(गुरुदेव महाराज के प्रवचन से)
यदि आपके पास विवेक नहीं, तो आप जीवन में किसी भी ऊंचाई पर नहीं पहुंच सकते। विवेक ईश्वर तक पहुंचने की पहली सीढ़ी है। आप कोई छोटा काम कीजिए या बड़ा काम, सफलतापूर्वक काम के लिए आप में विवेक का होना सबसे आवश्यक है। यदि हम में विवेक हो, तभी हम भले-बुरे का भेद कर पाते हैं और किसी संबंध को अच्छे से चला पाते हैं। विवेक एक छोटा सा शब्द है, किंतु जब हमारे व्यवहार में आ जाए, तो हमें बहुत बड़ा बना देता है। विवेक की आवश्यकता लौकिक जीवन में भी है और भगवान के धाम जाने के लिए भी यह पहली सीढ़ी या सोपान है।
यदि मैं व्यावहारिक नहीं रहूं, तो हमारा संबंध एक दिन नहीं चले। संबंध चलाने के लिए बहुत सोचना-समझना पड़ता है। क्या ठीक है, क्या गलत है? क्या करना है? क्या नहीं करना है? कैसे बोलना है, कैसे नहीं बोलना है? हमारे प्रत्येक निर्णय में विवेक की आवश्यकता है, तभी हम किसी संबंध को ठीक से निभा पाते हैं, संबंध लंबा चला पाते हैं। विवेक से ही हम अपने लौकिक जीवन में भी उत्कर्ष प्राप्त कर पाते हैं।
जीवन में उत्सव का मतलब केवल समय बिताना नहीं होता है, उत्सव वह है, जिससे हमारा रोम-रोम खिल जाए, रोम-रोम प्रसन्न हो, एक दूसरे से मिलकर, खाकर-खिलाकर, गाकर और सुनकर हमारा प्रेम बढ़े। उत्सव मनाने के लिए भी विवेक चाहिए।
गाय पालने में भी विवेक की आवश्यकता है कि कैसे उससे दूध लेना है, कैसे कोमल भाव से, प्यार से व्यवहार करना है। अगर कोमलता से काम न किया जाए, तो गाय भी लात मारने लगती है। ठीक इसी तरह से पढ़ाई में विवेक चाहिए, नौकरी लेने और देने में विवेक चाहिए। किसी की बेटी लाने में या किसी को बेटी देने में भी विवेक की सबसे ज्यादा जरूरत होती है। मनुष्य जीवन में एक कदम ऐसा नहीं है, जिसमें विवेक की जरूरत न हो। यदि हमें भगवान के धाम में पहुंचने है, परम पद तक पहुंचना है, तो हमें विवेक का सहारा लेना पड़ेगा। विवेक न हो, तो सारा जीवन यों ही निकल जाता है। विवेक न हो, तो समझ में नहीं आता कि हम क्या बोलें, कैसे बोलें, कितना बोलें। बिना विवेक के व्यक्ति न पूरा धन कमा पाता है और न ज्ञान अर्जित कर पाता है, तो बिना विवेक के ईश्वर को कैसे पा सकता है? विवेक से ही हमें किसी को मान-सम्मान देना आता है। अत: भगवान के धाम में जाने के लिए जो सबसे पहला पायदान है, जो सबसे पहली सीढ़ी या सोपान है, उसका नाम विवेक है। हम में विवेक होना ही चाहिए।
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