विवाह तो बाद में होता है। २५-३० वर्ष का होने के बाद होता है। विवाह का असली स्वरूप तो धर्म का संस्थापन है। अपने यहां माना गया है कि धर्म की संस्थापना में पत्नी की अहम भूमिका है। लक्ष्मी के रूप में कन्या को लाया जाता है। ब्राह्मण लोग संकल्प करवाते हैं, लक्ष्मीस्वरूपा कन्या को हम विष्णुस्वरूप वर को दे रहे हैं। लक्ष्मी छली नहीं हैं, वह सबका पोषण करती हैं, क्षमता के अनुसार पोषण करती हैं, भेदभाव नहीं करतीं। किन्तु आज जो पत्नी की भावना है, वह भोग प्रधान भावना है। पत्नी आएगी वासना की संतुष्टि का माध्यम बनेगी, उससे हमें संतति की प्राप्ति होगी, वह संतति बुढ़ापे में हमारी सहयोगी होगी। पत्नी और पुत्र-पुत्री से सम्बंध के मूल में धर्म का भाव समाप्त होकर भोग और धन का भाव आ गया है। लडक़ा होगा, तो राज्य संभालेगा, कमाएगा, तो परिवार समृद्ध होगा, बुढ़ापे का सहारा बनेगा। लोग सोचते हैं - पत्नी के बिना हमारा समय कैसे बीतेगा, भोग की जो भावना है, उसकी संतुष्टि कैसे होगी। पहले जो सर्वश्रेष्ठ भाव थे कि पत्नी लोक और परलोक, दोनों को सुधारने के लिए कारण बनेगी, धर्म ही लोक को ठीक करता है और परलोक को भी ठीक करता है, किन्तु यह भाव ओझल हो रहा है और भोग का भाव बढ़ रहा है। इन सम्बंधियों की अपेक्षा भातृत्व घटता जा रहा है। शादी हो जाती है, तो आदमी का माता-पिता से प्रेम, भाई, बहन से प्रेम, अन्य स्वाभाविक सम्बंधियों से प्रेम दबने लग जाता है। आज सम्बंध तो भोग और काम पर आधारित हो गया, अत: आवश्यक है कि इन सम्बंधों को महत्व धर्म के रूप में दिया जाए, उसी रूप में संवारा जाए, पुत्र को भी कहा जाए कि तुम मेरे धर्म पुत्र हो, आए हो, तो पितरों के लिए पिंडदान करोगे, बगीचा लगाया है, उसे बचाओगे, भातृत्व को भी समर्पित होगे, जैसे मेरे लिए भाव रखते हो, उसी तरह से मेरे भाई के लिए भी रखोगे, अपने भाई के लिए भी रखोगे, भले हम शरीर से अलग-अलग लगते हैं, किन्तु हम एक हैं।
भातृत्व पर आज जो खतरे के बादल मंडरा रहे हैं, बहुत गलत हो रहा है। इच्छा तो यही होती है कि अर्थ और काम के झंझावात में भातृत्व सम्बंध कभी नहीं उड़ें, किन्तु वास्तविक स्थिति यह है कि भातृत्व को धक्का पहुंचाने वाले जो सम्बंध हैं, उनमें पत्नी से सम्बंध की ज्यादा बड़ी भूमिका है। शादी हुई नहीं कि भातृत्व कमजोर पडऩे लगता है, पुत्र हुआ नहीं कि लगने लगता है कि ये हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण और उपयोगी सम्बंधी हैं, भातृत्व उतना उपयोगी नहीं है। जबकि भातृत्व तो प्राकृतिक रूप से मिला था, उसे कुंडली दिखलाकर बाजा-गाजा करके नहीं स्थापित किया गया। जीवन में २५ साल बाद जो सम्बंध उत्पन्न हुआ है, वह पुराने सम्बंधों की रक्षा के लिए है, उन्हें बढ़ाने और सुन्दर बनाने और सशक्त बनाने के लिए है, किन्तु होता यह है कि बाद में होने वाला सम्बंध पुराने सम्बंध के लिए घातक बन जाता है। लडक़े-लड़कियां और पत्नी घातक बन गए।
जो भी सम्बंध दुनिया में हैं, उसमें ध्यान में रखा जाए कि माता-पिता के साथ जो सम्बंध है, भातृत्व का जो सम्बंध है, बहनों के साथ जो सम्बंध है, उसकी रक्षा में ही बाकी सम्बंधों का उपयोग है। यदि पत्नी इसमें साथ नहीं दे, तो पत्नी से सम्बंध घाटे का हुआ न। एक सम्बंध बचाने में कई सम्बंध बलि चढ़ गए।
क्रमश:
भातृत्व पर आज जो खतरे के बादल मंडरा रहे हैं, बहुत गलत हो रहा है। इच्छा तो यही होती है कि अर्थ और काम के झंझावात में भातृत्व सम्बंध कभी नहीं उड़ें, किन्तु वास्तविक स्थिति यह है कि भातृत्व को धक्का पहुंचाने वाले जो सम्बंध हैं, उनमें पत्नी से सम्बंध की ज्यादा बड़ी भूमिका है। शादी हुई नहीं कि भातृत्व कमजोर पडऩे लगता है, पुत्र हुआ नहीं कि लगने लगता है कि ये हमारे लिए ज्यादा महत्वपूर्ण और उपयोगी सम्बंधी हैं, भातृत्व उतना उपयोगी नहीं है। जबकि भातृत्व तो प्राकृतिक रूप से मिला था, उसे कुंडली दिखलाकर बाजा-गाजा करके नहीं स्थापित किया गया। जीवन में २५ साल बाद जो सम्बंध उत्पन्न हुआ है, वह पुराने सम्बंधों की रक्षा के लिए है, उन्हें बढ़ाने और सुन्दर बनाने और सशक्त बनाने के लिए है, किन्तु होता यह है कि बाद में होने वाला सम्बंध पुराने सम्बंध के लिए घातक बन जाता है। लडक़े-लड़कियां और पत्नी घातक बन गए।
जो भी सम्बंध दुनिया में हैं, उसमें ध्यान में रखा जाए कि माता-पिता के साथ जो सम्बंध है, भातृत्व का जो सम्बंध है, बहनों के साथ जो सम्बंध है, उसकी रक्षा में ही बाकी सम्बंधों का उपयोग है। यदि पत्नी इसमें साथ नहीं दे, तो पत्नी से सम्बंध घाटे का हुआ न। एक सम्बंध बचाने में कई सम्बंध बलि चढ़ गए।
क्रमश:
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