: दुनिया के पहले संविधान निर्माता :
ठीक उसी तरह मनु ने कहा कि मुझे आपके जैसे पुत्र की प्राप्ति हो। शास्त्रों में लिखा है, ईश्वर दूसरा कोई नहीं होता, ईश्वर के समान ईश्वर ही होता है, उससे अधिक की तो कल्पना ही नहीं। भगवान की समकक्षता किसी में नहीं है। कोई भगवान से अधिक कैसे होगा? मनु ने मांग लिया। उसके लिए ही उन्होंने तप किया था, जिसके लिए खाना, पीना त्यागा, जीवन का कोई अन्य उद्देश्य नहीं, मनु के जीवन का, अस्थियों का ढांचा मनु हो गए थे, भगवान ने यह देखा।
भगवान की आज्ञा का जो लोग पालन करते हैं, वे भगवान पर उनका उपकार है। भगवान को और कुछ नहीं चाहिए। जैसे उन्होंने कहा कि सत्य बोलो, तो सच ही बोलना चाहिए। भगवान ने कहा कि देखो धन संग्रह ज्यादा नहीं करो। अपरिग्र्रह करो। मनु जी के संपूर्ण जीवन को देखकर भगवान ने कहा, आपने तो अच्छा मांग लिया, कोई संसार या और कुछ नहीं मांगा, मेरे जैसा पुत्र मांग लिया।
भगवान ने वरदान दिया। जाइए, मैं अयोध्या में आपके पुत्र के रूप में जन्म लूंगा। मनु ही राजा दशरथ हुए और शतरूपा ही कौसल्या हुईं। भगवान ने पुत्र के रूप में उनके यहां जन्म लिया। ध्यान रहे कि भगवान कोई ऐसे ही नहीं मिल जाएंगे, भगवान कोई ऐसे ही आपके यहां जन्म नहीं ले लेंगे, इसके लिए पूरे प्रयास करने पड़ेंगे। संयम-नियम, शास्त्र अनुकूल चलना होगा।
मनु की शुरुआत शास्त्रीय मर्यादाओं, जीवन को दिव्य स्वरूप देने वाले संसाधनों से हुई। जीवन भर जो लोग एक ही काम करते रहते हैं, वे अदूरदर्शी हैं। सभी को यह तय करना चाहिए कि इतने दिनों तक ही हमें कमाना है, इतने दिनों तक ही हमें काम के लिए प्रयास करना है। भोग की भावना कोई ऐसे ही नहीं जाएगी। एक सीमा होने चाहिए, भोग की, धन की। हमें जो सर्वश्रेष्ठ जीवन मिला है, वह केवल भोग के लिए नहीं है।
कैसी सृष्टि होनी चाहिए, कैसे चलनी चाहिए, इसके लिए मनु ने मनु स्मृति का निर्माण किया। यह उनका एक महान कार्य है। उपकार है विश्व पर। यह सनातन धर्म का धर्मशास्त्र है। हमें कैसे जीवन जीना है, इसे कैसे बिताना है, क्या इसका कोई नियंत्रक होना चाहिए? समाज, राष्ट्र विश्व को संचालित करने के लिए मनु स्मृति की रचना हुई। मानव के संवद्र्धन, परम फल प्राप्ति अभियान का शास्त्र है मनु स्मृति।
क्रमश:
ठीक उसी तरह मनु ने कहा कि मुझे आपके जैसे पुत्र की प्राप्ति हो। शास्त्रों में लिखा है, ईश्वर दूसरा कोई नहीं होता, ईश्वर के समान ईश्वर ही होता है, उससे अधिक की तो कल्पना ही नहीं। भगवान की समकक्षता किसी में नहीं है। कोई भगवान से अधिक कैसे होगा? मनु ने मांग लिया। उसके लिए ही उन्होंने तप किया था, जिसके लिए खाना, पीना त्यागा, जीवन का कोई अन्य उद्देश्य नहीं, मनु के जीवन का, अस्थियों का ढांचा मनु हो गए थे, भगवान ने यह देखा।
भगवान की आज्ञा का जो लोग पालन करते हैं, वे भगवान पर उनका उपकार है। भगवान को और कुछ नहीं चाहिए। जैसे उन्होंने कहा कि सत्य बोलो, तो सच ही बोलना चाहिए। भगवान ने कहा कि देखो धन संग्रह ज्यादा नहीं करो। अपरिग्र्रह करो। मनु जी के संपूर्ण जीवन को देखकर भगवान ने कहा, आपने तो अच्छा मांग लिया, कोई संसार या और कुछ नहीं मांगा, मेरे जैसा पुत्र मांग लिया।
भगवान ने वरदान दिया। जाइए, मैं अयोध्या में आपके पुत्र के रूप में जन्म लूंगा। मनु ही राजा दशरथ हुए और शतरूपा ही कौसल्या हुईं। भगवान ने पुत्र के रूप में उनके यहां जन्म लिया। ध्यान रहे कि भगवान कोई ऐसे ही नहीं मिल जाएंगे, भगवान कोई ऐसे ही आपके यहां जन्म नहीं ले लेंगे, इसके लिए पूरे प्रयास करने पड़ेंगे। संयम-नियम, शास्त्र अनुकूल चलना होगा।
मनु की शुरुआत शास्त्रीय मर्यादाओं, जीवन को दिव्य स्वरूप देने वाले संसाधनों से हुई। जीवन भर जो लोग एक ही काम करते रहते हैं, वे अदूरदर्शी हैं। सभी को यह तय करना चाहिए कि इतने दिनों तक ही हमें कमाना है, इतने दिनों तक ही हमें काम के लिए प्रयास करना है। भोग की भावना कोई ऐसे ही नहीं जाएगी। एक सीमा होने चाहिए, भोग की, धन की। हमें जो सर्वश्रेष्ठ जीवन मिला है, वह केवल भोग के लिए नहीं है।
कैसी सृष्टि होनी चाहिए, कैसे चलनी चाहिए, इसके लिए मनु ने मनु स्मृति का निर्माण किया। यह उनका एक महान कार्य है। उपकार है विश्व पर। यह सनातन धर्म का धर्मशास्त्र है। हमें कैसे जीवन जीना है, इसे कैसे बिताना है, क्या इसका कोई नियंत्रक होना चाहिए? समाज, राष्ट्र विश्व को संचालित करने के लिए मनु स्मृति की रचना हुई। मानव के संवद्र्धन, परम फल प्राप्ति अभियान का शास्त्र है मनु स्मृति।
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