चित्र श्री हिमांशु व्यास जी ने लिए हैं |
प्रवचन भाग - पांच
भोग बुरा नहीं है, किन्तु भोग धर्म के अनुकूल होना चाहिए। पूजन से जो शक्ति मिलेगी, उसका विनियोग सही समय पर, सही माध्यम से सही चीजों में होना चाहिए। आज शक्ति का विनियोग धर्मस्थलों पर भी सही ढंग से नहीं हो रहा है। जब यह कहा जाता है कि लोकतंत्र लोगों द्वारा, लोगों का, लोगों के लिए है, तो आप भी उत्तरदायित्व हैं। अच्छी व्यवस्था बनाने का उत्तरदायित्व आप पर भी है। किन्तु जान से किसी को न मारा जाए, जैसे आजकल लोग परंपरा, धर्म, समाज इत्यादि के नाम पर मार भी देते हैं। गलत लोगों को भयभीत जरूर करना चाहिए, बार-बार कहना चाहिए कि खबरदार, अगर कुछ गलत किया। धार्मिक, सात्विक और अच्छे परिवेश के निर्माण का उत्तरदायित्व सभी पर है। यदि हमारे सामने कुछ गलत हो रहा है, उसे हमें ही रोकना पड़ेगा।
देवी पूजन बढ़ रहा है, किन्तु जिस देवी पूजा के संस्कार ने स्त्रीत्व, मातृत्व और पुत्रित्व में भेद किया था, जो संयमित समाज बनाया था, वह अब कहां है? पहले तो मातृत्व भाव की पराकाष्ठा थी। भारत में मनुष्यता का चरम था, बताया जाता था कि अपनी पत्नी के अतिरिक्त जो भी है, उसे माता के स्वरूप में देखो। शक्ति के रूप में मां का स्वरूप सर्वोत्तम है। सबसे बड़ी शक्ति का स्रोत देवी ही हैं, जो संसार को चलाती हैं।
बड़े-बड़े प्रबंधन संस्थानों में यह समाजोपयोगी पढ़ाई नहीं हो रही है। जितनी भी ऊर्जा हो, उसका लाभ तभी है, जब मेरा जीवन संयम के साथ समाज में चले और दूसरों का भी चले। हमने जो अर्जित किया है राम भाव, जो ज्ञान अर्जित किया है, जो संयम अर्जित किया है, हमने जो विश्वास अर्जित किया है, हम सुख प्राप्त कर रहे हैं, यह हमारे लोक कल्याण के लक्ष्य के कारण ही संभव होता है। मठाधीशी से जो ऊर्जा उत्पन्न हो, तो सम्पूर्ण समाज को मार्ग दिखाएं, सबके कल्याण के लिए प्रयास करें।
लिखा गया है कि रघुवंशी लोग अपने लिए नहीं, बल्कि प्रजा के हित के लिए ही शादी करते थे। पत्नी से जो सुख मिलता है, उससे भी बहुत बड़े-बड़े सुख संसार में मिलते हैं। आज कोई पत्नी के साथ कितनी देर रहता है और कितनी देर ड्यूटी करता है? पत्नी को कम समय दिया जाता है, कार्य में ज्यादा ध्यान लगाया जाता है, तभी पत्नी का भी कल्याण होता है। पत्नी के प्रेम में जो सुख मिलता है, वह बहुत छोटा-सा सुख है। पुत्र का उत्पादन तो प्रजा के लिए है, वह हो गया, तो अब आपको कार्य पर ध्यान लगाना पड़ेगा, कृषि में शक्ति लगानी पड़ेगी, व्यवसाय में लगानी पड़ेगी, शक्ति अध्ययन-मनन में लगानी पड़ेगी, परिवार-समाज का शुभ सोचने और करने में लगानी पड़ेगी। यह बात लोगों को बताने की आवश्यकता है। शक्ति के विनियोग की बुद्धि के अभाव में न परिवार में बुद्धि दी जा रही है, न धर्म के अनुष्ठान में दी जा रही है, न राष्ट्र में दी जा रही है, न शिक्षण संस्थानों में दी जा रही है।
मेरे पास जो ऊर्जा है, मैं संन्यासी हूं, यदि सारी ऊर्जा मैं सडक़ पर दौडऩे में ही लगा दूं, तो कैसे होगा? कई बार लोग समझाते हैं कि महाराज, सुबह चार बजे उठकर घूमिए। मैं सुबह-सुबह टहलने निकल जाऊं, तो फिर राम नाम कौन जपेगा? ठीक इसी तरह मैं सारी ऊर्जा खाने में ही लगा दूं, शरीर और भुजाओं को सशक्त करने में ही लगा दूं, तो कैसे चलेगा? जितनी मेरी ऊर्जा है, उस ऊर्जा का लाभ यह होना चाहिए कि जैसे मेरा जीवन संयम के साथ समाज में चल रहा है, दूसरों का भी चले।
घंटों बीत जाते हैं खाना खाए हुए, कपड़ा बदले हुए, विश्राम किए हुए। इलाहाबाद में मैं जहां प्रवचन करता था, वहीं भंडारा भी बनता था, वहीं लोग भी मिलते थे, वहीं लोग रहते थे, लेकिन एक दिन भी मैंने अभाव के चिंतन में बर्बाद नहीं किया, कभी नहीं रोए कि ऐसी व्यवस्था में कैसे काम चलेगा। जब मैं जन्म लिया था, ...जन्म लेने के पहले की अवस्था तो और भी खराब थी, उससे तो अब बहुत बढिय़ा है, गंगा के तट पर हैं, जन्म लिया, तो नंगे बदन, न मल-मुत्र का पता था, न बोलने की क्षमता थी, उससे तो बहुत अच्छा है अब। थोड़े अभाव में ही सही, लगा हूं रामकाज में, संभवत: इसलिए मुझे लोग सम्मान देते हैं।
क्रमश:
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