Sunday, 31 December 2023

स्वागत करना सीखिए

मनु ने लिखा है कि सज्जनों के यहां स्वागत के चार संसाधन सदा उपस्थित रहते हैं। सबसे पहले, कोई आया है, तो हम उसे नमस्कार करें। घर के सभी लोग करें, बच्चों से भी कहें- देखो, मैं कर रहा हूं, आप भी करो। कोई आया है, जो कनिष्ठ है, अनजान है, जान नहीं रहे कि छोटा है या बड़ा, किस भाव से आया है, किंतु उसे भी प्रणाम करना है। हां, ध्यान रहे! साष्टांग दंडवत ईश्वर, गुरु और माता-पिता को ही किया जा सकता है। साष्टांग दंडवत सबके लिए नहीं होता। सामान्य तौर पर कोई भी आपके घर आए, तो कम से कम हाथ जोड़िए।

यह स्वागत है। इतने में आने वाला आदमी पानी हो जाएगा, पानी कहना गलत लग रहा हो, तो गलकर दूध हो जाएगा। जिसे आपने सम्मान दिया, जिसका स्वागत किया है। अपनी संस्कृति में जय श्रीराम, सीता-राम, जय महादेव, जय श्रीकृष्ण, राधे-राधे, राधे-कृष्णा बोलकर भी स्वागत करने का चलन है। यह स्वागत बिना पैसे का है, कोई भी इस व्यवहार को कर सकता है। यह शिक्षा शुरू से नहीं होने से प्रणाम वाली बात तो समाप्त हो चुकी है। लोग घुटने को ही हाथ लगा देते हैं। बड़े-बड़े विद्वान भी घुटने में एक हाथ लगा देते हैं; हो गया प्रणाम, नमस्कार?

स्वागत का दूसरा चरण है- अतिथि को आसन दें। जो भी आसन उपलब्ध हो, उस पर बैठाएं आदर के साथ। ऐसा नहीं कि केवल बोल दिया- बैठिए! हम अतिथि को आसन तक ले आएं और कहें कि विराजिए। आसन को सुशोभित कीजिए। आसन सबको प्रिय है। अंग्रेजी वाले बोलते हैं- 'टेक योर सीट', आप अपनी जगह लें, इसमें वह मर्यादा भाव नहीं है।

तीसरा चरण या संसाधन है- अतिथि से कुशल क्षेम पूछना। यह स्वागत मान देने का बड़ा साधन है। पूछिए कि आप कैसे हैं? इधर कैसे आना हुआ? ये तीन साधन बिना धन, बिना किसी तैयारी के उपलब्ध हैं, हर परिवार में हर समय उपलब्ध हैं।

चौथा हैं, अतिथि को जल पिलाएं। बहुत प्यार से कहें कि जल ग्रहण करें, आप चलकर आ रहे हैं। ऐसा नहीं कि आपने लाकर रख दिया, बहुत है। प्रेम से अतिथि के हाथों में जल का पात्र दीजिए। ये बातें जीवन भर काम आने वाली हैं। सभी लोग अरबपति नहीं होंगे, सभी बड़े पद पर नहीं होंगे, सबको जीवन का बड़ा उत्कर्ष प्राप्त नहीं होगा, लेकिन ये चारों संसाधन, जो अत्यंत प्रभावित करने वाले हैं, जीवात्मा के विकास के बड़े साधन हैं, उनका संपादन करें।

वेद में लिखा है- अतिथि देवो भवः, यानी जो बिना सूचना के आ गया है, तो हम बिना किसी प्रयोजन के, बिना आडंबर, दिखावे के उसका स्वागत करें। ऐसे संस्कार की समाज और राष्ट्र को बहुत जरूरत है। रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य

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