भाग - २
पुरानी प्रथा है कि भगवान के साथ भगवान के भक्तों की भी सेवा करनी चाहिए। भागवत यानी जो भगवान के लिए अर्पित हैं, भागवतों की सेवा भी गुरु और ऋषियों के समान ही होनी चाहिए। शबरी का जो जीवन क्रम है, वह बड़ा ही प्रेरणादायक है, वह सैंकड़ों वर्षों तक प्रतिदिन दण्डकारण्य में जमा ऋषियों, संतों की सेवा करती रही थीं। विलक्षण प्रतिभा संपन्न थीं। जो रास्ता ऋषियों का होता था, उस रास्ते को बुहारने, साफ रखने, कंकड़ इत्यादि दूर करने, उस पर रेत बिछाने में उन्होंने अपना समय लगाया। और ऐसा करते हुए कभी अपने को प्रकट नहीं करना। प्रचारित नहीं करना। सुबह से पहले रात्रि में ही उठकर ये सारे काम करना, जिससे किसी को पता ही नहीं चलता था कि किसने यह किया है। सैंकड़ों वर्ष तक शबरी ऐसा करती रहीं। वह मतंग ऋषि के आश्रम में रहती थीं, मतंग ऋषि शबरी का महत्व समझते थे। उन्होंने शबरी को अद्भुत आध्यात्मिक आभा प्रदान की। ऐसा नहीं है कि वह धन लेकर आई थी, आज के साधु तो आते ही धन संग्रह में लग जाता है। बड़ा प्रश्न हो जाता है कि किसे संत समझा जाए। गुमराह अवस्था समाज के सामने खड़ी हो जाती है। किसे असली समझें, किसे नकली समझें। सनातन धर्म धन के बिना नहीं चल सकता। जीवन केवल खाने-पीने, वस्त्र, गृहस्थ जीवन के लिए ही नहीं है, आश्रम के लिए भी धन की जरूरत है। अनायास रूप से जो लोग धन दें, उसका उपयोग करें, मर्यादा से जीवन जीएं। ईश्वर की सेवा करें, जितना जरूरी हो, उतने ही धन का सेवन करें। शबरी के पास न रूप है, न जाति है, फिर भी उन्होंने पूर्णत: समर्पित होकर सेवा को अपना मार्ग बनाया। अब तो लोगों को विश्वास ही नहीं होगा कि सेवा करके अपने को सफल मानव बना सकते हैं, लेकिन शबरी ने ऐसा एक-दो दिन नहीं, सैंकड़ों वर्षों तक किया। उन्हें विश्वास था कि भगवान आएंगे। मतंग ऋषि पर विश्वास था। मतंग ऋषि ने स्वर्ग जाते हुए कहा था कि राम जी जरूर आएंगे, शबरी प्रतीक्षा करती रहीं। गुरु पर परम विश्वास था, इसी को श्रद्धा कहते हैं। शबरी को परम श्रद्धा थी कि राम जी जरूर आएंगे। गुरु की वाणी कभी मिथ्या नहीं होती।
गुरु ने जाते हुए कहा था, तुम्हें आशीर्वाद देता हूं, राम जी अवतार लेने वाले हैं, तुम्हें यहां आकर मिलेंगे।
गुरु ने यह नहीं कहा कि तुम बहुत सुन्दर बन जाओगी, नर्तकी बन जाओगी, धनवान बन जाओगी, रानी बन जाओगी। संत की मनोकामना पवित्र होती है। उनके आशीर्वाद में भी भलाई छिपी होती है। उन्होंने कहा, राम जी तुम्हें यहीं आकर मिलेंगे, राम जी के दर्शन के बाद तुम आ जाना, मेरे दिव्य धाम। शबरी लग गई तैयारी में कि राम जी आएंगे।
उसने नियम बना लिया, दूर-दूर तक मार्ग को बुहारना, अच्छे फलों को एकत्र करना, अच्छे फूलों का चयन करके माला बनाना और अपने दरवाजे पर बैठकर प्रतीक्षा करना। उपवास करना, भोजन नहीं, फलाहार नहीं, ईश्वर की प्रतीक्षा करना। जब भी कोई आहट हो, तो लगता था कि राम जी आ गए, सुबह से शाम हो जाती थी, दिन बीत जाता था। आज नहीं आए, तो कल आएंगे, आज किसी दूसरे ऋषि के आश्रम चले गए होंगे, कल आएंगे। शबरी ने १२ वर्ष प्रतीक्षा की। श्रद्धा थी, गुरु ने कहा है। रोम-रोम से संयम, नियम से जीवन जीया, और रोम-रोम से भक्ति प्रवाहित होती थी। शबरी के बारे में लोग कहते हैं कि न रंग-रूप और गंदा कपड़ा, इत्यादि-इत्यादि, लेकिन जो लोग अध्यात्म की उपलब्धि को नहीं समझते हैं, वही ऐसी बातें करते हैं। जिसने अपना जीवन संतों की सेवा में लगाया हो, वह ऐसा ही रह जाएगा क्या, जैसे अपने घर से आने के समय शबरी थी। उसके शरीर से तो आभा निकल रही थी। श्री राम जी ने देखकर ही समझ लिया कि यह तो महान तपस्विनी है। शबरी ने भी भगवान को देखा। चरणों में गिर पड़ी, भक्ति-श्रद्धा से उपजे आंसुओं से पैरों को धोया। हृदयाकाश से सेवा की। भगवान ने उन्हें पूरा सम्मान दिया, हाथों से पकडक़र उठाया, शबरी ने भगवान की सेवा की। कितनी खुशी है कि सामने राम बैठे हैं। अनेक तरह से वंदना की, अनेक तरह के फूलों, मालाओं से सजाया। संसार में आनंद की कमी नहीं है, लेकिन ऐसा आनंद दुर्लभ है, जब ईश्वर सामने बैठे हों। यह भी कहा जाता है कि भगवान तो मिल जाते हैं, लेकिन ऐसे भक्त रोज नहीं मिलते। भगवान का तो काम है, ऐसे भक्तों का मान बढ़ाना। सारी वर्ण व्यवस्था, सारी आश्रम व्यवस्था ऊंचाई और निचाई का भाव, जो विभाजित करने वाली बातें हैं, सब टूट गईं। कहीं कोई विभाजक रेखा नहीं रही, सेवा ने सारे बंधनों, सीमाओं को पार कर लिया। शबरी सतर्क है। आज कोई अपराध नहीं हो जाए, भगवान मेरे आश्रम में आए हैं।
क्रमश:
पुरानी प्रथा है कि भगवान के साथ भगवान के भक्तों की भी सेवा करनी चाहिए। भागवत यानी जो भगवान के लिए अर्पित हैं, भागवतों की सेवा भी गुरु और ऋषियों के समान ही होनी चाहिए। शबरी का जो जीवन क्रम है, वह बड़ा ही प्रेरणादायक है, वह सैंकड़ों वर्षों तक प्रतिदिन दण्डकारण्य में जमा ऋषियों, संतों की सेवा करती रही थीं। विलक्षण प्रतिभा संपन्न थीं। जो रास्ता ऋषियों का होता था, उस रास्ते को बुहारने, साफ रखने, कंकड़ इत्यादि दूर करने, उस पर रेत बिछाने में उन्होंने अपना समय लगाया। और ऐसा करते हुए कभी अपने को प्रकट नहीं करना। प्रचारित नहीं करना। सुबह से पहले रात्रि में ही उठकर ये सारे काम करना, जिससे किसी को पता ही नहीं चलता था कि किसने यह किया है। सैंकड़ों वर्ष तक शबरी ऐसा करती रहीं। वह मतंग ऋषि के आश्रम में रहती थीं, मतंग ऋषि शबरी का महत्व समझते थे। उन्होंने शबरी को अद्भुत आध्यात्मिक आभा प्रदान की। ऐसा नहीं है कि वह धन लेकर आई थी, आज के साधु तो आते ही धन संग्रह में लग जाता है। बड़ा प्रश्न हो जाता है कि किसे संत समझा जाए। गुमराह अवस्था समाज के सामने खड़ी हो जाती है। किसे असली समझें, किसे नकली समझें। सनातन धर्म धन के बिना नहीं चल सकता। जीवन केवल खाने-पीने, वस्त्र, गृहस्थ जीवन के लिए ही नहीं है, आश्रम के लिए भी धन की जरूरत है। अनायास रूप से जो लोग धन दें, उसका उपयोग करें, मर्यादा से जीवन जीएं। ईश्वर की सेवा करें, जितना जरूरी हो, उतने ही धन का सेवन करें। शबरी के पास न रूप है, न जाति है, फिर भी उन्होंने पूर्णत: समर्पित होकर सेवा को अपना मार्ग बनाया। अब तो लोगों को विश्वास ही नहीं होगा कि सेवा करके अपने को सफल मानव बना सकते हैं, लेकिन शबरी ने ऐसा एक-दो दिन नहीं, सैंकड़ों वर्षों तक किया। उन्हें विश्वास था कि भगवान आएंगे। मतंग ऋषि पर विश्वास था। मतंग ऋषि ने स्वर्ग जाते हुए कहा था कि राम जी जरूर आएंगे, शबरी प्रतीक्षा करती रहीं। गुरु पर परम विश्वास था, इसी को श्रद्धा कहते हैं। शबरी को परम श्रद्धा थी कि राम जी जरूर आएंगे। गुरु की वाणी कभी मिथ्या नहीं होती।
गुरु ने जाते हुए कहा था, तुम्हें आशीर्वाद देता हूं, राम जी अवतार लेने वाले हैं, तुम्हें यहां आकर मिलेंगे।
गुरु ने यह नहीं कहा कि तुम बहुत सुन्दर बन जाओगी, नर्तकी बन जाओगी, धनवान बन जाओगी, रानी बन जाओगी। संत की मनोकामना पवित्र होती है। उनके आशीर्वाद में भी भलाई छिपी होती है। उन्होंने कहा, राम जी तुम्हें यहीं आकर मिलेंगे, राम जी के दर्शन के बाद तुम आ जाना, मेरे दिव्य धाम। शबरी लग गई तैयारी में कि राम जी आएंगे।
उसने नियम बना लिया, दूर-दूर तक मार्ग को बुहारना, अच्छे फलों को एकत्र करना, अच्छे फूलों का चयन करके माला बनाना और अपने दरवाजे पर बैठकर प्रतीक्षा करना। उपवास करना, भोजन नहीं, फलाहार नहीं, ईश्वर की प्रतीक्षा करना। जब भी कोई आहट हो, तो लगता था कि राम जी आ गए, सुबह से शाम हो जाती थी, दिन बीत जाता था। आज नहीं आए, तो कल आएंगे, आज किसी दूसरे ऋषि के आश्रम चले गए होंगे, कल आएंगे। शबरी ने १२ वर्ष प्रतीक्षा की। श्रद्धा थी, गुरु ने कहा है। रोम-रोम से संयम, नियम से जीवन जीया, और रोम-रोम से भक्ति प्रवाहित होती थी। शबरी के बारे में लोग कहते हैं कि न रंग-रूप और गंदा कपड़ा, इत्यादि-इत्यादि, लेकिन जो लोग अध्यात्म की उपलब्धि को नहीं समझते हैं, वही ऐसी बातें करते हैं। जिसने अपना जीवन संतों की सेवा में लगाया हो, वह ऐसा ही रह जाएगा क्या, जैसे अपने घर से आने के समय शबरी थी। उसके शरीर से तो आभा निकल रही थी। श्री राम जी ने देखकर ही समझ लिया कि यह तो महान तपस्विनी है। शबरी ने भी भगवान को देखा। चरणों में गिर पड़ी, भक्ति-श्रद्धा से उपजे आंसुओं से पैरों को धोया। हृदयाकाश से सेवा की। भगवान ने उन्हें पूरा सम्मान दिया, हाथों से पकडक़र उठाया, शबरी ने भगवान की सेवा की। कितनी खुशी है कि सामने राम बैठे हैं। अनेक तरह से वंदना की, अनेक तरह के फूलों, मालाओं से सजाया। संसार में आनंद की कमी नहीं है, लेकिन ऐसा आनंद दुर्लभ है, जब ईश्वर सामने बैठे हों। यह भी कहा जाता है कि भगवान तो मिल जाते हैं, लेकिन ऐसे भक्त रोज नहीं मिलते। भगवान का तो काम है, ऐसे भक्तों का मान बढ़ाना। सारी वर्ण व्यवस्था, सारी आश्रम व्यवस्था ऊंचाई और निचाई का भाव, जो विभाजित करने वाली बातें हैं, सब टूट गईं। कहीं कोई विभाजक रेखा नहीं रही, सेवा ने सारे बंधनों, सीमाओं को पार कर लिया। शबरी सतर्क है। आज कोई अपराध नहीं हो जाए, भगवान मेरे आश्रम में आए हैं।
क्रमश:
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