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जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी |
ऋषियों का राम जी के साथ बड़ा प्रेम था और राम जी को ऋषियों से बड़ा पे्रेम था। ऋषियों की जो श्रेष्ठ परंपरा है, उसके अनुरूप भारद्वाज ऋषि ने मानवीय जीवन को ऋषित्व तक पहुंचाया और अनेक तरह की साधना करके, ईश्वर का साक्षात्कार संपादित करके, संपूर्ण जीवन को ईश्वर और मानवता के लिए समर्पित कर दिया। श्रेष्ठ ऋषि के रूप में भारद्वाज जी का नाम है। उनका निवास तीर्थराज प्रयाग में रहा, तीर्थों का जो राजा है। सनातन धर्म में चीजों का श्रेणीकरण है, सभी ने प्रयाग को तीर्थराज माना है। वहां मुख्य ऋषि के रूप में भारद्वाज जी का स्थान है। प्रयाग में तीन नदियों का संगम है, गंगा, यमुना, सरस्वती। इन तीन नदियों के पावन मंगलमय संगम पर भारद्वाज जी का आश्रम था, जहां वे निवास करते थे। जो भी उन्होंने ज्ञान, विज्ञान, जप, तप, संयम, नियम से अर्जित किया था, उससे वे अनेक लोगों को आलोकित करते थे। सब कुछ ईश्वर के लिए होता है, समष्टि के लिए होता है, संसार के लिए होता है। ऋषि जीवन केवल अपने को लाभान्वित करने के लिए नहीं होता। जैसे परिवार को चलाने के लिए उसका एक मुखिया बनाकर संचालन किया जाता है, ठीक उसी तरह से संत जन जप, तप, संयम, नियम से चलकर संपूर्ण ईश्वर को अर्पित रहते हैं और संपूर्ण संसार को ईश्वर का परिवार मानकर चलते हैं। ईश्वर सबके लिए समान रूप से है। संतों में भी ऋषियों में भी यही दशा या स्थिति होती है। भारद्वाज जी का प्रभाव विलक्षण था। महान चिंतकों में उनकी गणना होती थी, राम कथा को जन जन तक पहुंचाने में, राम कथा को प्रामाणिकता देने और उसे परम उपयोगी बनाने में भारद्वाज जी की बहुत बड़ी भूमिका है, ऐसा सभी लोग मानते हैं। वे निरंतर राम कथा का प्रवाह बनाए रखते थे। अपने आश्रम में राम कथा निरंतर उनकी प्रेरणा से चलती रहती थी। भारद्वाज जी रामभक्ति की परंपरा में अग्रणी ऋषि रहे हैं।
एक स्पष्ट उदाहरण है, अनादि परंपरा है, माघ मास में प्रयाग में मेला लगता है, जगह-जगह से लोग आते हैं, पूरे देश से और आकर नियम-कायदे से निवास करना, स्नान करना जप, तप करना, हवन करना, ईश्वर दर्शन करना और मेले में जहां भी सत्संग हो रहा है, वहां दर्शन-पूजन के लिए जाना, प्रवचन सुनने जाना। इतना बड़ा मेला दुनिया की किसी परंपरा नहीं है। लाखों लोग आते हैं, सत्संग का लाभ उठाते हैं, तो प्राचीन काल में जितने भी ऋषि, महर्षि आते थे, वे सभी भारद्वाज ऋषि के आश्रम में रुकते थे और सबको मान सम्मान मिलता था। वरिष्ठतम ऋषि तो वे थे ही उनसे सभी को लाभ होता था।
एक विचित्र घटना हुई। माघ मेले से महर्षि याज्ञवल्क्य जाने लगे, तो भारद्वाज ने कहा, ‘अभी आप मत जाइए, प्रेरणा हो रही है कि राम कथा सुनूं। राम अलग-अलग हैं या एक हैं? जो राजा दशरथ के यहां जन्म लिए, दशरथ कुमार हुए और सभी लोगों को ज्ञात है कौशल्या जी से उनका जन्म हुआ, वनवास भी हुआ और सीता जी का हरण हुआ, अनेक तरह से राम जी ने विलाप किया, अत्यंत रुष्ट हुए और रावण को मार दिया। एक तो यह राम हैं और दूसरे वो जिनके शंकर जी भी पुजारी हैं, जो श्रेष्ठ देवता हैं, संसार के नियामकों में से हैं। लोग राम जी का नाम लेते हैं, राम, राम, राम, निरंतर करते रहते हैं, ये दोनों राम एक ही हैं या अलग-अलग हैं?’
क्रमश:
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