।। श्री श्री सीताराम चन्द्राभ्यां नमः।।
।। श्री रामानन्दाभ्यां नमः।।
काशी में पंचगंगा घाट पर जो हमारी अव्दैत आस्था का प्रतीक हैं अपने में कृष्ण भक्ति से स्नातयमना तथा चेतना की सरस्वती को समेटे हुए पश्चातापकी धूतपापा और पराअभ्युदय की किरणा की धाराओं से मिलकर एक महासंगम का निर्माण करती हैं।
इस पावन तट पर स्थित ॰ श्रीमठ ॰ रामानन्द सम्प्रदाय की मूल आर्चाय पीठ है तथा मध्ययुगी भक्ति आन्दोल न की सगुण और निर्गुण दोनों ही धाराओं की गंगोत्री है।रामभक्ति की लोक चेतना के प्रवर्तक जगतगुरू परमाचार्य स्वामी रामानन्द जी ने ईश्वर साक्षात कार की दिशा में ज्ञानरूपी राजपथ के सामानान्तर भेद रहित व जन सुलभ भक्ति व प्रपत्ति का जन पथ प्रशस्त कर भारत में आध्यात्मिक गणतंत्र की भावभूमि को आधार प्रदान किया।
जाति पांति पूछै नहिं कोई,हरि को भजै सो हरि का होई,
जैसे चमत्कारिक उदघोष के साथ स्वामी रामानन्द जी ने ब्राम्हण अनन्तानन्द व नरहर्यानन्द ही नहीं वरन जुलाहा कबीर, र्चमकार रैदास, क्षत्रिय पीपा,जाट धन्ना, नाई सेन और यहां तक कि उपेक्षित नारी समाज की पदमावती व सुरसरी तक को न केवल दीक्षा दी बल्कि उन्हें अपने अपने स्वतंत्र मतो का आचार्य भीबना दियाफलतः कठिन सक्रमण काल में संस्कृति की रक्षा हुई और समाज एवं राष्ट्र में विघटन का निषेध हुआ।
वर्तमान पीठाधीश्वर, परमाचार्यके उत्तर साधक
'' जगदॄगुरू रामानन्दाचार्या स्वामी रामनरेशाचार्या जी '' परम्परा तथा सनातन धर्म में भक्ति के उन्हीं उदात्त आदर्शों के प्रतिबध्द एवंप्रबल संवाहक हैं तथा अनवरत सम्पूर्ण देश भर में प्रशस्त धार्मिक प्रवृत्तियों के साथ नियोजित हो रहे उत्सवों एवं अनुष्ठानों के साथ साथ अनेक क्षेत्रों में कीजा रही आध्यातमिक एवं लोक कल्याणकारी प्रवृत्तियों को उत्कर्ष प्रदान कर रहे हैं।
जय सिया राम
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