Monday, 24 July 2023

जगद्गुरु रामानंदाचार्य महाराज और सेनाचार्य जी महाराज











जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज के दर्शन के लिए हरिद्वार पधारे सेनाचार्य स्वामी श्रीअचलानंदगिरी महाराज। 

सेनाचार्य जी भगवान रामदेव जी मंदिर, राइकाबाग, जोधपुर में विराजते हैं।  

Saturday, 15 July 2023

Jagadguru Ramanandacharya Swami Shriramnareshacharya


 

सबसे बड़ा दानी कौन?

बहुत सारे लोग हैं, जो समझते हैं कि वही सबसे ज्यादा दान करते हैं। मठ बना दिया, घर बना दिया, घर दे दिया, किसी को धन दे दिया, कुछ संसाधन दे दिया, इसी को सबसे बड़ा दान समझते हैं। 

भागवद्कार ने सबसे बड़ा दानी व्यावसायियों या किसानों को नहीं कहा। भागवद्कार ने कहा कि भगवान की कथा अमृत के समान है। कथा को अमृत मानकर, उसकी विशेषता बतलाते हुए कहा कि हे भगवान आपकी कथा, हे श्याम सुंदर आपकी कथा तो अमृत के समान है। जो तीनों तापों से जल रहे हैं, संतप्त हैं, तड़प रहे हैं, बिलख रहे हैं, उनको जीवन दे देती है। 

कहा कि भगवान आपकी कथा में एक और विशेषता है, बड़े विद्वान और ऋषि भी इसकी विशेषता गाते हैं। सदाचारी गाते हैं, जो धन्य जीवन के हैं, वे भी इनकी प्रशंसा करते हैं। नारद जी भी इनकी प्रशंसा करते हैं। जो अत्यंत तीक्ष्ण बुद्धि का हो, उसको कवि कहा जाता है, वे भी भगवान की महिमा गाते हैं। जहां न जाए रवि, वहां जाए कवि, कहावत है। सूक्ष्मदर्शी भी आपकी चर्चा करते हैं और इससे पाप का नाश भी होता है। केवल सुनने से काम नहीं होगा, उसे गुनना भी पड़ेगा। ईश्वर को सुनना है, तो उनका मनन भी करना होगा। ऐसा करने के बाद ही ईश्वर का दर्शन होगा। हम उसे देख सकेंगे। 

व्यास जी ने कहा कि भगवान की कथा में ऐसी शक्ति है कि उनको गुनने की कोई जरूरत नहीं है, केवल सुनने से ही कल्याण प्राप्त हो जाता है। जैसे आप ईश्वर की चर्चा सुन रहे थे। मनन के लिए अध्ययन की जरूरत है। मैंने जो न्याय दर्शन पढ़ा है, वह संपूर्ण दर्शन मनन का ही दर्शन है। हेतु का मनन, बारह साल लग गए पढ़ाई में। जो न्याय दर्शन नहीं पढ़ता, उसे काशी में विद्वान नहीं मानते हैं।  

व्यास जी ने कहा कि बहुत सारे लोग देते हैं, मकान देते हैं, भूमि देते हैं, ये बड़ा दान नहीं है। बटुए से देने वाला बहुत मुश्किल से गिनकर कुछ देता है, पर जो भगवद् कथा की वर्षा करता है, वह देने पर आ जाए, तो कथा अमृत की सुनामी लहर ला सकता है। भगवद् कथा की अमृत वर्षा करने वाला ही सबसे बड़ा दानी है, वह सर्वस्व दे देना चाहता है, इस अमृत वर्षा में कुछ भी घटने वाला नहीं है। 


ईश्वर पर विश्वास रखें

भगवान ने कहा कि कर्म करो, फल की इच्छा मत करो। देखिए, हर आदमी ज्यादा से ज्यादा फल चाहता है, भले काम थोड़ा करे। यदि फल लेना मनुष्य के हाथों में होता है, तो हर मनुष्य ज्यादा से ज्यादा फल जुटाने में लग जाता। अराजकता हो जाती। जैसे घर में कोई महिला भोजन बनाए और बच्चों को देने में पक्षपात करने लगे। देवर को देने में पक्षपात करने लगे, सास-ससुर और अतिथि में भेदभाव करने लगे, तो सारे संबंध चौपट हो जाएंगे। ईश्वर ऐसा कभी नहीं करता, इसलिए ईश्वर ने कहा कि तुम्हारा अधिकार नहीं है कि तुम फल उत्पन्न कर लो। भगवान की दया से हम कर्म करते रहें, लेकिन उसका फल कौन देगा, ईश्वर में विश्वास रखें। 

वैसे ऐसा भी नहीं करो कि कर्म करना ही छोड़ दो। जीने के लिए कर्म करना जरूरी है। गीता में भगवान ने कहा कि कोई शरीरधारी कर्म के बिना नहीं रह सकता। अभी आपको लग रहा होगा, हम तो कुछ कर्म कर ही नहीं रहे हैं, लेकिन यह सच नहीं है। ज्ञानेन्द्रीय हैं, कान है, जिससे आप ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। आप यहां प्रवचन में बैठे हैं, यह भी कर्म है, इसमें बहुत जोर लगता है। एक मुद्रा में बैठना पड़ता है। वश चले, तो लोग हमारी ओर ही पैर कर लें। सोना भी क्रिया है। अभिप्राय यह कि भगवान ने कहा कि कर्म करो, तो शास्त्रों से पूछ कर करो, मनमानी करोगे, तो रावण बन जाओगे। कोई नौकरी करने जाता है, तो नौकरी देने वाले के उद्देश्य, क्रिया और प्रक्रियाओं की पालना करता है। नौकरी में मनमानी नहीं चल सकती। शास्त्रों के अनुरूप ही कर्म करना चाहिए, अच्छे कर्म करने चाहिए और फल के लिए ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए।


Ramanandacharya Swami Sriramnareshacharya ji Maharaj




 

Ramanandacharya Swami Sriramnareshacharya maharaj



 

Ramanandacharya Swami Sriramnareshacharya maharaj





 

Wednesday, 5 July 2023

ब्रह्म या ईश्वर क्या है?

जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज

प्रवचन अंश - 5 जुलाई 

वेदों में कहा गया कि जो इस संसार को बनाए, उसका पालन भी करे, और उसको अपने में छिपा भी ले। जैसे घड़ा टूटने के बाद मिट्टी में छिप जाता है। तिरोहित हो जाता है, उसे लोग घड़ा नहीं बोलते, मिट्टी बोलते हैं। कार्य अपने कारण में छिप जाता है, उपादान कारण में। सोने का आभूषण टूटने के बाद सोने में छिप जाता है और उसे कोई आभूषण नहीं कहता। कौन मकान बनाने वाला है, कौन उद्यान बनाने वाला है, ऐसे ही, जो भी कार्य दिखाई पड़ते हैं, उनके लिए आपके मन में जिज्ञासा होती है, तो आपके मन में यह जानने की इच्छा भी होनी चाहिए कि इस संसार को किसने बनाया। वेदों ने कहा, संसार को जो बनाता है, जो इसका पालन करता है, जो इसको अपने में छिपा लेता है, उसी को ब्रह्म कहते हैं। जिसमें तीनों ही तरह के चमत्कार की क्षमताएं हैं, बनाने की, पालन करने की और अपने में छिपा लेने की।
भूत का क्या अर्थ है? पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश, इनको भूत कहते हैं। तभी तो हम लोगों के शरीर को पांच भूतों से बना हुआ कहा जाता है। छितिजल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अधम शरीरा। यह तुलसीदास जी का वाक्य है। हमारे शरीर में पृथ्वी भी है, जल भी, तेज भी, वायु भी और आकाश भी।
हमारे शरीर में जो खुलापन है, वह आकाश का भाग है। देखिए, कान में भी छिद्र है। कान जो बाहर से दिखता है, उसे कान नहीं बोलते। इसके भीतर जो छिद्र है या जो खालीपन है, वह कान है। दर्शनशास्त्र में पढ़ाया जाता है कि भीतर जो आकाश है, खालीपन है, उसी का नाम कान है। यदि ये भीतर वाला भाग बंद हो जाए, तो हमें सुनाई नहीं पड़ेगा। शब्द का ग्रहण नहीं होगा, ज्ञान नहीं होगा। नाक में भी आकाश है। पेट में भी जो खालीपन है, वह भी आकाश ही है। जहां से रक्त आदि प्रवाहित होते हैं, जल प्रभावित होता है। पृथ्वी का भाग तो आप देखते ही हैं, पैर, हाथ व अन्य अंग। जल भी है शरीर में। वायु का भी हम अनुभव करते रहते हैं, कभी डकार, कभी अपान वायु, लोग कहते भी हैं कि पेट में वायु अभी बढ़ गया है। वायु की भी जरूरत है शरीर को, ऑक्सीजन भी उसी रूप में है। इस तरह हमारे पूरे शरीर को पंचभूतों से उत्पन्न या रचित माना जाता है। जब मृत्यु हो जाती है, तो ये पांचों भूत अपने-अपने बड़े शरीर में मिल जाते हैं।
देखिए, जिस जगह हम बैठे हैं, यह कमरा, यहां आकाश है। हम इसे बोलते हैं, मकान है। छत को हटा दीजिए, दीवारों को हटा दीजिए, तो यह जो छोटा आकाश है, बड़े आकाश में मिल जाएगा। महाआकाश में मिल जाएगा, जो पूरे संसार में है। यहां रहें या रूस या अमेरिका जाएं, आपको यही आकाश मिलेगा। तेज, पृथ्वी, वायु, सूर्य का यही स्वरूप मिलेगा। इन सबको जो बनाता है और जो पालन करता है, इनका संरक्षण करता है, रखरखाव करता है, और जब लगता है कि यह रहने लायक नहीं है,तो वह इसे धीरे से अपने में मिला लेता है, छिपा लेता है, इसी का नाम ईश्वर है, बह्म है। ईश्वर चिंतन होते रहना चाहिए।
वेदों ने कहा कि ब्रह्म को जानने की इच्छा करो। आप यहां छोटे-छोटे पदार्थों को देखकर जानने की इच्छा करते हो कि यह क्या है और इतने बड़े संसार को देखकर इच्छा ही नहीं हो रही है। यह बहुत बड़ी विडंबना है जीवन की। आप अवसर खो रहे हैं। सारा जीवन ऐसे ही निकलता जा रहा है और आपने जाना ही नहीं कि संसार को किसने बनाया? कौन इसका पालन करता है? ऐसे प्रश्न हमारे मन में उमड़ने-घुमड़ने चाहिए। आप ध्यान रखिए कि इस संसार को किसी उद्यमी, नेता या संस्था या सरकार ने नहीं बनाया, जिसने इसे बनाया, उसी को ब्रह्म कहते हैं।
ब्रह्म का एक अर्थ और भी है। कहा गया है कि यह महान बहुत है। हम लोग महान नहीं हैं। जहां हम बैठे हैं, उतना ही हमारा। जहां हम बैठ जाते हैं, उसी को संसार समझ लेते हैं, हम छोटे लोग हैं। जहां जो बैठा है, उसका संसार बस उतना ही बड़ा है। जो महान हो, ऐसा कोई स्थान नहीं हो, जहां वह नहीं हो, वह ब्रह्म है। निरंतर जो विकासशील है, जो महान है, सबसे बड़ा जिसका आकार है, वह ब्रह्म है।
हमें ऐसा लगता है कि हम ही पालन करते हैं। जैसे माता-पिता अपने बच्चों को समझते हैं कि हमने इनका पालन किया। पूछिए, उनके माता-पिता से कि ऑक्सीजन आप ही हैं क्या? आप ही आकाश हैं क्या? पृथ्वी या जल हैं क्या? हमारा यह स्वरूप नहीं है कि हम किसी का पालन कर सकें। हमें भ्रम होता है कि हम ने ही सब किया है। सोचिए, आप कौन हैं? आप झूठ ही यह मान रहे हैं कि मैंने वह कर दिया, यह कर दिया। ऐसा अभिमान हमें सभी क्षेत्रों में होता और दिखता है।
ठीक ऐसे ही अभी जो चिंतन मैं आपको सुना रहा हूं, वह मेरा है या उसमें मेरे और पूर्वजों का भी योगदान है। मूल चिंतक कौन है, जिसने हमें यह विचार दिया? वह कौन है, जिसने हमें समझने की शक्ति दी? जिसने हमें आपके पास यह चिंतन पहुंचाने के लिए बल दिया, बुद्धि दिया, वह कौन है? इसीलिए पूरे संसार को बनाना, उसका पालन करना, और उसे अपने में छिपा लेना, जैसे समुद्र सभी जलधाराओं को छिपा लेता है। इसीलिए समुद्र जल का सबसे बड़ा स्वरूप है। जल की बूंद अंश मात्र हैं। इस कमरे का जो आकाश है, जो दीवार या छत टूटने के बाद जिस आकाश में मिल जाएगा, वह महा आकाश है, वह अपने में छिपा लेता है। बड़ा बनने के लिए आवश्यक है कि अंश अपने अंश में ही मिल जाए। जलधाराएं खतरे में रहती हैं, लेकिन उस समुद्र में मिल जाती हैं, जो कभी सूखता नहीं, जो तमाम धाराओं को अपने में समाहित कर लेता है।
मिट्टी के टुकड़े को आपने ऊपर फेंका, वह आ गया पृथ्वी पर, मिल गया पृथ्वी में, तो बड़ा हो गया। हम लोग भी यही प्रयास कर रहे हैं बड़ा होने के लिए। हम ईश्वर जैसा बनना चाहते हैं, जो सबसे बड़ा है। हम उसके अंश हैं, अंश जब अंश में मिल जाता है, तो सबसे बड़े स्वरूप को प्राप्त कर लेता है।

प्रवचन सार



 

बांटकर उपभोग करें