Thursday, 13 October 2011

जात पांत पूछै नहीं कोई

भाग-दो
बिहार में मेरे एक बड़े भक्त हैं। बात बड़ी जोरदार करते हैं। होटल के मालिक हैं। खूब धार्मिक हैं, शायद ही कोई आदमी हो, जो अपनी आमदनी का चौथा भाग धर्म पर खर्च करता हो। वे करते हैं। चौथा भाग राजनीति में, चौथा भाग परिवार में और चौथा भाग व्यापार में खर्च करते हैं। राजा आदमी हैं। उन्होंने मुझे बुलाया, मैं गया। यज्ञ मंडप में उन्होंने मुझे किसी कार्य से बुलाया, कहा, 'चलिए,' मैं दंड छोडक़र चल पड़ा, तो उन्होंने कहा, 'ओह, दंड क्यों छोड़ रहे हैं, इसी को तो हम नमस्कार करते हैं, बाकी आप रामनरेशाचार्य जी तो पहले भी थे। ये दंड स्वामी जी हैं, राम जी हैं, इनको नमस्कार है, इन्हें साथ ले चलिए।' कितनी बड़ी ज्ञान की बात उन्होंने की। मैंने दंड थाम लिया। तो ऐसा है हमारा संप्रदाय। न कोई परिवारवाद, न क्षेत्रवाद, न जातिवाद, हमने वेदों की नब्ज पकड़ ली है।
जब राम जी और भरत जी निषादराज को, कोल, भिल्लों को गले लगा सकते हैं, तो रामानंदाचार्य जी रविदास को क्यों नहीं अपना सकते?
दुःख क्यों होता है?

Tuesday, 4 October 2011

जात पांत पूछे नहीं कोई

यह ईश्वरावतार की भूमि है, ऐसी भारत भूमि हमें प्राप्त हुई। कहा जाता है, ईसाई धर्म दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है। ईसाई देश दुनिया में सबसे धनवान हैं। दुनिया का नेतृत्व कर रहे हैं, दुनिया की सारी गतिविधियों को प्रभावित करते हैं। तो जिसके पास पैसा है, वह तो बड़ा हो जाता है, सुंदर हो जाता है। ये सभी बातें आपको मालूम हैं। किन्तु काफी लंबे समय तक कोई काले रंग का आदमी संत की उपाधि प्राप्त नहीं कर सका था। अमरीका को स्थापित हुए सवा दो सौ साल से भी अधिक हो गए। ईसा मसीह को २००० वर्ष हो गए, किन्तु कैसा धर्म है कि काले लोग संत नहीं बन पाते हैं, अभी ज्यादा दिन नहीं हुए, वहां काले रंग वाले को भी संत की उपाधि दी गई। यहां तो जब कहा गया कि विद्याध्ययन ब्राह्मण ही करेगा, ब्राह्मणों को ही संन्यास लेने का अधिकार होगा, ऐसा कहा शंकराचार्य जी ने। धर्म को निश्चित रूप से उनका योगदान अनुपम है, लेकिन इस बात पर उनके अनुयायियों ने ही विरोध कर दिया। इस बात का विरोध विद्वान मंडन मिश्र ने कर दिया, जो बाद में सुरेश्वराचार्य के रूप में जाने गए, सृंगेरी मठ के प्रथम शंकरचार्य हुए. कहा यह गलत है, जिसे जेनऊ का अधिकार है, उसे वेदाध्ययन करने का अधिकार है, संन्यास लेने का भी अधिकार है। तो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य, तीनों संन्यासी बनने लगे। दशनाम की परंपरा है, संन्यासी में भी दो विभाग हैं एक तो दंड वाले लोग और दूसरे दशनाम हैं। जो दंडी नहीं हैं। बिना दंड के हैं, जैसे महामंडलेश्वर इत्यादि। यह सनातन धर्म है, यहां ऐसे गुरु हैं, जिन्हें शंकराचार्य कहा जाता है।
दु:ख क्यों होता है?

मीडिया में महाराज


(राजस्थान पत्रिका में रविवार को महाराज जगदगुरु के सम्बन्ध में २ अक्टूबर को प्रकाशित सामग्री)
संस्कृत का संरक्षण मेरा उद्देश्य
बारह साल की उम्र में बिहार के भोजपुर से अपना गांव परसिया छोड़कर साधु बने स्वामी रामनरेशाचार्य संस्कृत में निरंतर लुप्त हो रही हजारों साल पुरानी न्याय दर्शन, वैशेषिक और वैष्णव दर्शन की परंपरा को पुनर्जीवित करने में लगे हुए हैं। काशी की विद्वत परंपरा के विद्वान आचार्य बदरीनाथ शुक्ल से 10 वर्षो तक विद्याध्ययन करने के बाद रामनरेशाचार्य ने ऋषिकेश के कैलाश आश्रम में बिना किसी जाति-पांति व वर्ग का भेद किए हजारों विद्यार्थियों व साधुओं को न्याय दर्शन, वैशेषिक और वैष्णव दर्शन पढ़ाया। संस्कृत के दुर्लभ व लगभग अप्राप्त ग्रंथों का प्रकाशन कर रामनरेशाचार्य ने विलुप्त होते अनेक ग्रंथों को भी बचाया है।
अपने जीवन के छह दशक पूरे कर रहे रामनरेशाचार्य काशी में जगद्गुरू रामानंदाचार्य के मुख्य आचार्य पीठ "श्रीमठ" में 1988 से "जगद्गुरू रामानंदाचार्य" के पद पर अभिषिक्त होने के बाद भी अनेक देशी-विदेशी छात्रों को संस्कृत मे निबद्ध भारतीय दर्शन की जटिल शास्त्र प्रक्रिया को निरंतर सहज रूप से पढ़ा रहे हैं। देश के अनेक क्षेत्रों में संस्कृत विद्यालयों की स्थापना कर रामनरेशाचार्य विद्यार्थियों को सारी सुविधाएं भी निशुल्क ही उपलब्ध करवाते हैं। आदिवासी क्षेत्र में रामनरेशाचार्य ने संस्कृत की एक ऎसी अलख जगाई है कि वहां स्थापित विद्यालयों में हजारों छात्र समान रूप से बिना किसी भेद-भाव के संस्कृत पढ़ रहे हैं।

दु:ख क्यों होता है?

Saturday, 1 October 2011

गलत लोगों का बहिष्कार हो

भ्रूण हत्या केवल समाज का संतुलन ही नहीं बिगाड़ रही है, केवल शादी की समस्या ही नहीं पैदा कर रही है, आतंकवाद का विस्तार भी कर रही है, जो दुनिया की सबसे बड़ी समस्या है। विचार के क्रम में मेरे मन में यह भाव भी आया कि लंका में सारे दुराचार होते थे, लूट, अत्याचार, व्यभिचार, अपहरण, लेकिन भ्रूण हत्या नहीं होती थी, आपस में वहां भाईचारा था। विभिषण का भी सम्मान था, कुम्भकर्ण का भी सम्मान था। हां, लंका में भोग की वृत्ति गलत थी।वैसे अपने राष्ट्र में कन्या द्रोह पुराना है। राजा लोग, क्षत्रिय लोग लड़कियों को विष चटा देते थे कि किसी के सामने सिर नहीं झुकाना पड़ेगा। लडक़ी हो जाए, तो सिर झुकाना पड़ता है। राम राज्य में यह परंपरा नहीं थी।
दु:ख क्यों होता है?

घर घर आतंकवाद

भाग २
भ्रूण हत्या से चिंता यह नहीं है कि लड़कियों की संख्या कम होगी, तो लडक़ों की शादी कैसे होगी। शादी जरूरी नहीं है, सौ में से २० लोग ही शादी की योग्यता वाले हैं। जो योग्य नहीं, वे शादी क्यों करते हैं, शादी उसी को करना चाहिए, जिसकी जेब में पैसे हों, जो स्वस्थ हो। पुराने जमाने में सभी लोगों की शादी नहीं होती थी। बहुत पुरुष कुंवारे रह जाते थे, अभी भी हरियाणा वगैरह में प्रथा चल रही है, पांच भाइयों में एक भाई शादी कर रहा है, क्योंकि पाचों शादी करेंगे, तो सबके बच्चे होंगे, विभाजन हो जाएगा, संपत्ति बिखर जाएगी। संपत्ति बिखर जाएगी, तो परिवार का कुटुंब का सम्मान चला जाएगा। इसलिए कई परिवारों में शादियां कम होती हैं।
असली बात पर लोगों का ध्यान नहीं जा रहा है।

दु:ख क्यों होता है?