Saturday, 29 March 2014

शक्ति का दुरुपयोग न हो - ६

प्रवचन : समापन भाग
तो हम लौटकर फिर अपनी बात पर आते हैं। दुनिया का कोई भी अमीर बताए कि वह पत्नी के साथ कितना समय बिताता है और उसे किसमें ज्यादा सुख मिलता है। अभी कोई अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से पूछे तो सही कि आपको किसमें ज्यादा आनंद आता है। आपको पत्नी के साथ ज्यादा आनंद आता है या अमरीका की समस्याओं के समाधान में? पत्नी के साथ भ्रमण में ज्यादा मजा आता है या चुनाव जीतने में या चुनाव जीतने के प्रयास करने में? ओबामा का उत्तर यही होगा कि मुझे ज्यादा आनंद अमरीका की सेवा में आता है। वह तो यही चाहेंगे कि वे अमरीका की अच्छी सेवा करें, ताकि लोग उन्हें फिर सेवा का मौका दें। स्त्री या पत्नी का सुख तो बहुत छोटा सुख है। कोई पूछे कि सुख किसमें मिलता है, तो बेहिचक कहना चाहिए कि सुख अपने कत्र्तव्य को निभाने में मिलता है। सचिन तेंदुलकर को छक्का लगाने में जो सुख मिलता होगा, वह कभी उनको अपनी पत्नी में नहीं मिलता होगा। यह जो लोग लड़कियों को छेडक़र सुख ले रहे हैं, स्वयं अपने साथ गलत कर रहे हैं, अपनी शक्ति का निर्लज्ज अपव्यय कर रहे हैं।
अभी पिछले दिनों में एक लडक़े को समझा रहा था। बहुत पहले जब वह मिला था, युवा था, पढ़ रहा था, उसने मुझसे कहा, मैं फलां लडक़ी से शादी करना चाहता हूं, तो मैंने कहा, मैं बतला दूंगा, किन्तु तुम पढ़ाई पर ध्यान लगाओ। वह सीए कर रहा था, मैंने समझाया कि पहले पढ़ाई करो, शादी के लिए सोचने का समय नहीं है, शादी इससे भी अच्छी लडक़ी से मैं करवा दूंगा, किन्तु अभी यदि शादी के चक्कर में पढ़ाई का क्रम टूट गया, तो जीवन बिगड़ जाएगा। समाज-परिवार में प्रतिष्ठा नहीं मिलेगी, केवल अपने सुख के लिए शादी करोगे, तो परिवार की दृष्टि से बाहर हो जाओगे, समाज से अलग हो जाओगे, सीए कैसे बनोगे? बाद में वह युवक सीए बना, शादी भी हुई। बाद में पता चला कि वह लडक़ा बिगड़ गया। बर्बाद हो गया। शेयर बाजार में बहुत पैसा बर्बाद कर दिया। पीने लगा, चरित्र का पतन हो गया, पत्नी से सम्बंध बिगड़ गया। उसके परिवार वालों ने फिर मुझसे गुहार लगाई, महाराज, इसे सही मार्ग पर लाइए, पहले भी आपने इसे सही मार्ग दिखाया था। १५ साल बीत चुके थे, इस बीच वह युवक मुझसे मिला नहीं था। फिर भी मैंने मिलने से मना नहीं किया, कोई भी अच्छा डॉक्टर कभी मरीज पर नाराज नहीं होता। यह नहीं कहता कि बीच में इतने दिन कहां थे, जाओ, अब तुम्हारी चिकित्सा नहीं करूंगा। वह मुझसे मिला। दुख जताया कि मैं आपसे मिल नहीं पाया। बीमार हो गया था, कई तरह की समस्याएं हैं। पैसे का बहुत नुकसान हुआ। पत्नी से झगड़ा हो गया।
पैसे और पत्नी से उपजी परेशानियों की बजाय मैंने तीसरी परेशानी के चर्चा की। मैंने कहा, तुम पहले स्वयं को संभालो, शरीर खराब हो रहा है, जीवित रहोगे, स्वस्थ रहोगे, तभी आनंद ले पाओगे। पैसा और पत्नी का उतना महत्व नहीं है, पहले तुम अपने चरित्र, मान-सम्मान को संभालो। तुम पहले पीना बंद करो, शुगर बढ़ रहा है, संभलो, नहीं तो मर जाओगे।
उसने कहा कि पत्नी के साथ नहीं रहूंगा। मैंने कहा, मैं गृहस्थ धर्म बिगाडऩे वाला व्यक्ति नहीं हूं। यह सलाह मैं नहीं दूंगा, पहले तुम स्वयं को संभालो, तलाक भी हो गया, तो हमारा संतों वाला विभाग तो है ही, चेला-गुरु साथ हो लेंगे।
उसने कहा, आज से मैं दौड़ंूगा, अपना ध्यान रखूंगा, समय पर दवाई लूंगा, स्वयं में सुधार लाऊंगा, किन्तु आप मुझे कभी मत छोडऩा।
तो मैं कहता हूं, चरित्र और अपना मान-सम्मान तो मूल धन है। लोग करोड़ों रुपया बैंक में रखते हैं, बैंक डूब जाते हैं, तो लोग यही गुहार लगाते हैं कि ब्याज नहीं चाहिए, मूल धन तो लौटा दो। मूल धन बहुत प्यारा होता है, क्योंकि वही आधार होता है। सच्चा मूल धन तो अपना चरित्र है, अगर वही नहीं है, तो फिर पैसे और पत्नी का क्या अर्थ? 
मैं शादी का विरोधी नहीं हूं। शादी बहुत अच्छी चीज है। जिस व्यक्ति ने शादी का आविष्कार किया होगा, वह अपने समय में संसार का सबसे बड़ा वैज्ञानिक होगा, हम ईश्वर को ही वह वैज्ञानिक मानते हैं। जरा सोचिए, शादी न होती, तो क्या होता? कहां कौन उलझ जाता, चारों तरफ अपराध होता, नैतिकता का पतन होता, समाज में कितनी अराजकता होती, पता ही नहीं चलता कि कौन किसका पुत्र है, किसकी पुत्री है, कौन किसके साथ है, आदमी पशुओं की तरह घूमता रहता, किन्तु विवाह ने बांध दिया। सबको मर्यादा और अनुशासन में बांध दिया। परिवार बने, समाज बना। शादी से जीवन में सहारा मिलता है। सुख-दुख में साथ मिलता है। अकेले में वैसे ही डर लगता है। कहा जाता है कि भगवान का भी अकेले में मन नहीं लगता, किन्तु कोई व्यक्ति सम्पूर्ण रूप से स्त्री को ही उद्देश्य बना ले, तो वह संसार का सबसे बड़ा मूर्ख है। शक्ति का विनियोग मूर्खताओं में नहीं, विद्वता में होना चाहिए, निर्माण, सृजन में होना चाहिए।
राम जी ने यदि केवल पत्नी को ही महत्व दिया होता, तो उन्हें लंका मिलती क्या, पुष्पक विमान मिलता क्या? राक्षसों का विनाश नहीं होता, संभवत: किसी मर्यादा का पालन नहीं हो पाता, किन्तु राम जी को तो राजनीति, राज्य, परिवार, समाज को चलाना आता था, क्योंकि वह शक्ति का सही विनियोग जानते थे। उन्होंने विवेक सहित शक्ति का ऐसा विनियोग किया कि मर्यादा पुरुषोत्तम बन गए। उनके जैसा संसार में दूसरा कोई चरित्र नहीं। आइए, हम उनसे सीखें।
जय सियाराम...

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