Sunday, 5 May 2019

प्रह्लाद ने प्रभु से क्या मांगा

भाग - 6
अंत में इस व्यवहार का संसार में लाखों लोगों ने अनुकरण करके जीवन को धन्य बनाया। प्रह्लाद जी अकेले नहीं हुए, प्रह्लाद जी के जैसे वैदिक सनातन धर्म में असंख्य महान लोग हुए, जिन्होंने पूरा जीवन ईश्वर को समर्पित कर दिया, जिन्होंने जीवन के परम लाभ को प्राप्त किया और ईश्वर जैसा ही हो गए। संसार में न जाने कितने लोग मिट गए, कितने लोग लुट गए, कितने लोग असंख्य भोग के साधनों से जुड़ गए, कितने लोगों ने खूब दान किया, भामाशाह जैसे असंख्य लोग हुए, किन्तु मोक्ष की प्राप्ति के लिए जिन्होंने व्यवहार किया और जीवन को धन्य बनाया, वे ईश्वर जैसे हो गए। इसी परंपरा में प्रह्लाद हैं। 
जैसे सभी नदियों का गंतव्य समुद्र है, वैसे ही मनुष्य को भी जानना चाहिए कि उसका परम गंतव्य ईश्वर है। गुरुओं के बताए रास्ते पर चलकर ज्ञान प्राप्त करके उच्च स्तर पर पहुंचे। हिरण्यकश्यप ने बहुत कोशिश की कि प्रह्लाद जी अपने विश्वास से हट जाएं, किन्तु प्रह्लाद जी नहीं हटे। जो विपरीत परिस्थितियां हैं, जो विपरीत मन वाले लोग हैं, वे सही काम करने वालों को मुश्किल में डालते हैं। ईष्र्या, द्वेष में रहकर लोग अच्छे लोगों को परेशान करते हैं, किन्तु अच्छा रास्ता छोडऩा नहीं चाहिए, अडिग रहना चाहिए। उसी से विजय मिलती है। जीवन सही है, तो उसे धन्य बनाएगा, सुयश देगा। लोक भी देगा और परलोक भी देगा। गलत नीति से चलने वालों का एक बड़ा उदाहरण हिरण्यकश्यप हैं। भोग के लिए अहंकार के लिए जीवन जी रहे हैं। इन्हें कोई मतलब नहीं है ईश्वर से, धर्म से, सदाचार से, मर्यादा से। बेटा, पत्नी से कोई मतलब नहीं है। 
हिरण्यकश्यप का पथ गर्त में ले जाने का पथ है। सर्वश्रेष्ठ जीवन को परम लांछित करने का महापथ है। प्रह्लाद जी का महापथ है, ईश्वर का पथ है। लिखा है भागवत में कि प्रह्लाद जी को मारने के लिए हिरण्यकश्यप ने बहुत प्रयास किए। कुचलवाने का प्रयास हुआ, पहाड़ से फेंकवाने का प्रयास हुआ, होलिका की गोद में बैठाकर जलाने का षड्यंत्र हुआ, किन्तु प्रह्लाद के विरुद्ध किसी गलत कार्य में हिरण्यकश्यप सफल नहीं हो पाए। 
एक दिन हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को चुनौती देते हुए कहा, तुम्हारा ईश्वर व्यापक है, तो इस जलते-तपते खंभे में प्रकट हो जाए। 
ईश्वर की व्यापकता का अगर अहसास हो जाए, तो जीवन में आमूलचूल परिवर्तन हो जाए, किन्तु ऐसा नहीं होता है। यह तो मन में आता है कि कहां के पार्षद हैं, कहां के विधायक हैं, यह तो अहसास होता है, छोटा जो स्वरूप है, किन्तु यह बात मन में नहीं आती कि ईश्वर व्यापक है। कण-कण में है। बहुत बड़ा सिद्धांत है। घड़े की मिट्टी व्यापक है। कारण व्यापक होता है। वैसे ही संसार में ईश्वर व्यापक है, क्योंकि ईश्वर ही संसार हो गया है। 
हिरण्यकश्यप को ईश्वर की सर्वव्यापकता पर विश्वास नहीं है। यह विश्वास तभी आएगा, जब आदमी गुरु के सान्निध्य में जाकर वेदों, स्मृतियों को पढ़ेगा। प्रह्लाद जी की अग्नि परीक्षा हो रही है, तो भगवान खंभे से ही प्रकट हो गए। नरसिंह स्वरूप प्रकट हो गया। धरती कांप गई। विशाल नर और सिंह का संधि स्वरूप - विकराल रूप प्रकट हुआ। सृष्टि संहारक स्वरूप उत्पन्न हो गया। भगवान ने सबसे पहले हिरण्यकश्यप को उठाया और उसका अंत किया। 
ईश्वर का ऐसा स्वरूप देख लोग घबरा गए, लगा कि सबका विनाश हो जाएगा। सभी ने वंदना की, किन्तु भगवान शांत नहीं हो रहे थे। सभी ने फिर प्रह्लाद जी से कहा कि प्रभु इस रूप में आपके लिए ही प्रकट हुए हैं, आप प्रार्थना करें। यह नियम है कि जो व्यक्ति किसी से नहीं मान रहा है, उसका जो सबसे अधिक प्रिय है, उससे मनवाने की कोशिश की गई। प्रह्लाद जी भगवान के परम लाड़ले हैं। परम प्रेरणास्पद हैं भगवान। सब लोगों ने कहा, तो प्रह्लाद जी ने प्रार्थना की। बड़ी लंबी प्रार्थना की। भक्ति की महिमा को विस्तार से बतलाया, भगवान की परम उदारता को बतलाया। जाति, रंग, नस्ल का कोई बंधन नहीं। चांडाल भी भक्ति कर रहा है, तो वह ब्राह्मण से भी श्रेष्ठ है। उसमें लिखा है कि ब्राह्मण अपने पुण्य से ब्राह्मण हुआ, यह शास्त्र-सम्मत है, किन्तु यदि उसने सर्वश्रेष्ठ ब्राह्मण जीवन को ईश्वर की सेवा में नहीं लगाया, प्रेम और वंदना में नहीं लगाया, तो उससे तो चांडाल भी श्रेष्ठ है। प्रह्लाद जी ने नरसिंह प्रभु से प्रार्थना करते हुए बहुत लाड़-प्यार किया। प्रह्लाद जी ने खूब सहलाया प्रभु को, तो वे शांत हुए। खुश हुए, कहा कि कुछ मांगो।
क्रमश:

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