भाग -५
जैसे सूर्य का प्रकाश बहुत काम करता है, लेकिन ब्रह्मर्षि नहीं बना सकता, वह संसार की सभी वस्तुओं को बनाता है, लेकिन क्या वह कोई ब्रह्म ज्ञानी पैदा करेगा, क्या कोई रघुवंश को पैदा करेगा? रघुवंशी सूर्यवंशी ही हैं, लेकिन रघुवंशियों को जो ज्ञान हुआ, वह वशिष्ठ जी के कारण ही हुआ।
आज सभी गुरुओं को गुरु वशिष्ठ से प्रेरणा लेनी चाहिए, वह नहीं हो रहा है। गुरु वशिष्ठ होने के लिए बड़े त्याग ज्ञान की जरूरत है। रोग रहित रहने की कामना, तमाम तरह की जीवन की कमियों से दूर रहने की कामना। राजा का पद तो तुच्छ है, जिस अवस्था में पुरोहित रहता है, अपने जजमान के यहां, वहां राजा नतमस्तक होता है, जिसके चरणों की धूल के लिए तरसता रहता है। उसके आशीर्वाद से ही वह राजा है, वैभवशाली है, उसका ज्ञान बढ़ रहा है, उसके वंश की वृद्धि हो रही है। आज के संतों को गुरु़ वशिष्ठ से प्रेरणा लेनी चाहिए, तभी उनके जजमान का वंश रघुवंश के समान होगा, वहां राम जी प्रगट होंगे और रामराज्य की स्थापना होगी।
राम जी के जंगल जाने के बाद भी रघुवंश चला, भरत के दौर में भी रघुवंश आगे बढ़ा। अध्यात्म रामायण में लिखा है भरत जी अनशन करने लगे कि राम जी साथ चलेंगे, तभी अनशन तोडूंगा, नहीं तो शरीर छोड़ दूंगा।
गुरु वशिष्ठ ने कहा कि तुम क्या बालकपन कर रहे हो, एक बार आंख घुमाया, तो भरत जी आकर चरणों में बैठ गए। यदि भरत जी शरीर छोड़ देते, तो राम जी बहुत मुश्किल में पड़ जाते, जंगल से लौटना भी नहीं था, पिता जी ने जो वरदान दिया था, वह यदि नहीं पूरा होता, तो पाप लगता, वे जो स्वर्ग में गए थे नीचे उतर आते। राम जी बार-बार दोहराते हैं, पिता की कीर्ति अनुकरणीय है, अनुपम है, उसके लिए हम लोगों को प्रयास करना चाहिए, उन्होंने माता जी को वरदान दिया था, यदि वह वरदान पूरा नहीं करते हैं, तो निश्चित रूप से कीर्ति नष्ट होगी। हम लोग पुत्र होकर क्या करेंगे, हमारा पुत्रत्व तब नष्ट हो जाएगा, जब पिता स्वर्ग से नीचे आ जाएंगे। तो इन सभी क्रमों, स्थानों व्यवस्थाओं में गुरु वशिष्ठ की अहम भूमिका है और गुरु वशिष्ठ कहीं से भी लालची नहीं हैं, क्रोधी नहीं हैं, संपूर्ण ज्ञानी हैं। वे केवल ज्ञानी ही नहीं हैं, ज्ञान उनके रोम-रोम में उतरा हुआ है। संसार में तमाम व्यावहारिक कर्म के वे ज्ञाता हैं, नियामक हैं, प्रेरक हैं, आज के गुरुओं को निस्संदेह प्रेरणा लेनी चाहिए कि हम भी गुरु वशिष्ठ के जैसे बनें। हमारा ज्ञान ऐसा बढ़े कि हम ईश्वर के सदृश हो जाएं, हमारा नियम, संयम, प्रतिष्ठा, हमारी समाधि, हमारा द्वंद्व, काम करने का गुण ऊंचाई को प्राप्त हो, हम अपने कमाए हुए धन से अपना भी भला करें, अपने जजमान का भी भला करें, राज्य का भी भला करें। हमारा इतना वोल्टेज हो या इतनी ऊर्जा हो तप, ज्ञान, विज्ञान की कि उससे संपूर्ण संसार लाभान्वित हो। संपूर्ण संसार पे्ररित हो। इसके लिए हमें गुरु वशिष्ठ से प्रेरणा लेकर और गुरु वशिष्ठ के समान बनकर लोगों को लाभान्वित करना चाहिए। यह संतत्व की पराकाष्ठा है। यदि किसी को संत में निष्ठा नहीं हो रही है, तो उसे वशिष्ठ जी को ही संत में रूप में देखते हुए प्रेरणा लेनी चाहिए।
क्रमश:
जैसे सूर्य का प्रकाश बहुत काम करता है, लेकिन ब्रह्मर्षि नहीं बना सकता, वह संसार की सभी वस्तुओं को बनाता है, लेकिन क्या वह कोई ब्रह्म ज्ञानी पैदा करेगा, क्या कोई रघुवंश को पैदा करेगा? रघुवंशी सूर्यवंशी ही हैं, लेकिन रघुवंशियों को जो ज्ञान हुआ, वह वशिष्ठ जी के कारण ही हुआ।
आज सभी गुरुओं को गुरु वशिष्ठ से प्रेरणा लेनी चाहिए, वह नहीं हो रहा है। गुरु वशिष्ठ होने के लिए बड़े त्याग ज्ञान की जरूरत है। रोग रहित रहने की कामना, तमाम तरह की जीवन की कमियों से दूर रहने की कामना। राजा का पद तो तुच्छ है, जिस अवस्था में पुरोहित रहता है, अपने जजमान के यहां, वहां राजा नतमस्तक होता है, जिसके चरणों की धूल के लिए तरसता रहता है। उसके आशीर्वाद से ही वह राजा है, वैभवशाली है, उसका ज्ञान बढ़ रहा है, उसके वंश की वृद्धि हो रही है। आज के संतों को गुरु़ वशिष्ठ से प्रेरणा लेनी चाहिए, तभी उनके जजमान का वंश रघुवंश के समान होगा, वहां राम जी प्रगट होंगे और रामराज्य की स्थापना होगी।
राम जी के जंगल जाने के बाद भी रघुवंश चला, भरत के दौर में भी रघुवंश आगे बढ़ा। अध्यात्म रामायण में लिखा है भरत जी अनशन करने लगे कि राम जी साथ चलेंगे, तभी अनशन तोडूंगा, नहीं तो शरीर छोड़ दूंगा।
गुरु वशिष्ठ ने कहा कि तुम क्या बालकपन कर रहे हो, एक बार आंख घुमाया, तो भरत जी आकर चरणों में बैठ गए। यदि भरत जी शरीर छोड़ देते, तो राम जी बहुत मुश्किल में पड़ जाते, जंगल से लौटना भी नहीं था, पिता जी ने जो वरदान दिया था, वह यदि नहीं पूरा होता, तो पाप लगता, वे जो स्वर्ग में गए थे नीचे उतर आते। राम जी बार-बार दोहराते हैं, पिता की कीर्ति अनुकरणीय है, अनुपम है, उसके लिए हम लोगों को प्रयास करना चाहिए, उन्होंने माता जी को वरदान दिया था, यदि वह वरदान पूरा नहीं करते हैं, तो निश्चित रूप से कीर्ति नष्ट होगी। हम लोग पुत्र होकर क्या करेंगे, हमारा पुत्रत्व तब नष्ट हो जाएगा, जब पिता स्वर्ग से नीचे आ जाएंगे। तो इन सभी क्रमों, स्थानों व्यवस्थाओं में गुरु वशिष्ठ की अहम भूमिका है और गुरु वशिष्ठ कहीं से भी लालची नहीं हैं, क्रोधी नहीं हैं, संपूर्ण ज्ञानी हैं। वे केवल ज्ञानी ही नहीं हैं, ज्ञान उनके रोम-रोम में उतरा हुआ है। संसार में तमाम व्यावहारिक कर्म के वे ज्ञाता हैं, नियामक हैं, प्रेरक हैं, आज के गुरुओं को निस्संदेह प्रेरणा लेनी चाहिए कि हम भी गुरु वशिष्ठ के जैसे बनें। हमारा ज्ञान ऐसा बढ़े कि हम ईश्वर के सदृश हो जाएं, हमारा नियम, संयम, प्रतिष्ठा, हमारी समाधि, हमारा द्वंद्व, काम करने का गुण ऊंचाई को प्राप्त हो, हम अपने कमाए हुए धन से अपना भी भला करें, अपने जजमान का भी भला करें, राज्य का भी भला करें। हमारा इतना वोल्टेज हो या इतनी ऊर्जा हो तप, ज्ञान, विज्ञान की कि उससे संपूर्ण संसार लाभान्वित हो। संपूर्ण संसार पे्ररित हो। इसके लिए हमें गुरु वशिष्ठ से प्रेरणा लेकर और गुरु वशिष्ठ के समान बनकर लोगों को लाभान्वित करना चाहिए। यह संतत्व की पराकाष्ठा है। यदि किसी को संत में निष्ठा नहीं हो रही है, तो उसे वशिष्ठ जी को ही संत में रूप में देखते हुए प्रेरणा लेनी चाहिए।
क्रमश:
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