Thursday, 31 December 2020

ओम जय जगदीश हरे


ओम जय जगदीश हरे

ओम जय जगदीश, स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का
सुख-सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी

तुम पूरण परमात्मा, तुम अंतर्यामी
पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता
मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति
किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति

दीनबंधु दुःखहर्ता, तुम रक्षक मेरे.
करुणा हस्त बढ़ाओ, द्वार पडा तेरे

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा

ओम जय जगदीश, स्वामी जय जगदीश हरे

पं. श्रद्धाराम शर्मा (या श्रद्धाराम फिल्लौरी) (१८३७-२४ जून १८८१) लोकप्रिय आरती ओम जय जगदीश हरे के रचयिता हैं। इस आरती की रचना उन्होंने १८७० में की थी।

ऋषियों से दिशा लेनी है

हमें ऋषियों से गौरव लेना है, ज्ञान लेना है, दिशा लेनी है। रामजी को परिपूर्ण जीवन मिला। गृहस्थ जीवन बिना दान-त्याग के अधूरा होता है। हम कह सकते हैं कि विश्वामित्र जी ने ही जानकी जी से राम जी का विवाह करवाया। यह भी अद्भुत घटना है। जनकपुर में रामजी हैं, उस विवाह में वशिष्ठ जी भी पहुंचते हैं, वहां विश्वामित्र जी पहले से हैं, कहीं कोई संतुलन नहीं बिगड़ता है। दोनों एक दूसरे के लिए भरपूर सम्मान रखते हैं, एक दूसरे का प्रभाव बढ़ाते हुए रामराज्य को सशक्त करते हैं। यदि हम इन ऋषियों से कुछ भी सीखते हैं, तो हमारा खोया हुआ जगतगुरुत्व, खोया हुआ जो संसार का नेतृत्व है, जो खोया हुआ हमारा वैभव है, वह हमें अवश्य प्राप्त हो जाएगा।


 


 


 


 


 


 

गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से

गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से

जाहूं हम जनतीं गुरुजी हमार आएब रामा
चरण पखरतीं अपना हाथ से
गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से
जाहूं हम जनतीं गुरुजी हमार आएब रामा
आसन लगइतीं अपना हाथ से
गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से
जाहूं हम जनतीं गुरुजी हमार आएब रामा
भोगवा बनइतीं अपना हाथ से
गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से
जाहूं हम जनतीं गुरुजी हमार आएब रामा
पनियां छनइतीं अपना हाथ से
गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से
जाहूं हम जनतीं गुरुजी हमार आएब रामा
आरती उतरतीं अपना हाथ से
गुरु चरण मिलेला बड़ी भाग से।

जय जय सियाराम

जगद्गुरु

Saturday, 1 August 2020

मंगलगीतम - महाकवि जयदेव

मंगलगीतम

श्रितकमलाकुचमण्डल धृतकुण्डल ए।
कलितललितवनमाल जय जय देव हरे।।
दिनमणिमण्डलमण्डन भवखण्डन ए।
मुनिजनमानसहंस जय जय देव हरे। श्रित..।
कालियविषधरगंजन जनरंजन ए।
यदुकुलनलिनदिनेश जय जय देव हरे। श्रित..।
मधुमुरनरकविनाशन गरुडासन ए।
सुरकुलकेलिनिदान जय जय देव हरे। श्रित..।
अमलकमलदललोचन भवमोचन ए।
त्रिभुवनभवननिधान जय जय देव हरे। श्रित..।
जनकसुताकृतभूषण जितदूषण ए।
समरशमितदशकण्ठ जय जय देव हरे। श्रित..।
अभिनवजलधरसुन्दर धृतमन्दर ए।
श्रीमुखचन्द्रचकोर जय जय देव हरे।। श्रित..।
तव चरणे प्रणता वयमिति भावय ए।
कुरु कुशलं प्रणतेषु जय जय देव हरे। श्रित..।
श्रीजयदेवकवेरुदितमिदं कुरुते मृदम्।
मंगलमंजुलगीतं जय जय देव हरे। श्रित..।

(श्री जयदेव रचित यह आरती जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी को अत्यंत प्रिय है। विशेष पूजा के अवसर पर आप इसी आरती को बड़ी भक्ति भाव से मीठे स्वर में गाते-गवाते हैं)

Jagadguru Ramanandacharya swami shriramnareshacharya ji



झूलन महोत्सव, जबलपुर






Monday, 8 June 2020

जबलपुर में चातुर्मास महापर्व

राम भक्ति धारा को समर्पित रामानंद संप्रदाय के वर्तमान पीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी इस वर्ष जबलपुर आश्रम में चातुर्मास करेंगे। नर्मदा किनारे स्थित प्रेमानंद आश्रम में भव्य पावन चातुर्मास महापर्व का प्रारंभ 5 जुलाई गुरु पूर्णिमा को होगा।
रामजी की कृपा छाया और महाराज स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी के सान्निध्य में चातुर्मास महापर्व में अनेक पूजा-अनुष्ठान, कार्यक्रम, प्रवचन, भजन, अध्ययन, स्वाध्याय, संगोष्ठी का आयोजन होगा।
जबलपुर आश्रम की विशालता, संसाधन, सुविधा और भक्त वृंद की प्रार्थना के फलस्वरूप यह आयोजन वहां होने जा रहा है। आश्रम विशाल होने के कारण कोरोना काल की जरूरी पाबंदियों की पालना भी यहाँ आसानी से हो सकेगी। सबकी सुविधा का ध्यान रखना आवश्यक है, ताकि चातुर्मास महापर्व का आनंद समान रूप से बना रहे।
जबलपुर में महाराज तीसरी बार चातुर्मास कर रहे हैं, इसके पूर्व 1990 और 2001 में वे यहाँ चातुर्मास महापर्व संपन्न कर चुके हैं।
महाराज का विगत चातुर्मास माउंट आबू, राजस्थान में आयोजित हुआ था। 

Saturday, 21 March 2020

हमारी मनमानी का कोरोना

जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी महाराज 

यह संसार ईश्वर द्वारा निर्मित है। इस संसार को देखकर-समझकर कभी किसी की भावना नहीं बनी कि आज या कल कोई ऐसा समृद्ध व्यक्ति या संगठन होगा, जो ऐसे ही किसी संसार की रचना कर सकेगा। संसार को ईश्वर ही बनाते हैं, वही पालन करते हैं और संहार भी कर सकते हैं। ईश्वर ने ही एक संविधान भी बनाया कि संसार में कैसे रहना है, कैसे स्वस्थ, शक्तिशाली, समृद्ध, विद्वान होकर रहना है। सही जीवन क्रमों के लिए ही ईश्वर ने संविधान की रचना की। जब इस संविधान का उल्लंघन होता है, तो उसी को अधर्म कहते हैं और उसी अधर्म से सभी तरह की विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न होती हैं। अधर्म से ही रोग, धन की हानि, प्रिय का वियोग बनता है। जीवन में जितने प्रकार के अड़चन आते हैं, जितने प्रकार के अपयश मिलते हैं, वो सब हमारे अधर्म का ही परिणाम हैं। जैसे ईश्वर ने कहा, सत्य बोलिए और हम असत्य बोलते हैं, तो उससे जो शक्ति पैदा हुई, उसका नाम अधर्म है। ईश्वर ने कहा, माता-पिता, विद्वान ब्राह्मण, गौ, नदियों, तीर्थों का सम्मान करें, और हम जब इसके विपरीत आचरण करते हैं, तब अधर्म उत्पन्न होता है। उससे दुख की प्राप्ति होती है, यह सनातन धर्म का सिद्धांत है। इसे सभी लोगों को मानना ही चाहिए। हम जब सही नियमों का पालन करते हैं और उससे जो शक्ति उत्पन्न होती है, उसे ही धर्म कहते हैं। आज सरकारों की जो दशा है, विकास की जो गति है, जो क्रम है, उसमें मनमानी बहुत हो रही है, ईश्वरीय नियमों की पालना नहीं हो रही है। जैसे कोई अपने वरिष्ठ के निर्देशों को नहीं मानेगा, तो निश्चित रूप से उसे क्षति पहुंचेगी। हम सब यह भूल जाते हैं कि संसार को बनाने वाला कौन है, संसार का पालन करने वाला कौन है? ईश्वर के संविधान को दरकिनार करके जीवन जीने की प्रवृत्ति तेजी के साथ बढ़ी है, यही मूल कारण है। न हमें यह ध्यान है कि हमें भोजन कैसा करना है। भोजन में भी अपने यहां विधान था कि सात्विक आहार ही लेना चाहिए। उसमें किसी तरह की विकृत्ति की आशंका न हो, जिससे निद्रा में वृद्धि न हो, जिससे रोगों की वृद्धि न हो। वेदों ने कहा कि आप सात्विक आहार लीजिए, तो आप रोगों से भी बच रहेंगे। शुद्ध आहार से ही आपके मन में श्रेष्ठ भाव आएंगे। आप शरीर, बुद्धि, अहंकार से भी स्वथ्य रहेंगे। तब आपका जीवन पूर्ण तैयार होगा, अपने लिए, परिवार के लिए, जाति के लिए, समाज के लिए, राष्ट्र के लिए, मानवता के लिए। तभी आपका चिंतन और निश्चय भी स्वस्थ होगा। 
अभी जो बड़ी विपत्ति आ गई है, जिससे पूरा संसार संतप्त है और जन की बहुत-बहुत हानि हो रही है। व्यवसाय बिगड़ रहे हैं, आम जनजीवन की व्यवस्थाएं डगमगा रही हैं, इसका कारण है कि हम ईश्वरीय विधान की पालना नहीं कर रहे हैं। 
केवल मनमानी जीवन जीने लगे हैं। बोलने लगे हैं कि जैसा हमें अच्छा लगेगा, वैसा ही करेंगे। तो जो भी अच्छा लग जाए, क्या उसी से विवाह कर लेंगे? संसार की किसी अच्छी परंपरा, किसी महर्षि, किसी संत ने यह नियम नहीं बनाया कि आप अपने रिश्ते में ही विवाह कर लें। हर सुंदर स्त्री को देख मन में गलत भाव आना पाप है और उसके लिए प्रयास करना तो और भी महा-पाप। जब व्यक्ति विधान को, संविधान को, जाति-परिवार की परंपराओं को ही नहीं मानेगा, तो कैसे चलेगा? अपने संविधानों-विधानों से और विशेष रूप से ईश्वर के विधान से व्यक्ति को कभी अलग नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए रावण, जिसका कुछ भी विधान से नहीं था। उसका आकार-प्रकार बड़ा हो गया, किन्तु विधान से नहीं हुआ, तो इसका परिणाम क्या हुआ? रावण का लगभग पूरा परिवार-समाज ही नष्ट हो गया। ‘रहा न कोऊ कुल रोवन हारा’। जिसके पास ऐश्वर्य की पराकाष्ठा थी, जिसके पास प्रभाव का अनुपम स्वरूप था, जिसके पास भोग के संसाधनों का अपरिमित समूह था, अंत में उसकी मृत्यु के बाद दो आंसू गिराने वाला कोई नहीं बचा। रावण को अधर्म का कोरोना खा गया। 
अभी कोरोना का जो स्वरूप है, यह ऐसे चल रहा है, जैसे वायु का प्रसार होता है। आज जल तत्व इतना दूषित हो गया है, पूरा कचरा पुण्य नदियों में गिरा दिया जाता है। देखा ही नहीं कि इसकी भी सफाई होनी चाहिए। गंगा किनारे रहने वाला व्यक्ति गंगा की महिमा नहीं समझ रहा है। गंगा लोगों को स्वर्ग देती थी, जो अब कीड़े-मकोड़े और गंदगी के अंबार से भरने लगी है। सारा कुछ कोरोना से व्याप्त हो गया है। क्या यह बात सही नहीं है कि शुद्ध जल के अभाव में बड़ी संख्या में लोग मर रहे हैं। वायुमंडल दूषित हो गया है। अंतरिक्ष तक दूषित हो गया है। यह कोरोना भी ईश्वर विधान के उल्लंघन का प्रकोप है, दंड है, ईश्वरीय दंड। 
अपनी समृद्धि को जैसे-तैसे बढ़ाने के जो प्रयास हो रहे हैं, उससे कूपित होकर ही ईश्वर ने ऐसे दंड का विधान किया है। यह किसी एक देश का दोष नहीं। आज हम देखते हैं कि कितने लोगों को कैंसर हो रहा है, एड्स हो रहा है, हृदय और किडनी की बीमारियां हो रही हैं, दुर्घटनाएं हो रही हैं, बलात्कार हो रहे हैं। जिन बच्चियों को ईश्वर का स्वरूप माना जाता है, कन्या पूजन का विधान है, मां के रूप में, बहन, बेटी के रूप में पवित्र भावना होती थी, वह अब कहां है? यह कोरोना तो कुछ भी नहीं है। ईश्वर, परंपरा, प्रकृति के नियमों का उल्लंघन ऐसे हो रहा है कि पूरा संसार वैसे ही नष्ट होने की कगार पर पहुंच रहा है। जान लीजिए, हम नहीं सुधरे, तो वैसे ही संसार को नष्ट हो जाना है, जैसे रावण, कंस नष्ट हो गए। 
बचने का यही तरीका है कि शास्त्रों के अनुरूप हम अपना भोजन शुद्ध करें। नहीं करेंगे, तो त्रासदी बढ़ती जाएगी। 
सारे लोगों को शास्त्रों की ओर से निर्देश है, आग्रह है कि आप अपने जीवन को केवल भोग या धन से नहीं जोड़ें। जीवन का दुराचारी स्वरूप न बनाएं। शास्त्र, वेद, परंपरा के अनादि विधान से जुडक़र अपने जीवन को कोरोना से बचाएं। 
आज लोभ, लालसा अनियंत्रित ढंग से बढ़ती जा रही है। लोग चाहने लगे हैं कि सबकुछ मेरा हो जाए, यह गद्दी मेरी हो जाए। जिसके पास पर्याप्त संसाधन हैं, वह भी चाहता है कि बाकी सब भी उसका ही हो जाए। सोने की लंका में वानर गए, वहां से एक टुकड़ा सोना उन्होंने नहीं उठाया। जब रामजी ने जीतने के बाद लंका से कुछ नहीं लिया, तो उनके वानर कैसे लेते? 
राम जी के बारे में लिखा है कि उनका धन पवित्र था और आचरण भी पवित्र। धन पवित्र होगा, तो ही आचरण पवित्र होगा। आचरण पवित्र होगा, तो ही धन पवित्र होगा, तब ही हम पाप से बचेंगे। तब हम बीमारी, विकृत्ति, चरित्रहीनता से बचेंगे। इसलिए वेदों में लिखा है कि भगवान उसी को मिलते हैं, जिनका मन पवित्र होता है, जो तमाम प्रकार के दूषण से बचे हुए निर्मल होते हैं। 
इस कोरोना से सीखने की जरूरत है कि हम विधान से ही जीवन जीएं। रोजगार, यश, पत्नी, धन, वैभव सब विधान से अर्जित करें। हमारा स्वास्थ्य भी विधान से ही पुष्ट हो। जो चीज भोजन के अनुकूल नहीं है, उसे खाकर हम अहिंसक, प्रेमी, संत, ऋषि कभी नहीं हो सकते। 
महात्मा गांधी ने सत्य, अहिंसा और प्रेम के मार्ग पर चलकर दुनिया के सामने ऐसा आदर्श प्रस्तुत कर दिया कि अंग्रेजों को भागना पड़ा। गांधीजी ऐसा इसलिए कर पाए, क्योंकि उनका भोजन पवित्र था, चरित्र पवित्र था, एक क्षण के लिए भी वे हिंसक नहीं हुए। सभी को प्रेम प्रदान करते रहे, झोंपड़ी से महल तक। अब ऐसा जीवन लुप्त हो रहा है। 
हमें संसार की कुछ बढ़ती समस्याओं के बारे में भी सोचना होगा। पूरे संसार में जो बेरोजगारी बढ़ रही है, जो इसके कारण नशा बढ़ रहा है, उससे भी शरीर-नाशक, समाज-नाशक किटाणु बढ़ रहे हैं। पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहे हैं। ध्यान रहे, जब किसी व्यक्ति के पास कोई काम नहीं होता है, तब उसका सबकुछ दूषित हो जाने की आशंका रहती है। वह कुछ भी खाएगा, कैसे भी पड़ा रहेगा, कोई काम नहीं, तो बुद्धि भी दूषित होती जाएगी। तो ऐसे प्रयास होने चाहिए कि युवाओं को रोजगार देकर क्रियाशील रखा जाए। क्रियाशील लोग किटाणुओं से बचे रहते हैं, उनमें किटाणुओं से लडऩे की क्षमता भी होती है। जिसको कोई काम ही नहीं, उसका मस्तिष्क तो खराब होगा ही। जो मशीन नहीं चलेगी, वह तो गई काम से। रोजगार का स्वरूप भी ऐसा होना चाहिए कि समाज में अच्छाई उत्पन्न हो। बुराई उत्पन्न करने वाले रोजगारों को नहीं बढ़ाना भी आवश्यक है। रोजगार-काम का स्वरूप सुधारने की प्रबल आवश्यकता है। 
कहते हैं कि कोरोना बुजुर्गों को निशाना बना रहा है। बुढ़ापा क्या है? बुढ़ापा मतलब मशीन जिसकी पुरानी हो गई, जो क्रियाशील नहीं। क्रियाशीलता समाप्त होती है, तो शरीर किटाणुओं का घर बनता जाता है। बड़ी उम्र के लोगों को भी भिन्न-भिन्न प्रकार से सक्रिय और स्वस्थ रहना चाहिए, तभी वे कोरोना ही नहीं, अन्य बीमारियों से भी लड़ सकेंगे।
इधर एक और बड़ा दूषण हुआ है, जिस पर ध्यान देना चाहिए। मृत देह पर असंख्य किटाणु उत्पन्न होते हैं। जैसे कोई पशु मरता है, तो गिद्ध बहुत दूर से देखकर भी आ जाते थे। ऐसे ही जब कोई मरता है, तो उस पर असंख्य किटाणु उत्पन्न होने लगते हैं। तो अपने यहां प्रथा थी कि जहां कोई मरा है, वहां कुछ खाना नहीं है, सबकुछ पहले धोना है, कुछ दिनों तक सीमित और संयमित आहार लेना है। कई-कई बार पूरा घर धुलता है, कपड़े व अन्य सामान धुलते हैं, ये सारी आवश्यक व्यवस्थाएं समाप्त हो रही हैं। लोग अब न तो श्मशान जाने पर नहाते हैं और घर लौटने पर। वैज्ञानिकों को भी यह पता है कि मृत देह पर असंख्य किटाणु पैदा होते हैं। एक किटाणु आता है, तो उसके पीछे कई आते हैं, नष्ट होने की यही प्रक्रिया है, किटाणुओं की पूरी व्यवस्था या शृंखला बनी हुई है। किटाणुओं को रोकने-नष्ट करने वाली जो व्यवस्थाएं और विधान थे, सबको लोग भूलते जा रहे हैं। आधुनिक होने के फेर में साफ-सफाई की पुरानी परंपराएं छोड़ते जा रहे हैं। प्राचीन सिद्धांतों की अवहेलना के कारण ही किटाणुओं-विषाणुओं का बाहुल्य हुआ है। सब्जियों में इंजेक्शन लगा देते हैं, कोल्ड स्टोरेज की परंपरा विकसित हो गई है, इससे भी किटाणुओं को बढ़ावा मिलता है। रोटी या ब्रेड को कई दिनों तक लोग खाते रहते हैं, उनमें अनेक किटाणु उत्पन्न हो गए होते हैं। हमारे यहां परंपरा रही है कि आहार को बहुत-बहुत शुद्ध रखना है। अब संसार में ज्यादा से ज्यादा लोगों को शास्त्र परंपरा और सही जीवन व्यवस्थाओं की ओर लौटना ही होगा।
जो ईश्वरीय विधान है, उससे हम दूर हट गए हैं, इसी कारण से ऐसे प्रकोप हो रहे हैं। यह संसार के लोगों के लिए चेतावनी है। अभी जो वर्षा हो रही है, सारी फसल नष्ट हो रही है। संसार में कहीं जंगल में आग, कहीं बेमौसम बर्फ, कहीं भयंकर तूफान, यह सब ईश्वर की ओर से दंड हैं, चेतावनी है। रावण को अनेक तरह से चेतावनी मिली, शुभचिंतकों ने समझाया, लेकिन उसकी मनमानी नहीं रुकी, तो राम आए और रावण का सब नष्ट हो गया। 
सभी लोगों को सावधान होकर अपने शाश्वत संविधान के दायरे में प्रयास करना चाहिए। जब हमारा आहार शुद्ध होगा, तभी हममें सही ज्ञान उत्पन्न होगा, प्रेम उत्पन्न होगा। जितने भी श्रेष्ठ भाव हैं, वो तभी उत्पन्न होंगे, जब हमारा मन शुद्ध होगा। इन सब बातों की भारतीय शास्त्रों में बड़ी चर्चा है और बाद में जो नए-नए पंथ आए, जिन्होंने ईश्वर के सही विधान को छोडक़र जीवन जीया और कोरोना के रूप में प्रकोप झेल रहे हैं। जहां गौतम बुद्ध का बड़ा प्रचार-प्रभाव था, चीन में, जहां अहिंसा को परम धर्म कहा गया, वहां लोग कोरोना के सबसे बड़े शिकार हुए हैं। वैसे ही संसार में जो लोग अनियंत्रित जीवन जीने वाले हैं, वो भी शिकार होंगे। पूरे संसार के लोगों को सावधान हो जाना चाहिए। मनमानी जीवन छोडि़ए। आज नियम न मानने वाले को फांसी तक हो जाती है, तो ईश्वर का यह संसार है, किसी पार्टी, जाति, धर्म का नहीं, उसके संविधान को मानना ही चाहिए। भोजन, वस्त्र, संबंधों की मर्यादा की पालना हो, तो हमारा जीवन वैसे ही पवित्र हो जाएगा, जैसे अयोध्यावासियों का हो गया था। राम राज्य आ जाएगा, कहीं कोई कोरोना नहीं होगा। कोई संदेह नहीं, स्वयं को सुधारे-संवारे बिना कोरोना को मिटाया नहीं जा सकता। जब हम यमुना को साफ नहीं कर पा रहे हैं, तो कोरोना से कैसे बचेंगे? हम जब पुण्य नदियों, बड़े तीर्थों, बड़े शहरों को ही साफ नहीं कर पा रहे हैं, जब भोजन की सामग्री मिलावट के कोरोना से दूषित है, दूध, घी, पूरा वायुमंडल ही दूषित है, तो हम कोरोना से कैसे बचेंगे? यह कोरोना तभी नष्ट होगा, जब हम शुद्ध और स्वच्छ होंगे और तभी हम जीवन के परम लाभ को प्राप्त करेंगे। 
जय सियाराम

Saturday, 4 January 2020

किंडल ई बुक में महाराज की प्रवचन पुस्तिका

जगद्गुरु महाराज रामानंदाचार्य स्वामीरामनरेशाचार्य जी की प्रवचन पुस्तिका अमेजॉन किंडल पर उपलब्ध है, कृपया लाभ उठायें, जय सियाराम 
कृपया नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

दुःख क्यों होता है?

सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।

वैदिक श्रीरामानंद संप्रदाय की प्रधान आचार्य पीठ काशी के पंचगंगा घाट पर स्थित श्रीमठ के वर्तमान पीठाधिपति श्रीमज्जगद्गुरु रामानंदाचार्य पूज्यपाद श्रीस्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज रविवार से जयपुर में विराजेंगे। श्रीरामानंद आध्यात्मिक सेवा समिति, जयपुर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज के सान्निध्य में 'रघुनायक गुणगान' 5 जनवरी से 9 जनवरी तक पीतल फैक्ट्री स्थित खंडाका हाउस में होगा।
पांच दिनों तक चलने वाले समारोह में प्रतिदिन प्रात: 9:30 बजे आचार्यचरण पूजन और 10 बजे स्वाध्याय होगा। महाराजश्री के प्रवचन सायं 4 बजे होंगे।
आप भी पधारें...
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान॥