जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी
अयोध्या में श्रीरामलला जी की प्रतिष्ठा 22 जनवरी को हो चुकी है, इससे जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी भी बहुत खुश हैं और इसी खुशी को विस्तार देते हुए उन्होंने घोषणा की है कि रामजी की कृपा से बहुत प्रसन्नता की बात है कि मेरे संकल्प का अद्वितीय श्रीराम मंदिर हरिद्वार में बनने जा रहा है और 22 फरवरी से नई ऊर्जा के साथ मंदिर का निर्माण पुन: शुरू हो जाएगा। प्रयास होगा कि जल्द से जल्द अद्वितीय राममंदिर का निर्माण कर देश और समाज के सामने रामभाव व रामभक्ति का एक और आदर्श प्रस्तुत किया जाए।
जगदगुरु रामानंदाचार्य ने एक चैनल से बात करते हुए बताया है कि रामजी अपने पूरे जीवन में जोड़ते ही रहे, जिसके अनेक उदाहरण हैं। मैं लोगों से कहता हूं कि रामजी ने राजा बनने के बाद पहला जो भाषण दिया था, तो उन्होंने कहा था, यदि मैंने कोई भी गलत बात कही हो, तो आप भय छोड़कर मुझे रोक सकते हैं। कहीं भी मेरे कर्म में कोई पक्षपात लगे, कोई रोकने लायक काम लगे, तो आप मुझे रोक दीजिएगा।
रामानंदाचार्य जी के अनुसार, मैं अपनी मर्यादा से हटकर एक शब्द भी कहने का पक्षधर नहीं हूं। मैं निरंतर जोड़ रहा हूं, सुधार रहा हूं और जोड़ने का ही प्रयास होना चाहिए। अयोध्या धाम में भी 98 प्रतिशत आश्रम रामानंद संप्रदाय के ही हैं। अयोध्या में रामानंद संप्रदाय के साधु खूब हैं, रामजी उनके ईष्ट हैं। अयोध्या भी मोक्षपुरियों में सिरमौर मानी जाती है। वहां अखाड़े भी हैं, पहलवान भी हैं।
मैं आपको बताना चाहता हूं कि एक बहुत बड़ी घटना अयोध्याजी में हनुमानगढ़ी में होने वाली थी, कुछ लोग वैमनस्य वाले थे, उन्होंने सोचा कि मौका अच्छा है, पर ऐन मौके पर ज्ञान हुआ और लोग मुकर गए कि हम ऐसा नहीं करेंगे। रामकाज में बाधा नहीं बनेंगे।
वह इतिहास को याद करते हुए बताते हैं कि जब अयोध्या में विवाद हुआ, तब राष्ट्रीय स्तर पर तय हुआ था कि एक ट्रस्ट बन जाए, जो विवाद को सुलझाए, ताकि श्रीरामलला का मंदिर बन जाए और सही रीति से ट्रस्ट वर्षों-वर्षों तक मंदिर का संरक्षण करे। मेरे पहले जो रामानंदाचार्य थे, जगदगुरु रामानंदाचार्य श्रीशिवरामाचार्य जी महाराज, उनको लोगों ने अध्यक्ष बनाया। वह वर्ष 1978 में रामानंदाचार्य बने थे और मैं उनके बाद 1988 में रामानंदाचार्य बना। ट्रस्ट का एक नियम था कि मुख्य रामानंदाचार्य पीठ का आचार्य ही अध्यक्ष बनेगा। हालांकि, ट्रस्ट के कार्य को कभी मेरे पास आने नहीं दिया गया। दूसरे महात्माओं के पास ही कार्यभार रहा, किंतु उनके प्रति मेरे मन में कोई द्वेष कभी नहीं आया। उनका मुझसे स्नेह भी निरंतर बना रहा।
एक बार मैं अयोध्या गया, तो अनेक लोगों ने कहा कि मूल पीठ का रामानंदाचार्य होने के नाते ट्रस्ट का नेतृत्व मेरे हाथों में ही होना चाहिए और मुझे न्यायालय का सहारा लेना चाहिए, किंतु मैंने कहा, जो लोग अभी काम संभाल रहे हैं, अपने ही स्नेही हैं। मेरी प्रवृत्ति कभी लड़ने की नहीं रही है। मेरी केवल जोड़ने की ही इच्छा रही है। आज भी मैं द्वेष, ईष्र्या से परे केवल जोड़ने में ही विश्वास करता हूं। जब तक मेरा जीवन रहेगा, मैं रामजी की सेवा करता रहूंगा, जो भी धन मेरे पास होगा, वह रामजी में ही लगाऊंगा। पूरी मर्यादा और सीमा में रहने वाले हम रामानंदी विचारधारा के लोग हैं, लड़ना बहुत छोटा काम है और जोड़ना बड़ा काम।
वह उल्लसित भाव से बताते हैं कि अयोध्या में श्रीरामलला के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के लिए मुझे आमंत्रण मिला या नहीं मिला, यह बहुत महत्व की बात नहीं है। कोई विद्यार्थी शायद ही ऐसा होता होगा, जो सारे प्रश्नों का सही हल करके आता होगा। कोई भंडारी शायद ही ऐसा होता होगा, जो हर बार रसोई पूरी तरह सही ही बनाता होगा। कभी हल्दी ज्यादा पड़ना, तो कभी नमक ज्यादा हो जाना, कभी मसाला ज्यादा। ऐसी भूलें होती रहती हैं, इतना बड़ा कार्यक्रम है, निमंत्रण देने का क्रम भी बहुत बड़ा होगा, तो उसमें बांटने वाले लोग सीमित होंगे, उनकी एक सोच होगी, तो कहीं से कोई नाम आमंत्रण से रह गया, तो जो अवसर आया है, भगवान की प्रतिष्ठा का, इतने बड़े समायोजन का, तो इसमें किसी प्रकार का क्षोभ, किसी प्रकार की उदासीनता, कहीं कोई चिंता, शिकायत इसलिए भी नहीं है कि अब जब फल आ ही गया है, तब नाचने की जरूरत है, गाने की जरूरत है। आयोजन में जाकर जो बन सके सेवा करने की जरूरत है, उसके लिए शिकायत नहीं कि निमंत्रण नहीं आया। ऐसे में शिकायत करना तो ऐसा ही हुआ कि जो पढ़े-लिखे नहीं हैं, कि इधर बारात आ गई है और दूल्हा रूठ जाए कि अब मैं शादी नहीं करूंगा। मेरा सही सम्मान नहीं हुआ। ( हंसते हुए -अब हम शादी न करब, हमार सही सम्मान न भइल)।
हम उस प्रकृत्ति के नहीं हैं। जो लोग मुझे रामानंदाचार्य बनाकर लाए थे, कहते थे कि आपको पालकी पर ढोएंगे। आपको कुछ नहीं करना है, आप केवल चलिए।
रामजी की कृपा से आज भी कोई भी मेरा क्रम रुकता नहीं है, किसी आदमी के बिना या पैसे के बिना। रामकाज में कहीं से कोई कमी नहीं आती, जो संसाधन आता है, वह दूसरों के भी काम आता है। मैं कहता हूं कि लोग भगवान से न जाने क्या-क्या मांगते हैं, पर भगवान से आज तक मैंने कुछ भी कहा नहीं, जरूरत ही नहीं है, वह सबकुछ समयानुसार स्वयं ही दिए जा रहे हैं।
No comments:
Post a Comment