भाग दो
हमारे विरोधी भी अच्छी बात कहें, तो हमें कहना चाहिए कि वाह। नकारात्मकता से बचना चाहिए। धर्म का जो असली स्वरूप है, वह बहुत ही महत्वपूर्ण है। उससे कहीं कोई बच नहीं सकता। अच्छा यह बतलाइए कि प्रत्येक आदमी के जीवन जीने का जो तरीका है, जो परिवार का, जाति का, राष्ट्र का, समुदाय का, लेकिन समर्थ लोग सबके लिए नियमावली बनाते हैं। वे कौन लोग हैं, जिन्होंने यह नियमावली बनाई थी कि अपनी बेटी की शादी अपने बेटे से नहीं करनी है, अपने गोत्र में नहीं करनी है, क्योंकि हमारा मूल एक है। कुंडली मिलाकर शादी करनी है। समर्थ व सदाचारी लडक़े से शादी करनी है। खान-पान का तालमेल हो, संपत्ति की समानता हो। नियम से ही सबकुछ चलता है। वैसे ही यदि भारतीय संविधान नहीं होता, तो इतने दिनों में जो विकास हुआ है, वह कोई हमारे विकास या आपके घर के संविधान से हुआ है क्या? यही राष्ट्र धर्म है। संविधान में त्रुटियां हो सकती हैं, उसमें संशोधन हुए हैं और भी होने चाहिए। न्यूटन के बनाए हुए अनुसंधान में संशोधन हो रहा है, आइंस्टीन की खोज में संशोधन हो रहा है। जो टेप रिकॉर्डर बहुत बड़ा होता था, वह छोटा हो गया, जो मोबाइल का स्वरूप बहुत भारी होता था, आज छोटा हो गया, इंजन बड़ा होता था, अब छोटा होने लगा है। धीरे-धीरे बुद्धि का विकास होता गया, तो विकास हुआ। उस संविधान का प्रतिपादन यह धर्म है। राष्ट्रधर्म है कि हम भारतीय संविधान का पालन करें। कौन कहता है कि बाईं तरफ से नहीं चलना चाहिए, दाईं तरफ से चलना चाहिए। एक चले बायें से दूसरा चले दायें से, दोनों ही चलें। यही नियम है। जिसे हम सनातन धर्म कहते हैं, वह पूरी दुनिया के लोगों ने अपने जीवन में सकारात्मक विकास के लिए बनाया था। जब कोई नियम नहीं था, तब वेद ने बताया। वेद जो करने के लिए कहता है, वह धर्म है, वेद जो कहता है नहीं करो, वह अधर्म है। वेद कहता है सत्यम् वद्। जब कोई संविधान नहीं था, तब दुनिया का एक ही संविधान था, वेद, जिसने कहा - सत्यम् वद्। आज भी यही कहा जाता है। माना जाता है। अमरीका के लोगों में तमाम तरह की उन्मुक्तियां हैं, लेकिन वे समृद्ध हुए, लेकिन जब अमरीका का एक राष्ट्रपति झूठ में पकड़ा गया, तो पूरे देश ने कहा कि इस राष्ट्रपति को बाहर करो, झूठा आदमी राष्ट्रपति नहीं होगा। सत्यम् वद्। व्याभिचार की भावना सभी के जीवन में होती है। हमारे यहां ब्रम्हचर्य के तमाम भेद बताए गए। अगर कोई व्यक्ति कामुक भावना से किसी औरत को देखता है, तो यह भी व्याभिचार ही है। यदि किसी का स्पर्श करता है, तो यह भी व्याभिचार है। किसी से बहुत मधुर बातें कर रहा है, अगर उसकी भावनाओं में वासनात्मक विचार हैं, तो यह भी व्याभिचार है। सबको कहा गया कि व्याभिचार से बचो। निश्चत रूप से हमारे देश की तुलना में अमरीका में वर्जनाएं कम हैं, हमारे यहां से वहां खुलापन भी ज्यादा है। जब लेविंस्की कांड हुआ, तो लोगों ने कहा क्लिंटन नहीं चाहिए। एक छोटी-सी कर्मचारी राष्ट्रपति की चहेती हो जाए, तो राष्ट्र तो चहेता नहीं हुआ उसका। बड़ा आदमी जिसका उद्देश्य बड़ा है, जिसे पूरा देश ऊँगली पकड़ा चुका है, अगर वह आदमी अगर अपनी छोटी कर्मचारी को उंगली पकड़ा दे, तो वह अक्षम हो जाएगा। व्याभिचार नहीं चलेगा। अमरीका में भी हल्ला मच गया, बहुत मुश्किल से क्लिंटन की गद्दी बची। धर्म का सीधा-सा स्वरूप है, जो हमारे जीवन का विकास करे, जिससे दूसरे को कोई कष्ट नहीं हो, दूसरे को कोई कुरूपता नहीं हो, दूसरे की कोई हानि नहीं हो, दूसरे को कोई पीड़ा नहीं हो, यह जो विकास की पद्धति है, यह जो कर्म का स्वरूप है, वही धर्म है। क्रमशः
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