Saturday, 17 August 2024

निर्मल मन कैसे होगा




 

राम जी से प्रेम



 

वैराग्य जरूरी है



 

श्रीराम जी महाराज की जय

विवेक ईश्वर तक पहुंचने की पहली सीढ़ी है


(गुरुदेव महाराज के प्रवचन से)

यदि आपके पास विवेक नहीं, तो आप जीवन में किसी भी ऊंचाई पर नहीं पहुंच सकते। विवेक ईश्वर तक पहुंचने की पहली सीढ़ी है। आप कोई छोटा काम कीजिए या बड़ा काम, सफलतापूर्वक काम के लिए आप में विवेक का होना सबसे आवश्यक है। यदि हम में विवेक हो, तभी हम भले-बुरे का भेद कर पाते हैं और किसी संबंध को अच्छे से चला पाते हैं। विवेक एक छोटा सा शब्द है, किंतु जब हमारे व्यवहार में आ जाए, तो हमें बहुत बड़ा बना देता है। विवेक की आवश्यकता लौकिक जीवन में भी है और भगवान के धाम जाने के लिए भी यह पहली सीढ़ी या सोपान है। 

यदि मैं व्यावहारिक नहीं रहूं, तो हमारा संबंध एक दिन नहीं चले। संबंध चलाने के लिए बहुत सोचना-समझना पड़ता है। क्या ठीक है, क्या गलत है? क्या करना है? क्या नहीं करना है? कैसे बोलना है, कैसे नहीं बोलना है? हमारे प्रत्येक निर्णय में विवेक की आवश्यकता है, तभी हम किसी संबंध को ठीक से निभा पाते हैं, संबंध लंबा चला पाते हैं। विवेक से ही हम अपने लौकिक जीवन में भी उत्कर्ष प्राप्त कर पाते हैं।

जीवन में उत्सव का मतलब केवल समय बिताना नहीं होता है, उत्सव वह है, जिससे हमारा रोम-रोम खिल जाए, रोम-रोम प्रसन्न हो, एक दूसरे से मिलकर, खाकर-खिलाकर, गाकर और सुनकर हमारा प्रेम बढ़े। उत्सव मनाने के लिए भी विवेक चाहिए।

गाय पालने में भी विवेक की आवश्यकता है कि कैसे उससे दूध लेना है, कैसे कोमल भाव से, प्यार से व्यवहार करना है। अगर कोमलता से काम न किया जाए, तो गाय भी लात मारने लगती है। ठीक इसी तरह से पढ़ाई में विवेक चाहिए, नौकरी लेने और देने में विवेक चाहिए। किसी की बेटी लाने में या किसी को बेटी देने में भी विवेक की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। मनुष्य जीवन में एक कदम ऐसा नहीं है, जिसमें विवेक की जरूरत न हो। यदि हमें भगवान के धाम में पहुंचने है, परम पद तक पहुंचना है, तो हमें विवेक का सहारा लेना पड़ेगा। विवेक न हो, तो सारा जीवन यों ही निकल जाता है। विवेक न हो, तो समझ में नहीं आता कि हम क्या बोलें, कैसे बोलें, कितना बोलें। बिना विवेक के व्यक्ति न पूरा धन कमा पाता है और न ज्ञान अर्जित कर पाता है, तो बिना विवेक के ईश्वर को कैसे पा सकता है? विवेक से ही हमें किसी को मान-सम्मान देना आता है। अत: भगवान के धाम में जाने के लिए जो सबसे पहला पायदान है, जो सबसे पहली सीढ़ी या सोपान है, उसका नाम विवेक है। हम में विवेक होना ही चाहिए। 



गुरुदेव महाराज की जय


भगवान के धाम जाने की दूसरी सीढ़ी निर्वेद है। निर्वेद का अर्थ है ऊबना। जब इह लोक से आप ऊबेंगे, तभी परलोक में पहुंचने की इच्छा जागेगी।
अभी हम जहां रह रहे हैं, वहां से जब ऊबने लगेंगे, तभी हमारी आगे की यात्रा शुरू होगी। इस घर से ऊबेंगे, तभी तो भगवान के घर जाने का मन होगा।
भगवान के धाम जाने के लिए विरक्ति या वैराग्य भी जरूरी है, वरना मनुष्य का जीवन नाना प्रकार के लोभ-मोह में ही बीत जाएगा। 
जब व्यक्ति को विवेक होता है, तब वह निरर्थक कर्मों से ऊबने लगता है और उसके बाद ही उसके मन में वैराग्य का जागता है।



 

गुरुदेव महाराज








 

झूलन महोत्सव, प्रयागराज













 

Tuesday, 6 August 2024

गुरुदेव श्रृंखला

श्री रामानन्द सम्प्रदाय का गुरु-परम्परा (गुरु-श्रृंखला)

1. श्री राम:

   - श्री राम ने श्री जानकी जी को षडाक्षर श्री राम मंत्र (रां रामाय नमः) प्रदान किया।

   - जानकी जी ने यह मंत्र श्री हनुमान को दिया।

   - श्लोक: 

     इममेव मनुं पूर्व साकेतपतिर्मामवोचत् अहं हनुमते मम प्रियाय प्रियतराय । 

     स वेद वेदिने ब्रह्मणे स वशिष्ठाय स पराशराय । 

     स व्यासाय । स शुकाय इत्येषोपनिषत् । इत्येषाग्रह्मविद्या ।

     (अथर्ववेद शाखा मैथिली महा-उपनिषद अध्याय 1)

2. श्री जानकी (सीता जी):

   - उन्होंने श्री हनुमान को मंत्र दीक्षा दी।

   - श्लोक:

     इममेव मनुं पूर्व साकेतपतिर्मामवोचत् अहं हनुमते मम प्रियाय प्रियतराय । 

     स वेद वेदिने ब्रह्मणे स वशिष्ठाय स पराशराय । 

     स व्यासाय । स शुकाय इत्येषोपनिषत् । इत्येषाग्रह्मविद्या ।

     (अथर्ववेद शाखा मैथिली महा-उपनिषद अध्याय 1)

3. श्री हनुमान:

   - श्री हनुमान ने श्री ब्रह्मा को मंत्र दीक्षा दी।

   - श्लोकः

     ऐहिकेषु च कार्येषु महापत्सु च सर्वदा ॥

     नैव योज्यो राममन्त्रः केवलं मोक्षसाधकः ऐहिके समनुप्राप्ते मां स्मरेद् रामसेवकम् ॥

     यो रामं संस्मरेन्नित्यं भक्त्या मनुपरायणः ।

     तस्याहमिष्टसंसिद्ध्यै दीक्षितोऽस्मि मुनिश्वराः ॥

     वाञ्छितार्थं प्रदास्यामि भक्तानां राघवस्य तु सर्वथा जागरूकोऽस्मि रामकार्यधुरंधरः ॥

     (अथर्ववेद श्रुति राम रहस्य उपनिषद 4/10-13)

4. श्री ब्रह्मा:

   - श्री ब्रह्मा ने श्री वशिष्ठ को मंत्र दीक्षा दी।

   - श्लोक:

     त्वत्तो वा ब्रह्मणो वापि ये लभन्ते षडक्षरम् ।

     जीवन्तो मन्त्रसिद्धाः स्युर्मुक्ता मां प्राप्नुवन्ति ते ।।

     मुमूर्षोर्दक्षिणे कर्णे यस्य कस्यापि वा स्वयम् ।

     उपदेक्ष्यसि मन्मन्त्रं स मुक्तो भविता शिव ।।

     (अथर्ववेद श्रुति राम उत्तर तापनीय उपनिषद 3.15/16)

5. श्री वशिष्ठ:

   - श्री वशिष्ठ ने श्री पराशर को मंत्र दीक्षा दी।

   - श्लोक:

     तारकं मन्त्रराजं तु श्रावयामास ईश्वरः ।

     जानकी तु जगन्माता हनुमन्तं गुणाकरम् ।।

     श्रावयामास नूनं स ब्रह्माणं सुधियांवरम् ।

     तस्माल्लेभे वशिष्ठर्षिः क्रमादस्मादवातरम् ॥

     भूमौ हि राममन्त्रोऽयं योगिनां सुखदः शिवः ।

     एवं क्रमं समासाद्य मन्त्रराजपरम्परा ॥

     (श्री वाल्मीकि संहिता अध्याय 2 श्लोक 33- 35)

6. श्री पराशर:

   - श्री पराशर ने श्री वेदव्यास को मंत्र दीक्षा दी।

   - श्लोक:

     पराशराय रामस्य मन्त्रं मुक्तिप्रदायकम् ।

     स वेदव्यासमुनये ददावित्थं गुरुक्रमः ॥

     वेदव्यासमुखेनात्र मन्त्रो भूमौ प्रकाशितः ।

     वेदव्यासो महातेजः शिष्येभ्यः समुपादिशत् ।।

     (श्री अगस्त्य संहिता, अध्याय 8, श्लोक 3-4)

7. श्री वेदव्यास:

   - श्री वेदव्यास ने श्री शुकदेव को मंत्र दीक्षा दी।

   - श्लोक:

     इममेव मनुं पूर्व साकेतपतिर्मामवोचत् अहं हनुमते मम प्रियाय प्रियतराय । 

     स वेद वेदिने ब्रह्मणे स वशिष्ठाय स पराशराय । 

     स व्यासाय । स शुकाय इत्येषोपनिषत् । इत्येषाग्रह्मविद्या ।

     (अथर्ववेद शाखा मैथिली महा-उपनिषद अध्याय 1)

8. श्री शुकदेव:

   - श्री शुकदेव ने महर्षि बौधायन (पुरुषोत्तमाचार्य) को मंत्र दीक्षा दी।

   - श्लोक:

     शुकदेवं गुरुं नत्वा श्रीमद्व्यासं च राघवं ।

     रामायणरहस्यं हि सद्बोधाय ब्रवीम्यहम् ॥

     (महर्षि बौधायन, श्री रामायण रहस्य)

9. महर्षि बौधायन:

   - महर्षि बौधायन ने श्री गंगाधराचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

   - श्लोकः

     सीतानाथ समारंभाम् बादरायण मध्यमाम्।

     बोधायनाख्य गुर्वन्तां वन्दे गुरु परम्पराम् ॥

     (महर्षि बौधायन, सधन दीपिका मंगलाचरण)

10. श्री गंगाधराचार्य:

    - श्री गंगाधराचार्य ने श्री सदानंदाचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

    - श्लोक:

      गङ्गाधरं गुरुं नत्वा बोधायनं च राघवम्।

      अहं करोमि वेदान्त्सारस्तवं सुखावहम् ॥

      (श्री सदानंदाचार्य, वेदांत सार-स्तव)

11. श्री सदानंदाचार्य:

    - श्री सदानंदाचार्य ने श्री रमेश्वरानंदाचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

    - श्लोक:

      सीतानाथं नमस्कृत्य सदानन्दं गुरुं तथा ।

      सत्प्रबोधामृतं कुर्वे प्राणिमृत्योर्विनाशकम्॥

      (श्री रमेश्वरानंदाचार्य, सत्प्रबोधामृत)

12. श्री रमेश्वरानंदाचार्य:

    - श्री रमेश्वरानंदाचार्य ने श्री द्वारानंदाचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

    - श्लोक:

      व्यासं बोधायनं रामं नत्वा रामेश्वरं गुरुम् ।

      तत्त्वावबुद्धये कुर्वे प्रश्नोत्तरावलीं शुभाम्॥

      (श्री द्वारानंदाचार्य, प्रश्नोत्तर रत्नावली)

13. श्री द्वारानंदाचार्य:

    - श्री द्वारानंदाचार्य ने श्री देवानंदाचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

    - श्लोक:

      कुर्वे बोधायनं नत्वा द्वारानन्दं गुरुं तथा ।

      सदाचारप्रबोधाय सदाचारप्रदीपिकाम् ॥

      (श्री देवानंदाचार्य, सदाचार प्रदीपिका 

14. श्री देवानंदाचार्य:

    - श्री देवानंदाचार्य ने श्री श्यामानंदाचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

    - श्लोक:

      सीतानाथं नमस्कृत्य देवानन्दं गुरुं तथा।

      प्रपन्नानां हितायेयं नवरत्नी विधीयते ॥

      (श्री श्यामानंदाचार्य, नवरत्नी मंगलाचरण)

15. श्री श्यामानंदाचार्य:

    - श्री श्यामानंदाचार्य ने श्री श्रुतानंदाचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

    - श्लोकः

      रामं बोधायनं व्यासं गुरुदेवं प्रणम्य च।

      श्रुतिवेद्यस्तवं कुर्वे श्रौतरामस्य तृप्तये॥

      (श्री श्रुतानंदाचार्य, श्रुतिवेद्य स्तव)

16. श्री श्रुतानंदाचार्य:

 श्री श्रुतानंदाचार्य ने श्री चिदानंदाचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

    - श्लोकः

      धर्मकीत्तर्यादयो बौद्धा येन वादे निराकृताः।

      तं गुरुं श्रीश्रुतानन्दं वन्दे बोधमहोदधिम् ॥

      नत्वा बोधायनं व्यासं तथा रामं परमेश्वरम्।

      कुर्वे प्रमयेबोधाय प्रमेयोद्देश-भास्करम् ॥

      (श्री चिदानंदाचार्य, प्रमेयदेश भास्कर)

17. श्री चिदानंदाचार्य:

    - श्री चिदानंदाचार्य ने श्री पूर्णानंदाचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

    - श्लोक:

      गुरुं च राघवं नत्वा व्यासं बोधायनं तथा।

      रामभक्तिविवेकं हि कुर्वे भक्तिप्रदायकम्॥

      (श्री पूर्णानंदाचार्य, राम भक्ति विवेक)

18. श्री पूर्णानंदाचार्य:

    - श्री पूर्णानंदाचार्य ने श्री श्रीयानंदाचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

    - श्लोक:

      व्यासं बोधायानं ब्रह्म रामं नत्वा च सद्गुरुं।

      कुर्वे श्रौतार्थबोधाय श्रौतप्रमेयेन्द्रिकाम् ॥

      (श्री श्रीयानंदाचार्य, श्रौतप्रमेय चंद्रिका)

19. श्री श्रीयानंदाचार्य:

    - श्री श्रीयानंदाचार्य ने श्री हरीयानंदाचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

    - श्लोक:

      श्रियानन्दं गुरुं नत्वा रामं बोधायनं तथा।

      कुर्वे श्री चरममन्त्ररामायणं हि मुक्तिदम् ॥

      (श्री हरीयानंदाचार्य, चरम मंत्र रामायण)

20. श्री हरीयानंदाचार्य:

    - श्री हरीयानंदाचार्य ने श्री राघवानंदाचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

    - श्लोक:

      राघवेन्द्रं नमस्कृत्य हर्यानन्दं गुरुं तथा ।

      कुर्वे मङ्गलमालां श्रीराघवेन्द्रस्य तुष्टये ॥

      (श्री राघवानंदाचार्य, राघवेंद्र मंगल माला)

21. श्री राघवानंदाचार्य:

    - श्री राघवानंदाचार्य ने श्रीमद जगद्गुरु रामानंदाचार्य को मंत्र दीक्षा दी।

    - श्लोक:

      श्रीरामं जनकात्मजामनिलजं वेधो वशिष्ठावृषी योगीशं च पराशरं श्रुतिविदं व्यासं जिताक्षं शुकम्।

      श्रीमन्तं पुरुषोत्तमं गुणनिधिं गङ्गाधराद्यान्यतीन् श्रीमद्राघवदेशिकं च वरदं स्वाचार्यवर्यं श्रये ॥

      (श्री रामानंदाचार्य, गीता आनंद भाष्य)

22. श्री रामानंदाचार्य:

    - श्री रामानंदाचार्य ने विभिन्न वर्गों के लोगों को शिष्य बनाकर भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया और धर्म का प्रचार किया।

    - श्लोक

      जगमंगल आधार भक्ति दसधा के आगर॥

      (श्रीभक्तमाल पद - ३६)