Sunday, 31 December 2023

राक्षस सा परिवार न बढ़ाएं

हमें चाहिए कि हम अपने जीवन को उन तत्वों से जोड़ें, जो हमारे जीवन को ऊपर ले जाएं, इसे आनंददायक बनाएं। केवल मकान बनाने से काम नहीं चलेगा। केवल दुकान से काम नहीं चलेगा। केवल जैसे-तैसे परिवार से काम नहीं चलेगा। जैसे रावण ने परिवार बढ़ा लिया, राक्षस लोग जैसे परिवार बढ़ाते हैं, ठीक उसी तरह से शास्त्र की मर्यादा से दूर हटकर लोग परिवार बढ़ाते हैं, यह नहीं चलेगा। इतनी पत्नियों को एकत्र करके भी रावण संतुष्ट न हो पाया और खोजता रहता था, लड़की मिल जाती, तो घर बस जाता, खुशहाली बढ़ जाती। मालूम है कि लड़की अवैध रूप से, ताकत से लाई गई है, अपहरण करके लाई गई है, यातनाएं झेलकर आई है, फिर भी वह लाता गया। इस क्रम ने उसे बड़ा राक्षस बना दिया।

रामजी से भी कितने लोग प्रभावित हैं, कितने लोग उन्हें अपना मानते हैं, किंतु रामजी ऐसा नहीं करते। उन्हें पता है कि पत्नी माने एकमात्र सीता, संसार की दूसरी त्रिरयां हमारी मां हैं। यदि हम सभी त्रिरयों को पत्नी बनाने लगेंगे, तो महारावण हो जाएंगे।

हमारे प्रारब्ध से जो बनी है, वह मिलेगी। यदि हमारे प्रारब्ध अच्छे नहीं हैं, पाप ज्यादा है, तो दुख भी मिलेगा। मकान सुख भी देता है और दुख भी देता है। परिवार के लोग सुख भी देते हैंऔर दुख भी देते हैं। भगवान की दया से जो पदार्थ हमें मिले, वह सही रीति से मिले और उसका उद्देश्य सही हो। हमें पत्नी मिली है, हम दोनों मिलकर धर्म का संपादन करेंगे। केवल संतान और भोजन नहीं, इससे नहीं चलेगा।, जैसे सभी नदियों का एक ही परम गंतव्य है, ठीक उसी तरह से सभी मनुष्यों का एक ही परम गंतव्य है, परम उद्देश्य है कि हम ईश्वर जैसा जीवन प्राप्त करें।

जब हमारा ईश्वर जैसा जीवन हो गया, तो परिवार, पड़ोस, संपूर्ण संसार का मानवीय जीवन, संसार का सर्वश्रेष्ठ हमें प्राप्त होगा। विभीषण को प्राप्त हो गया था। वह भी अपने राक्षस भाइयों की उसी पंक्ति में था, किंतु उसने भगवान की भक्ति मांगी, जीवन केवल भोग के लिए न हो। मेरा जीवन बाहर भी और भीतर भी ईश्वर की सेवा के लिए हो। राष्ट्र की सेवा करूं, मानवता की सेवा करूं, लांछित कर्म न करूं। ऐसा ही हुआ, विभीषण लंका में रहकर भी पूर्ण रूप से मनुष्य जीवन को जी रहे हैं। वह उन कार्यों में संलिप्त नहीं हैं, जिनमें रावण और कुंभकर्ण आदि लगे हैं। उनका लक्ष्य है कि हमें रामजी की सेवा करनी है और रामजी के माध्यम से संपूर्ण मानवता की सेवा करनी है, इसीलिए बिना किसी बंधन के, बिना किसी माध्यम के वह भगवान की सेवा में आ जाते हैं। उनके अंदर है कि मैं भगवान का हूं। 

रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य

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