मैं दुकान की दो सीढ़ियां चढ़ गया, तब दुकानदार भी मेरे सामने आ खड़ा हुआ कि आप ऊपर कैसे आ गए?
मैंने सोचा कि यह लड़ेगा क्या? मैंने पूछा, क्यों मैं यहां नहीं आ सकता?
तब तक जिन्होंने मुझे बुलाया था, वह निकट आ गए और कहा कि मैंने बुलाया है, ये सड़क पर खड़े थे, इन्हें मैंने ही यहां बुलाया है, मैं इनके लिए ही आपके यहां से मिठाई खरीद रहा हूं।
लेकिन दुकानदार तो मुझे लगातार देखते हुए अपने सवाल पर ही अड़ा हुआ था कि आप ऊपर कैसे आ गए?
मैंने सोचा कि यह क्या प्रश्न है, लगता है, अब तो महाभारत होगा। तभी दुकानदार ने कहना शुरू किया, बरसों बरस से आप इस रास्ते आ-जा रहे हैं, लेकिन कभी सिर उठाकर नहीं देखा। कभी दुकान की ओर देखा ही नहीं, तो हमें अभी विश्वास ही नहीं हो रहा है कि आप मेरी दुकान पर कैसे आ गए, मामला क्या है, बताइए?
मेरे परिचित ने फिर समझाया कि मैंने ही बुलाया है। तब दुकानदार ने विनम्रता के साथ कहा कि आप रोज ही इनको ऐसे बुला लिया कीजिए, हम बरसों से तरस गए कि ये कौन बाबा जी हैं कि न इधर देखना, न उधर देखना, सीधे रास्ते चलना और बरसों बरस तक ऐसे ही करना।
मैं कम आयु का था, तब मुझे जानने वाले लोग ही हंगामा कर देते थे कि आप दुकान पर कैसे आ गए, बाजार क्यों गए, आप कहते, तो हम समान आपके पास भिजवा देते।
सामान या बाजार का क्या चिंतन करना, हमें चिंतन तो केवल ईश्वर का करना चाहिए।
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