सम्मान देने का भाव बच्चों में शुरू से डालना चाहिए। इसे ही अंग्रेजी में 'प्रोटोकॉल' कहते हैं- क्या किसकी मर्यादा है! आज में देखता हूं, पिता खड़े रहते हैं और बेटा बैठ जाता है। बताइए, कहीं ऐसा होता है क्या कि पुलिस का बड़ा अधिकारी खड़ा है और छोटा अधिकारी बैठ जाए। ऐसा तो नहीं होता, ऐसा कोर्ट में भी नहीं होता, सेना में नहीं होता, किसी बड़े संगठन में ऐसा होगा क्या? कहीं भी नहीं होता। बड़ा जब तक खड़ा है, तब तक छोटा भी खड़ा रहेगा। बड़ा यदि बैठा है, तो छोटा भी बैठ सकता है, किंतु पूछकर बैठेगा। आज सम्मान देने का भाव बहुत ही कम हो रहा है, प्रोटोकॉल लोग समझ ही नहीं रहे हैं।
अमानिना मानदेयः कीर्तनीयः सदा हरिः। चैतन्य महाप्रभु ने कहा कि यदि किसी को भक्त बनना है, भगवान का भजन करना है, तो मान की इच्छा छोड़ो और मान देने की इच्छा से जुड़ो। हमें दूसरों को मान देना है। हमें मान चाहिए, हम चाहते हैं कि सब लोग हमारी जय-जयकार करें। मान देने की परंपरा, मर्यादा निभाने की परंपरा बच्चों को शुरू से ही बतलानी चाहिए। जब पिता आएं, तो आप खड़े हो जाओ, उन्हें प्रणाम करो, यह शुरू से सिखाना होगा। पिता बड़े हैं, उनका मान-सम्मान करें। इससे समाज जुड़ेगा, मानवता का विकास होगा। सार्थकता बढ़ेगी। इसलिए भगवान राम जब उठते हैं, तो सबसे पहले भगवान को प्रणाम करके, जो कुलदेवता हैं, माता-पिता को, ब्राह्मणों को, जितने भी बड़े लोग हैं, सबको प्रणाम करते हैं।
प्रणाम बहुत बड़ी साधना है। यह समाज का बहुत बड़ा जोड़ने वाला द्रव है। सम्मान ही आदमी को चाहिए। सारे लोग भोजन ही नहीं मांगते, कपड़ा ही नहीं मांगते, किंतु सम्मान सबको अच्छा लगता है। आज भी लोग हाथ जुड़वाते हैं; हाथ जुड़वाने, प्रणाम करवाने का उपक्रम चल रहा है, किंतु अधिकांश परिवारों में अब बंद हो रहा है। बच्चों को नहीं सिखाते और स्वयं भी नहीं करते हैं। अब तो लोग घुटने में ही हाथ लगा देते हैं। यह कोई बात हुई क्या? कुछ दिनों में पेट में लगा देंगे, उसके बाद छाती में लगा देंगे, गला में लगा देंगे, सिर में लगा देंगे, ये कोई प्रणाम की पद्धति हुई क्या? वरिष्ठ खड़ा है और छोटा ही बैठ गया। यह मर्यादा की बात हुई क्या?
पूरी दुनिया का मूल तंत्र है प्रणाम! हमें किसी को पिघलाना है, हमें किसी को अपना बनाना है, तो उसको हम प्रणाम करें। बाकी सब बातें गौण हैं। अपने बच्चों को यह शिक्षा देनी ही चाहिए कि जब तक बड़े खड़े हैं, तब तक छोटों को बैठना नहीं है। कैसे हाथ जोड़ना है, कैसे चरण स्पर्श करना है। किस तरह से उन्हें बोलना है। यह घर रूपी विद्यालय का कार्य है।
रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य
No comments:
Post a Comment