(रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी के प्रवचन का अंश)
हमारी पौराणिक मान्यता है, सृष्टि को ब्रह्मा जी ने प्रकट किया। ब्रह्मा विष्णु महेश एक ही शक्ति के रूप हैं। कर्मों, गुणों के आधार पर उनका अलग अलग नाम पड़ जाता है। एक ही वायु जब हमारे नाकों से होकर जाती है, तो उसी वायु को प्राण वायु, अपान वायु इत्यादि कहते हैं। भगवान की दया से ब्रह्मा, विष्णु, महेश एक ही शक्ति के नाम हैं, सृष्टिकर्ता के रूप में ब्रह्मा पालन शक्ति के रूप में विष्णु और संहारकर्ता के रूप में महेश जी का नाम आता है।
ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की, तब ब्रह्मा जी ने अपने शरीर से दंपती को प्रकट किया, पति मनु और पत्नी शतरूपा। उनको अधिकृत किया। तब जल में निमग्न पृथ्वी थी। भगवान की सहायता से उसका उद्धार होना था। ब्रह्मा जी से उन्होंने कहा कि पृथ्वी तो निमग्न है, इस पर लोग कैसे उत्पन्न होंगे। कैसे इस पर रहेंगे उनका पालन कैसे होगा। तो ब्रह्मा जी ने भगवान से प्रार्थना की, आप इस पृथ्वी को जल से निकालें। तब भगवान ने अवतार लेकर पृथ्वी को जल से निकाला। परमपिता ब्रह्मा जी की कृपा से यह हुआ। अपने सनातन धर्म की यह मान्यता से सभी सहमत होंगे कि केवल वासना से उद्वेलित या प्रेरित होकर जो हम पुत्रोप्ति का क्रम अपनाते हैं, वह गलत है। संतति तो संयमी हो, श्रेष्ठ हो। श्रेष्ठ संतति का संकल्प होना चाहिए। केवल संतति होने से काम नहीं चलेगा। संतान ऐसी होनी चाहिए, जो गौरव बने। जो अपने ऋषियों की महिमा को, उनके ज्ञान-विज्ञान को विस्तार करने के लिए सोचे, पितरों की शांति के लिए भी प्रयास करे, समाज के लिए ईश्वर के लिए जीवन जीए। केवल अपने लिए ही कमाना और खाना यह कोई बड़ी बात नहीं है।
संयम, नियम से मन को विशुद्ध करके संतान उत्पन्न करने की बात होनी चाहिए, तभी सही संतति उत्पन्न होगी। इसके लिए शास्त्रों में काल का भी वर्णन हो। जब संतति उत्पत्ति के लिए मन हो, तो कैसा आचार-विचार होना चाहिए, यह सब वर्णित है। तभी ऐसी संतति उत्पन्न होती है, जो पूरे संसार के लिए उपयोगी होगी। अब तो ऐसी संतानें भी होने लगी हैं, जो अपनों का भी ध्यान नहीं रखतीं।
क्रमश:
हमारी पौराणिक मान्यता है, सृष्टि को ब्रह्मा जी ने प्रकट किया। ब्रह्मा विष्णु महेश एक ही शक्ति के रूप हैं। कर्मों, गुणों के आधार पर उनका अलग अलग नाम पड़ जाता है। एक ही वायु जब हमारे नाकों से होकर जाती है, तो उसी वायु को प्राण वायु, अपान वायु इत्यादि कहते हैं। भगवान की दया से ब्रह्मा, विष्णु, महेश एक ही शक्ति के नाम हैं, सृष्टिकर्ता के रूप में ब्रह्मा पालन शक्ति के रूप में विष्णु और संहारकर्ता के रूप में महेश जी का नाम आता है।
ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की, तब ब्रह्मा जी ने अपने शरीर से दंपती को प्रकट किया, पति मनु और पत्नी शतरूपा। उनको अधिकृत किया। तब जल में निमग्न पृथ्वी थी। भगवान की सहायता से उसका उद्धार होना था। ब्रह्मा जी से उन्होंने कहा कि पृथ्वी तो निमग्न है, इस पर लोग कैसे उत्पन्न होंगे। कैसे इस पर रहेंगे उनका पालन कैसे होगा। तो ब्रह्मा जी ने भगवान से प्रार्थना की, आप इस पृथ्वी को जल से निकालें। तब भगवान ने अवतार लेकर पृथ्वी को जल से निकाला। परमपिता ब्रह्मा जी की कृपा से यह हुआ। अपने सनातन धर्म की यह मान्यता से सभी सहमत होंगे कि केवल वासना से उद्वेलित या प्रेरित होकर जो हम पुत्रोप्ति का क्रम अपनाते हैं, वह गलत है। संतति तो संयमी हो, श्रेष्ठ हो। श्रेष्ठ संतति का संकल्प होना चाहिए। केवल संतति होने से काम नहीं चलेगा। संतान ऐसी होनी चाहिए, जो गौरव बने। जो अपने ऋषियों की महिमा को, उनके ज्ञान-विज्ञान को विस्तार करने के लिए सोचे, पितरों की शांति के लिए भी प्रयास करे, समाज के लिए ईश्वर के लिए जीवन जीए। केवल अपने लिए ही कमाना और खाना यह कोई बड़ी बात नहीं है।
संयम, नियम से मन को विशुद्ध करके संतान उत्पन्न करने की बात होनी चाहिए, तभी सही संतति उत्पन्न होगी। इसके लिए शास्त्रों में काल का भी वर्णन हो। जब संतति उत्पत्ति के लिए मन हो, तो कैसा आचार-विचार होना चाहिए, यह सब वर्णित है। तभी ऐसी संतति उत्पन्न होती है, जो पूरे संसार के लिए उपयोगी होगी। अब तो ऐसी संतानें भी होने लगी हैं, जो अपनों का भी ध्यान नहीं रखतीं।
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