Saturday, 4 November 2017

महर्षि मनु भाग - 2

: दुनिया के पहले संविधान निर्माता :
मनु जी तो ब्रह्मा जी से ही प्रकट हुए संसार की संरचना के लिए। जप-तप से संतानोत्पत्ति का प्रयास किया। उनको दो पुत्र और तीन कन्याएं हुईं। दो पुत्र उत्तानपाद और प्रियव्रत। तीन पुत्रियां - आकूति, प्रसूति और देवहूति। धीरे-धीरे उनके विवाह का समय हुआ। ये सब संतानें समाज के लिए ईश्वर के लिए जीवन जीने वाली थीं। पुराणों में वर्णित है कि जो मनु जी के पुत्र प्रियव्रत जी बड़े भक्त हुए। प्रियव्रत जी ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त किया था। उत्तानपद भी बड़े भक्त हुए, महान धु्रव जी इन्हीं के पुत्र थे। आकूति का विवाह महर्षि ने रुचि प्रजापति से किया। देवहूति का विवाह महर्षि कर्दम से हुआ, जिससे सांख्यशास्त्र के प्रणेता महर्षि कपिल का अवतार हुआ। कपिल जी की बड़ी महिमा है, वे ज्ञानी के रूप में ही उत्पन्न हुए। अभ्यास से व्यक्ति ज्ञानी होता है, तब आदमी विद्वान बनता है, लेकिन जिसने पिछले जन्म में अभ्यास किया है, वह पिछले जन्मों के संस्कार के आधार पर, जो यहां नहीं भी पढ़ा है, तो उसमें ज्ञान स्वयं प्रकट हो जाते हैं। वे अच्छे रूप में अपने भावों को प्रकट करने लगता है। 
मनु जी की तीसरी पुत्री प्रसूति का प्रजापति दक्ष से विवाह हुआ। सृष्टि का क्रम प्रारंभ हुआ और उसका विस्तार होता गया। सभी उनके दामाद, पुत्र, पौत्र इत्यादि पूरे परिवार के लोग बड़े संस्कारी थे, क्योंकि शुरू से ही उनके जीवन को सही ढंग से सींचा गया था। इन संतानों की ऋषियों, शास्त्रों में बड़ी आस्था थी। शास्त्रों से प्रेरित जीवन में उनकी आस्था थी, उसी के अनुरूप जीवन शैली, समस्त व्यवहार और जीवन को परम फल देने वाले कार्य उन्होंने किए। सृष्टि का क्रम चला। बढ़ता गया। संसार बढ़ा। 
मनु का अपना जीवन भी सर्वश्रेष्ठ था। वे भगवान के साक्षात पुत्र थे और उन्होंने सृष्टि उत्पादन के क्रम को जो शुरू किया, तो उन्होंन अपने लोगों को भी इसी तरह से तैयार किया। जो भी उत्पन्न हो, वह विशुद्ध मानव हो, वह लौकिक जीवन भी शास्त्रों के तहत ही जीए। केवल कमाना और भोग करना ही जीवन नहीं है। ईश्वर की सेवा में समर्पित होना भी जीवन है। लौकिक और परालौकिक जीवन दोनों ही इससे संभव होते हैं। सत्यं शिवं सुन्दरं इससे संभव होता है। क्रमश:

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