जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज के दर्शन के लिए हरिद्वार पधारे सेनाचार्य स्वामी श्रीअचलानंदगिरी महाराज।
सेनाचार्य जी भगवान रामदेव जी मंदिर, राइकाबाग, जोधपुर में विराजते हैं।
धर्म के ज्ञान से ही व्यक्ति को जीने की कला आती है.
सेनाचार्य जी भगवान रामदेव जी मंदिर, राइकाबाग, जोधपुर में विराजते हैं।
बहुत सारे लोग हैं, जो समझते हैं कि वही सबसे ज्यादा दान करते हैं। मठ बना दिया, घर बना दिया, घर दे दिया, किसी को धन दे दिया, कुछ संसाधन दे दिया, इसी को सबसे बड़ा दान समझते हैं।
भागवद्कार ने सबसे बड़ा दानी व्यावसायियों या किसानों को नहीं कहा। भागवद्कार ने कहा कि भगवान की कथा अमृत के समान है। कथा को अमृत मानकर, उसकी विशेषता बतलाते हुए कहा कि हे भगवान आपकी कथा, हे श्याम सुंदर आपकी कथा तो अमृत के समान है। जो तीनों तापों से जल रहे हैं, संतप्त हैं, तड़प रहे हैं, बिलख रहे हैं, उनको जीवन दे देती है।
कहा कि भगवान आपकी कथा में एक और विशेषता है, बड़े विद्वान और ऋषि भी इसकी विशेषता गाते हैं। सदाचारी गाते हैं, जो धन्य जीवन के हैं, वे भी इनकी प्रशंसा करते हैं। नारद जी भी इनकी प्रशंसा करते हैं। जो अत्यंत तीक्ष्ण बुद्धि का हो, उसको कवि कहा जाता है, वे भी भगवान की महिमा गाते हैं। जहां न जाए रवि, वहां जाए कवि, कहावत है। सूक्ष्मदर्शी भी आपकी चर्चा करते हैं और इससे पाप का नाश भी होता है। केवल सुनने से काम नहीं होगा, उसे गुनना भी पड़ेगा। ईश्वर को सुनना है, तो उनका मनन भी करना होगा। ऐसा करने के बाद ही ईश्वर का दर्शन होगा। हम उसे देख सकेंगे।
व्यास जी ने कहा कि भगवान की कथा में ऐसी शक्ति है कि उनको गुनने की कोई जरूरत नहीं है, केवल सुनने से ही कल्याण प्राप्त हो जाता है। जैसे आप ईश्वर की चर्चा सुन रहे थे। मनन के लिए अध्ययन की जरूरत है। मैंने जो न्याय दर्शन पढ़ा है, वह संपूर्ण दर्शन मनन का ही दर्शन है। हेतु का मनन, बारह साल लग गए पढ़ाई में। जो न्याय दर्शन नहीं पढ़ता, उसे काशी में विद्वान नहीं मानते हैं।
व्यास जी ने कहा कि बहुत सारे लोग देते हैं, मकान देते हैं, भूमि देते हैं, ये बड़ा दान नहीं है। बटुए से देने वाला बहुत मुश्किल से गिनकर कुछ देता है, पर जो भगवद् कथा की वर्षा करता है, वह देने पर आ जाए, तो कथा अमृत की सुनामी लहर ला सकता है। भगवद् कथा की अमृत वर्षा करने वाला ही सबसे बड़ा दानी है, वह सर्वस्व दे देना चाहता है, इस अमृत वर्षा में कुछ भी घटने वाला नहीं है।
वैसे ऐसा भी नहीं करो कि कर्म करना ही छोड़ दो। जीने के लिए कर्म करना जरूरी है। गीता में भगवान ने कहा कि कोई शरीरधारी कर्म के बिना नहीं रह सकता। अभी आपको लग रहा होगा, हम तो कुछ कर्म कर ही नहीं रहे हैं, लेकिन यह सच नहीं है। ज्ञानेन्द्रीय हैं, कान है, जिससे आप ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। आप यहां प्रवचन में बैठे हैं, यह भी कर्म है, इसमें बहुत जोर लगता है। एक मुद्रा में बैठना पड़ता है। वश चले, तो लोग हमारी ओर ही पैर कर लें। सोना भी क्रिया है। अभिप्राय यह कि भगवान ने कहा कि कर्म करो, तो शास्त्रों से पूछ कर करो, मनमानी करोगे, तो रावण बन जाओगे। कोई नौकरी करने जाता है, तो नौकरी देने वाले के उद्देश्य, क्रिया और प्रक्रियाओं की पालना करता है। नौकरी में मनमानी नहीं चल सकती। शास्त्रों के अनुरूप ही कर्म करना चाहिए, अच्छे कर्म करने चाहिए और फल के लिए ईश्वर पर विश्वास रखना चाहिए।
जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज