Wednesday, 16 November 2016

सती अनसूया जी : पति भक्ति अर्थात महाशक्ति

जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी


भाग - २
हमारे वैदिक सनातन धर्म ने इस धारणा को बहुत पुष्ट किया। संसार का हर पति चाहता है कि उसकी पत्नी केवल उसकी पत्नी रहे। मेरे ही विकास के लिए और मुझे ही सुख देने के लिए मेरा ही सहयोग करे। जाति, संप्रदाय, नस्ल, देश कोई भी हो, पूरी दुनिया के पुरुष यही सोचते हैं। 
वैदिक सनातन धर्म ने पतिव्रता स्त्रियों को बहुत महत्व दिया, उसका लाभ भी बताया और पतिव्रता न होने की हानि का भी वर्णन किया। यह भी बताया कि कैसे पतिव्रता रहा जा सकता है। इस देश में यह प्रथा बहुत पुरानी, अनादि है। काफी कोशिश करके समाज के अच्छे लोग पत्नियों को पतिव्रता, पति परायणा बनाने का उपक्रम करते रहते हैं। पतिव्रता स्त्रियों में अनसूया जी का स्थान सबसे ऊंचा है। उनका पूरा जीवन ही अपने पति महर्षि अत्रि जी के लिए अर्पित था। उनके मन में किसी दूसरे के लिए कोई भाव आया ही नहीं। कभी उन्होंने अपनी दृष्टि या दूसरी इन्द्रीयों को दूसरी ओर नहीं लगाया। कभी लोभ नहीं आया, किसी पुरुष को उन्होंने काम की भावना से नहीं देखा, उन्होंने अपने पति देव को ही अपना सबकुछ माना। उन्हें ही परिवार माना, राज्य व देश माना, संपूर्ण संसार उन्हीं को माना। पतिव्रता होने के लिए पत्नी का जीवन सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए। महर्षि अत्रि को भी अपनी पत्नी पर बड़ा अभिमान था। 
अनेक तरह की कथाएं अनसूया जी को लेकर कही जाती हैं। एक बड़ी प्रसिद्ध कथा है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश को भी अनसूया जी ने बालक बना दिया था। हुआ ऐसा कि सत्संग की परंपरा है ही, सत्संग में विभिन्न विषयों की चर्चा होती है। एक बार ब्रह्मा की पत्नी ब्रह्माणी, विष्णु की पत्नी लक्ष्मी और महेश की पत्नी गौरी परस्पर चर्चा कर रही थीं कि संसार में सबसे बड़ी पतिव्रता कौन है। सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता किसको माना जाए? बहुत देर तक वे चर्चा करती रहीं, पतिव्रत धर्म की चर्चा करती रहीं, दोष निकालती रहीं। अंत में उन्होंने निर्णय किया आज के काल में अत्रि जी की पत्नी अनसूया जी सर्वश्रेष्ठ पतिव्रता हैं। उनसे बड़ी पतिव्रता कोई नहीं है, ऐसा ब्रह्माणी, लक्ष्मी गौरी ने तय किया। यह बात ब्रह्मा, विष्णु, महेश तक पहुंची। चर्चा के बारे में बताया, उसके परिणाम के बारे में बताया। तीनों देवताओं ने कहा कि आप लोगों ने तय कर लिया है, तो परीक्षण भी होना चाहिए। हम तीनों जाते हैं ब्राह्मण वेष बनाकर उनकी परीक्षा लेते हैं। 
तीनों देवता महर्षि अत्रि जी के आश्रम पहुंच गए। तब अत्रि जी किसी विशेष परिस्थिति के कारण आश्रम के बाहर थे। आश्रम में ब्राह्मणों को देखकर अनसूया जी ने आदर, सत्कार किया। तीनों ब्राह्मणों ने कहा कि हम लोग आपके यहां आए हैं, अतिथि सत्कार होना चाहिए, भीक्षा भी हम लोग लेंगे, लेकिन हमारी शर्त है कि आप भिक्षा देने के पहले जितने वस्त्रों को आपने धारण कर रखा है, उन सभी को अपने से अलग रखकर हम लोगों को भीक्षा दें, तभी हम आपसे भिक्षा लेंगे। ऐसा ब्राह्मण वेषधारी ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने कहा, धर्म संकट उत्पन्न हो गया। अनसूया जी के सामने विकट परिस्थिति आ गई, उन्होंने भगवान का ध्यान किया, मन में ही कह रही हैं कि यदि पति के समान किसी दूसरे को नहीं देखा हो, यदि किसी भी देवता को पति के समान न माना हो, यदि मैं पति की अराधना में ही लगी रही हूं, तो मेरे सतीत्व के प्रभाव से ये तीनों ब्राह्मण नवजात बच्चे हो जाएं। तत्काल तीनों ही नन्हें बच्चे होकर अनसूया जी की गोद में खेलने लगे। अद्भुत घटना हो गई। दुनिया का सृजन करने वाले, पालन करने वाले और संहार करने की क्षमता रखने वाले देवता, तीनों ही अनसूया जी की गोद में खेलने लगे। तीनों ही बच्चे हो गए। यह इतिहास की अकेली घटना है। जिसकी शक्ति से ब्रह्मा विष्णु, महेश बालक रूप धारण कर लें, तो अनुमान लगाइए कि अनसूया जी कितनी महान पतिव्रता रही होंगी। 
क्रमश: 

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