भाग -६
आज जो संत का सम्मान होना चाहिए, जो सम्मान पुरोहित का होना चाहिए, वह नहीं हो रहा है। समाज में इसमें बहुत अंतर आ गया है। लोग केवल औपचारिक रूप से संतों से जुड़ते हैं, गुरु से जुड़ते हैं, लाभ उठाने की प्रेरणा और उसके लिए समर्पित होना, सेवा भावी होना और उसके लिए निष्ठावान होना चाहिए। संत के लिए, गुरु के लिए, जैसे रघुवंशी लोग थे, आज वैसे लोग नहीं हो रहे हैं। रघुवंशियों के मन में अपने पुरोहित के प्रति कितना विश्वास था।
ताडक़ा, सुबाहू, मारीच इत्यादि राक्षस बहुत तंग कर रहे थे यज्ञ में, जब विश्वामित्र जी यज्ञ रक्षा के लिए राम, लक्ष्मण को लेने आए, तो दशरथ जी ने मना कर दिया, मेरे बच्चे छोटे हैं, राम के बिना एक क्षण नहीं रह सकता। ये क्या लड़ेंगे राक्षसों से, ये तो बहुत छोटे हैं। मैं नहीं दूंगा पुत्र।
गुरु वशिष्ठ जी ने तत्काल कहा, राम जी आपकी गोद में बैठने के लिए आए हैं क्या, पूरे संसार को बनाने वाले संहार करने वाले हैं, इनको आप क्या समझ रहे हैं। अरे, ये तो आए ही हैं इसी काम के लिए कि यज्ञ की रक्षा कैसे हो, वेदों, ब्राह्मणों, साधुओं, संतों, तपस्वियों की सेवा के लिए, समाज के लिए काम करने वालों के लिए, पूरे संसार में अच्छे भाव हों, इसके लिए राम जी आए हैं, केवल आपके आंगन में खेलने के लिए नहीं आए हैं, इसलिए इन्हें जाने दीजिए।
दशरथ जी ने अपनी गलती को समझा और राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेज दिया। वरना विश्वामित्र नाराज हो जाते, यज्ञ की रक्षा नहीं होती, शापित कर देते दशरथ जी को, राम जी अगर जाते नहीं हैं, तो चारों भाइयों का विवाह तब नहीं हुआ होता। जो राम जी की महानता है, उनका जो जीवन है, उसका प्रारंभ विश्वामित्र जी के साथ ही हुआ। वशिष्ठ जी केवल केवल ज्ञानी ही नहीं हैं, सफल अध्यापक हैं। कौन-सा ऐसा ज्ञान विज्ञान है, जो वशिष्ठ में नहीं है। जो पढ़ेगा, उन्हें जानेगा, उसका लौकिक और आध्यात्मिक जीवन आलोकित होगा, इसलिए गुरु वशिष्ठ को प्राप्त करने के लिए हमें रघुवंशियों जैसा बनना चाहिए और रघुवंशियों जैसा बनने के लिए हमें गुरु वशिष्ठ को प्राप्त करना चाहिए और गुरु वशिष्ठ जैसा बनने के लिए हमें गुरु वशिष्ठ से प्रेरणा लेनी चाहिए। हमें अपने जीवन को सभी अच्छी क्रियाओं से जोडऩा चाहिए। हमारा जीवन रामराज्य का जीवन होगा, हमारा जीवन रघुवंशियों का जीवन होगा। गुरु वशिष्ठ की प्रेरणा से उनके मार्ग पर चलकर ही रामराज्य आ सकता है।
आज गुरुओं में संयम, नियम, तप की बहुत कमी आ गई है, यह बड़ी चिंता का विषय है। ऐसा नहीं है कि बीज नष्ट हो गया हो, संख्या कम हो गई हो, हां, वोल्टेज कम हो गया है। उतनी शक्ति नहीं रही। एक बड़ी विडंबना है, लोकतंत्र में बहुत कम लोग हैं, जो गुरु वशिष्ठ से सीखकर राज्य का संचालन करते हैं।
एक बड़े विद्वान कह रहे थे कि एक नेता उनके यहां बहुत आया करते थे, जब मुख्यमंत्री हो गए, तब भी शुरू में एक महीना में एक बार मिलने लगे, एक साल बीत गए, तो दो महीने में एक बार मिलने लगे, बाद में छह महीने में एक बार मिलने लगे, पांचवा साल आया, तो एक ही बार मिले, लेकिन जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, तो एक बार भी नहीं मिले। वे राजनीति शास्त्र के विद्वान हैं, वो सुना रहे थे मुझसे जबलपुर में। तो आज की जो राजशाही है, जो राजनेता हैं, बड़े शिक्षाविद् हैं, लौकिक शिक्षा और ऐसे ही विभिन्न क्षेत्रों के जो लोग हैं, उन्होंने चमत्कार का लाभ उठाया और बाद में मान लिया कि यह मेरा ही काम है।
ऐसे लोग अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन नहीं लाते हैं। आध्यात्मिक ऊर्जा या किसी ढंग के संत, पुरोहित से अपने को नहीं जोड़ते हैं। वे सोचते हैं कि जो मैं कर रहा हूं, मैं वहीं करूंगा, केवल हमें लाभ मिलना चाहिए। अभी क्षत्रियों में कम लोग हैं, जो संध्या वंदन करते होंगे, लेकिन वेदों में लिखा गया है कि ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों को जनेऊ पहनना चाहिए। वैश्य लोग सर्वथा दूर हो गए, वे संतों की सन्निधि में कम रहते हैं, बस कुछ देर के लिए मिले, आशीर्वाद लिया, चिंता है कि हमारा धन बढ़े, हम समृद्ध हों, लेकिन हमारा परलोक भी ठीक हो जाए, हमारी संतति भी शुद्ध हो, ऐसी कोई चिंता नहीं है।
ऐसा आज के समाज में हो रहा है। संतों, ब्राह्मणों, विद्वानों से आशीर्वाद का संपर्क है, वास्तविक लाभ उठाना नहीं चाहते। उनके विचारों के अनुसार अपने जीवन क्रम को बनाना नहीं चाहते। केवल गुरु वशिष्ठ आशीर्वाद दे दें, काम तो आज के लोग अपनी मनमर्जी से ही करेंगे।
राम जी सबकुछ जानते हैं। तुलसीदास जी ने लिखा है...
गुरुगृँह गए पढऩ रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई।
वशिष्ठ जी वेद-पुराण सुनाते हैं, राम जी अत्यंत आदर के साथ सुनते हैं, जैसे कुछ जानते ही नहीं हों। उन्हें सब मालूम है। परमात्मा हैं, तो कौन-सा ज्ञान होगा, जो उनमें नहीं होगा, लेकिन इसके बाद भी वे अपने गुरु की पूरी बात सुनते हैं। समाज का भी बड़ा दूषण है, जो लाभ उठाना चाहिए पुरोहित से, ब्राह्मण से, संत से, गुरु से, वह नहीं उठाया जा रहा है। लोग अपने जीवन की गतिविधियों को नहीं सुधार रहे हैं, केवल गुरु महाराज का आशीर्वाद मिले, मैं खूब कमाऊं, खूब भोग करूं, थोड़े रुपए इनको भी दे दूं, बस इतना ही सम्बंध रह गया है। इसलिए समाज में जितना लाभ होना चाहिए लोगों को, उतना नहीं हो रहा है।
आज गायत्री जपने में बड़ी क्षमता है। कहा जाता है ब्राह्मणों ने जो ज्ञान अर्जित किया, वह गायत्री की महिमा से किया, व्रत, तप की महिमा से पूरे संसार में झंडा फहरा दिया। तो आज बड़ी दोष की अवस्था है, लोग ज्ञान से लाभ नहीं लेना चाहते हैं, केवल चमत्कार का लाभ चाहते हैं। रघुवंशी लोग केवल आशीर्वाद का चमत्कार नहीं चाहते थे।
क्रमश:
आज जो संत का सम्मान होना चाहिए, जो सम्मान पुरोहित का होना चाहिए, वह नहीं हो रहा है। समाज में इसमें बहुत अंतर आ गया है। लोग केवल औपचारिक रूप से संतों से जुड़ते हैं, गुरु से जुड़ते हैं, लाभ उठाने की प्रेरणा और उसके लिए समर्पित होना, सेवा भावी होना और उसके लिए निष्ठावान होना चाहिए। संत के लिए, गुरु के लिए, जैसे रघुवंशी लोग थे, आज वैसे लोग नहीं हो रहे हैं। रघुवंशियों के मन में अपने पुरोहित के प्रति कितना विश्वास था।
ताडक़ा, सुबाहू, मारीच इत्यादि राक्षस बहुत तंग कर रहे थे यज्ञ में, जब विश्वामित्र जी यज्ञ रक्षा के लिए राम, लक्ष्मण को लेने आए, तो दशरथ जी ने मना कर दिया, मेरे बच्चे छोटे हैं, राम के बिना एक क्षण नहीं रह सकता। ये क्या लड़ेंगे राक्षसों से, ये तो बहुत छोटे हैं। मैं नहीं दूंगा पुत्र।
गुरु वशिष्ठ जी ने तत्काल कहा, राम जी आपकी गोद में बैठने के लिए आए हैं क्या, पूरे संसार को बनाने वाले संहार करने वाले हैं, इनको आप क्या समझ रहे हैं। अरे, ये तो आए ही हैं इसी काम के लिए कि यज्ञ की रक्षा कैसे हो, वेदों, ब्राह्मणों, साधुओं, संतों, तपस्वियों की सेवा के लिए, समाज के लिए काम करने वालों के लिए, पूरे संसार में अच्छे भाव हों, इसके लिए राम जी आए हैं, केवल आपके आंगन में खेलने के लिए नहीं आए हैं, इसलिए इन्हें जाने दीजिए।
दशरथ जी ने अपनी गलती को समझा और राम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ भेज दिया। वरना विश्वामित्र नाराज हो जाते, यज्ञ की रक्षा नहीं होती, शापित कर देते दशरथ जी को, राम जी अगर जाते नहीं हैं, तो चारों भाइयों का विवाह तब नहीं हुआ होता। जो राम जी की महानता है, उनका जो जीवन है, उसका प्रारंभ विश्वामित्र जी के साथ ही हुआ। वशिष्ठ जी केवल केवल ज्ञानी ही नहीं हैं, सफल अध्यापक हैं। कौन-सा ऐसा ज्ञान विज्ञान है, जो वशिष्ठ में नहीं है। जो पढ़ेगा, उन्हें जानेगा, उसका लौकिक और आध्यात्मिक जीवन आलोकित होगा, इसलिए गुरु वशिष्ठ को प्राप्त करने के लिए हमें रघुवंशियों जैसा बनना चाहिए और रघुवंशियों जैसा बनने के लिए हमें गुरु वशिष्ठ को प्राप्त करना चाहिए और गुरु वशिष्ठ जैसा बनने के लिए हमें गुरु वशिष्ठ से प्रेरणा लेनी चाहिए। हमें अपने जीवन को सभी अच्छी क्रियाओं से जोडऩा चाहिए। हमारा जीवन रामराज्य का जीवन होगा, हमारा जीवन रघुवंशियों का जीवन होगा। गुरु वशिष्ठ की प्रेरणा से उनके मार्ग पर चलकर ही रामराज्य आ सकता है।
आज गुरुओं में संयम, नियम, तप की बहुत कमी आ गई है, यह बड़ी चिंता का विषय है। ऐसा नहीं है कि बीज नष्ट हो गया हो, संख्या कम हो गई हो, हां, वोल्टेज कम हो गया है। उतनी शक्ति नहीं रही। एक बड़ी विडंबना है, लोकतंत्र में बहुत कम लोग हैं, जो गुरु वशिष्ठ से सीखकर राज्य का संचालन करते हैं।
एक बड़े विद्वान कह रहे थे कि एक नेता उनके यहां बहुत आया करते थे, जब मुख्यमंत्री हो गए, तब भी शुरू में एक महीना में एक बार मिलने लगे, एक साल बीत गए, तो दो महीने में एक बार मिलने लगे, बाद में छह महीने में एक बार मिलने लगे, पांचवा साल आया, तो एक ही बार मिले, लेकिन जब दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, तो एक बार भी नहीं मिले। वे राजनीति शास्त्र के विद्वान हैं, वो सुना रहे थे मुझसे जबलपुर में। तो आज की जो राजशाही है, जो राजनेता हैं, बड़े शिक्षाविद् हैं, लौकिक शिक्षा और ऐसे ही विभिन्न क्षेत्रों के जो लोग हैं, उन्होंने चमत्कार का लाभ उठाया और बाद में मान लिया कि यह मेरा ही काम है।
ऐसे लोग अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन नहीं लाते हैं। आध्यात्मिक ऊर्जा या किसी ढंग के संत, पुरोहित से अपने को नहीं जोड़ते हैं। वे सोचते हैं कि जो मैं कर रहा हूं, मैं वहीं करूंगा, केवल हमें लाभ मिलना चाहिए। अभी क्षत्रियों में कम लोग हैं, जो संध्या वंदन करते होंगे, लेकिन वेदों में लिखा गया है कि ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों को जनेऊ पहनना चाहिए। वैश्य लोग सर्वथा दूर हो गए, वे संतों की सन्निधि में कम रहते हैं, बस कुछ देर के लिए मिले, आशीर्वाद लिया, चिंता है कि हमारा धन बढ़े, हम समृद्ध हों, लेकिन हमारा परलोक भी ठीक हो जाए, हमारी संतति भी शुद्ध हो, ऐसी कोई चिंता नहीं है।
ऐसा आज के समाज में हो रहा है। संतों, ब्राह्मणों, विद्वानों से आशीर्वाद का संपर्क है, वास्तविक लाभ उठाना नहीं चाहते। उनके विचारों के अनुसार अपने जीवन क्रम को बनाना नहीं चाहते। केवल गुरु वशिष्ठ आशीर्वाद दे दें, काम तो आज के लोग अपनी मनमर्जी से ही करेंगे।
राम जी सबकुछ जानते हैं। तुलसीदास जी ने लिखा है...
गुरुगृँह गए पढऩ रघुराई। अलप काल बिद्या सब आई।
वशिष्ठ जी वेद-पुराण सुनाते हैं, राम जी अत्यंत आदर के साथ सुनते हैं, जैसे कुछ जानते ही नहीं हों। उन्हें सब मालूम है। परमात्मा हैं, तो कौन-सा ज्ञान होगा, जो उनमें नहीं होगा, लेकिन इसके बाद भी वे अपने गुरु की पूरी बात सुनते हैं। समाज का भी बड़ा दूषण है, जो लाभ उठाना चाहिए पुरोहित से, ब्राह्मण से, संत से, गुरु से, वह नहीं उठाया जा रहा है। लोग अपने जीवन की गतिविधियों को नहीं सुधार रहे हैं, केवल गुरु महाराज का आशीर्वाद मिले, मैं खूब कमाऊं, खूब भोग करूं, थोड़े रुपए इनको भी दे दूं, बस इतना ही सम्बंध रह गया है। इसलिए समाज में जितना लाभ होना चाहिए लोगों को, उतना नहीं हो रहा है।
आज गायत्री जपने में बड़ी क्षमता है। कहा जाता है ब्राह्मणों ने जो ज्ञान अर्जित किया, वह गायत्री की महिमा से किया, व्रत, तप की महिमा से पूरे संसार में झंडा फहरा दिया। तो आज बड़ी दोष की अवस्था है, लोग ज्ञान से लाभ नहीं लेना चाहते हैं, केवल चमत्कार का लाभ चाहते हैं। रघुवंशी लोग केवल आशीर्वाद का चमत्कार नहीं चाहते थे।
क्रमश:
No comments:
Post a Comment