Wednesday, 12 December 2012

अच्छा कैसे सोचा जाए?

चौथा भाग


इसी तरह से हम लोगों का जीवन गलत इच्छाओं, खानपान के कारण, गलत संसर्ग के कारण जो नकारात्मक सोच से जुड़ा हुआ है, वह अवश्य सुधर सकता है। जब कोल, भील बदल सकते हैं, तो आधुनिक शिक्षा में जो बच्चे पढ़ रहे हैं, वे तो सुधरेंगे ही, ये बच्चे संस्कारी घरों के हैं। हमारे नेताओं का जीवन भी तो कोल, भीलों से तो अच्छा है। जिनके जीवन में कोई सद्गुण नहीं थे, लेकिन वे भी भगवान को देखकर सुधर गए, सकारात्मक सोचने लगे। जिनका जीवन अच्छा है, जो सकारात्मक हैं, वैसे लोगों को वर्चस्व मिले, बढ़ावा मिले, उनके संसर्ग में लोगों को लाया जाए और राष्ट्र उसी तरह की शिक्षा की व्यवस्था करे कि अध्यात्म शिक्षा लोग पढ़ें, वेदों शास्त्रों में लोगों का विश्वास बढ़े।
कौन कहेगा? वेद ही तो कहेगा कि किसी की हिंसा न करो। अभी तो काशी में वेदांत शास्त्र के बहुत बड़े विद्वान थे, उन्होंने अंतिम दिनों में आत्महत्या कर ली। शास्त्र तो यह पढ़ा रहे थे कि जो ब्रह्म चिंतन करेगा, वह ब्रह्म हो जाएगा, मुक्त हो जाएगा, उसके जीवन में कोई क्लेश नहीं होगा, सबको समान देखेगा, लेकिन जिन्होंने अपना जीवन ही वेद पढ़ाने में लगा दिया, वे भले ही वेदांत पढ़े थे, पढ़ाते थे, परन्तु उनका चित्त मलिन हो गया, धन की इच्छा, सम्मान की इच्छा इतनी विकृत्त ढंग से पैदा हुई कि उसने उन्हें रेलवे के इंजन के पास पहुंचा दिया।
अब तो धार्मिक जगत के भी जो लोग हैं, उनका स्वरूप भी सबके सामने आया है। योगासान कराते-कराते दवाई बेचने लगे, कोई भी ऐसा पैसे का काम नहीं है, जो नहीं कर रहे हैं। ऐसे तमाम लोग लाल कपड़ा पहनकर दाढ़ी बढ़ाकर महात्मा की उपाधि प्राप्त करके काफी कुछ वही कर रहे हैं, जो शास्त्रीय धारा से उल्टा है, नकारात्मक है। केवल पैसा, भोग और सम्मान के लिए जीवन जी रहे हैं। उनके सत्संगों में चर्चे होते हैं, लेकिन इससे राष्ट्र, मानवता, धर्म का कोई लाभ नहीं हो रहा है, क्योंकि जब वे स्वयं ही भोगी हैं, शास्त्रीय मार्यदाओं से रहित हैं, शास्त्र का ज्ञान नहीं है, शास्त्र में विश्वास नहीं है, उसके प्रयोग में विश्वास नहीं है, किसी तरह से केवल धन चाहिए। तो ऐसे लोगों की बड़ी संख्या है, ब्राह्मणों में भी संतों में भी, मैं इन सभी लोगों के लिए कह रहा हूं। पूरे राष्ट्र को यह प्रयास करना चाहिए। केवल जल शुद्ध हो जाए, तभी नहीं चलेगा, भोजन सामग्री शुद्ध हो जाए, केवल इससे नहीं चलेगा। एक लेख मैंने पढ़ा कि बिहार सरकार सबसे ज्यादा ध्यान दे रही है कि कैसे शराब की ज्यादा से ज्यादा बिक्री हो कि राजस्व आए। जब लोग शराब पीएंगे, तो उनका चित्त नकारात्मक होगा या सकारात्मक होगा? नीतीश सरकार रोड बनवा रही है, अमन चैन के लिए प्रयास कर रही है, उद्योग बढ़ाने का प्रयास कर रही है, लेकिन जब राजस्व कमाने के लिए शराब को बढ़ावा दिया जाएगा, तो सब बेकार हो जाएगा। रोड क्या करेगा, स्कूल क्या करेंगे, विवि क्या करेंगे, जब मन ही नकारात्मक हो जाएगा? केवल कमाई की भावना से मंडित होकर हमारा काम कदापि नहीं चलेगा।
नकारात्मक जीवन के कारण लोगों का जो चैतन्य है, जो कत्र्तव्य है, उद्देश्य है, वह बहुत छोटा हो गया है, उस पर कोई नियंत्रण नहीं है, न समाज का न देश का। इसलिए लोग जैसे-तैसे जीवन जी रहे हैं और उसी में अपनी भी बर्बादी हो रही है। गुटखा खाकर भले ही हम मरेंगे, लेकिन गुटखा जरूर खाएंगे, गुटखा पर बहुत पहले ही प्रतिबंध लग जाना चाहिए था कि जो गुटखा खाएगा, उसे जेल हो जाएगी, जो बेचेगा, बनाएगा उसको जेल हो जाएगी। लोग हत्या करके बाहर घूम रहे हैं, लोग उन्हें कह ही नहीं रहे हैं। यह नकारात्मक चिंतन का परिणाम है।
इतिहास है कि चोरों ने चोरी छोड़ दी राम जी को देखकर। इसलिए इन सभी बातों के लिए शास्त्रों से जुडऩा जरूरी है। शास्त्र कहते हैं वैसा जीवन जीना होगा।
अभी महात्मा गांधी का चिंतन कहां हो रहा है। एक खबर थी कि पाकिस्तान और भारत ने मिलकर २ अक्टूबर को गांधी जी का जन्मदिन मनाया। यह सकारात्मक चिंतन हुआ। कई मुद्दों में भारत और पाकिस्तान के बीच द्वेष है, लेकिन अखंड भारत माता के ही दोनों अंग हैं। गांधी जी इस भूमि का मोल समझते थे, इसलिए उनका जीवन भी भगवान की दया से ईश्वरीय भावना से जुड़ा था। सर्वथा नकारात्मक नहीं था, सर्वथा सकारात्मक था। उन्होंने सबको समान रूप से पे्रेम दिया।

मनुष्य जीवन अत्यंत महत्वपूर्ण जीवन है, इससे अच्छा उत्पादन सृष्टि में नहीं है, जैसा आनंद मिलना चाहिए, जैसी सुन्दरता मिलनी चाहिए, आज वैसी नहीं मिल रही है, क्योंकि हमारे विचार नकारात्मक हैं। हम सकारात्मक विचारों से जुड़ें, हम दूसरे का बुरा न करें, ऐसा चिंतन होना चाहिए। हमारा भी विकास हो, दूसरों का भी विकास हो, खुशहाली बढ़े सुन्दरता बढ़े। इस संसार में परिवर्तन की जरूरत है, तभी तो रामराज्य आएगा। रोड बनाने, हवाई जहाज बनाने, मोबाइल या केवल विश्वविद्यालय के विकास से रामराज्य नहीं आएगा, रामराज्य तभी आएगा, जब नकारात्मका चिंतन का निवारण होगा और सकारात्मक चिंतन होगा।
समापन

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