का उदार भाव है। गोस्वामी जी को सही भाव से देखते हुए उनकी बातों को समझना चाहिए और तभी हमें सुख मिलेगा।
जयसियाराम
नारी के साथ भी ऐसा ही है। वह सुख देने वाली है, सेवा देने वाली है, परिवार को सही राह पर रखने वाली है, वह पुत्र को जन्म देती है, लेकिन अगर वह गलत दिशा में जा रही है, तो क्या किया जाए? यहां ताडऩा का मतलब पीटना नहीं है। आंख दिखाना भी ताडऩा है, सुधारने के लिए धमकाना भी ताडऩा ही है। कोई न माने, तो ताडऩा में कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन यह मानना कि मारने के लिए ही लिखा गया है, ऐसा किसी परंपरा में नहीं है। कोई प्यार करता है, पीटना हुआ क्या, नारी पर ही घर को छोड़ दिया जाता है, बीमार पडऩे पर नारियों का भी उपचार कराया जाता है, कोई वहां अस्पताल में उन्हें पीटता है क्या?
अमरीका में २५ प्रतिशत से ज्यादा अश्वेत लोग जेलों में हैं, क्यों? वे अपराध करते हैं, इसलिए उनके साथ ऐसा करना पड़ा है, इसे कोई गलत कहेगा क्या? ऐसा नहीं है कि हर अश्वेत को जेल में डाल दिया जाता है।
देखना पड़ेगा, नारियों को जिस तरह से भारत में अनादिकाल से मान मिला, वैसा कहीं नहीं मिला। गोस्वामी जी ने जब रामायण शुरू किया, तो सबसे पहले नारी का ही नाम लिया। प्रथा तो सबसे पहले गणेश जी की पूजा की है, लेकिन गोस्वामी जी ने कहा कि मैं नारी का पक्षधर हूं, सीता जी के लिए ही जीवन जीता हूं। उनकी वंदना से शुरुआत हुई। महर्षि वाल्मीकि ने तो रामायण का नाम ही सीताचरित रखा है। यहां लक्ष्मी जी, दुर्गा जी, सरस्वती जी, सारी जो मुख्य शक्तियां वे देवियां हैं। अपने देश में जब लोकतंत्र आया, तो इंदिरा गांधी को लोगों ने सबसे बड़े पद पर पहुंचाकर आदर दिया, वर्षों तक पद पर रखा, यदि यह धारणा होती है कि नारी तो पीटने ही योग्य है, तो उन्हें कौन प्रधानमंत्री बनाता। सोनिया गांधी आज नारी हैं, लेकिन पूरी पार्टी के लोग उन्हें सिर पर लिए हुए हैं। ऐसा किस देश में है, कहां है। अमेरिका में ऐसा है क्या, चीन में इतने बड़े-बड़े नेता हुए, नारी कहां है, उनकी पत्नियां कहां हैं? कहां गईं? दुनिया में नारी को बड़े पद पर चढऩे नहीं दिया गया, लेकिन हमारे देश में ऐसा नहीं हुआ। धर्म के सबसे बड़े क्षेत्र उत्तर प्रदेश में भी मायावती जी को भी पूरा सम्मान दिया गया।
जहां जरूरत पड़े, वहां ब्राह्मण की भी ताडऩा होती है, क्षत्रिय की भी होती है, केवल शूद्र की ही नहीं होती। सुधार के लिए ही ताडऩा होनी चाहिए। यह कोई दूषित परंपरा नहीं है, यह कोई आलोचना नहीं है, यह कोई संकीर्णता से जुड़ी परंपरा नहीं है। यहां देखिए कि मंदोदरी का कितना सम्मान है, रावण को शिक्षा देती है। तारा का कितना सम्मान है। बाली को मारा। पूछा बाली ने कि आपने क्यों मारा?
उत्तर दिया, जब तुम्हें मालूम हो गया कि जब मैं पक्षधर हो गया सुग्रीव का, तब तुम्हें युद्ध नहीं करना चाहिए था। तुमने छोटे भाई की पत्नी को ही रख लिया। जिस पत्नी के साथ एक छत के नीचे तुम रहते हो, मोक्ष के अवलंब के रूप में उसे स्वीकार करते हो, जो घर की संरक्षिका है, जो घर का प्रकाश है, कितने तरह के अवसर तुम्हें उसके साथ सुख के मिलते हैं, तुमने उसकी सही बात को नहीं माना। इससे अधिक नारी का सम्मान क्या होगा?
इसलिए धर्म में स्त्रियों की बराबर की सहभागिता है। पुरुष जलता है हवन में तो वह दाहिने हाथ में हाथ लगाती है और पुण्य में आधी भागीदारी होती है। गोपियों को समाज ने जाने दिया, तभी तो भगवान के यहां गईं भक्ति की आचार्य हो गईं, तो यह सम्मान है कि जाने दिया, माताओं का कितना बड़ा सम्मान है।
जब राम जी जंगल में जाने लगे, तो उनकी 350 माताएं थीं। राम जी ने कहा कि जैसे मैंने कौसल्या, कैकयी, सुमित्रा को सम्मान दिया, आपके लिए भी वैसा किया है, आपको पिता दशरथ जी का पत्नी माना, इसलिए माना, क्योंकि जो हमारे पिता के लिए सम्मान स्नेह प्रदर्शित करता है, जो यह कहता है कि मेरा जीवन इनको सुख देने के लिए है, उसे मैं सम्मान अवश्य दूंगा। कोई भूल हुई हो, तो क्षमा करना, पुन: मैं १४ वर्ष बाद आपकी सेवा में हाजिर हो जाऊंगा।
वाल्मीकि रामायण में यह लिखा है।
ताडऩा के बारे गोस्वामी जी ने लिखा, केवल सुधार के लिए। ऐसा उदाहरण होना चाहिए कि जिससे दूसरों को समझ में आए। उनमें संकीर्णता का कोई भाव नहीं है। सभी लोगों को वे समान भाव से जोड़ते हैं। राम जी निषादराज को गले लगा रहे हैं। सारी दुनिया को सीखना चाहिए कि यह कोई संकीर्ण परंपरा नहीं है। हमारी परंपरा हमारी शिक्षाएं उज्ज्वल हैं। सनातन धर्म आकाश के सामान उदार है, सभी के लिए है, सबके लिए उसमें सम्मान की भावना है, विकास के लिए प्रेरणा है। सभी तरह की शक्ति देने का उदार भाव है। गोस्वामी जी को सही भाव से देखते हुए उनकी बातों को समझना चाहिए और तभी हमें सुख मिलेगा।
जयसियाराम
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