भारत में रामभक्ति की अविरल धारा के जनक आचार्यश्री रामानंद जी के प्राकट्य धाम हरित माधव मंदिर, प्रयाग, इलाहाबाद में २ सितम्बर संध्या के समय अनेक विद्वानों की उपस्थिति में ‘दु:ख क्यों होता है?’ पुस्तिका का लोकार्पण हुआ। रामानंद संप्रदाय की मूल पीठ श्रीमठ, वाराणसी के पीठाधीश्वर रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज के पावन सानिध्य में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दर्शन विभाग के अध्यक्ष जटाशंकर जी और देश के प्रसिद्ध संस्कृत समाचारवाचक बलदेवानंद सागर जी ने के इस पुस्तिका का विमोचन किया। इस पावन अवसर पर दिल्ली से आए प्रसिद्ध पत्रकार रामबहादुर राय भी मंच पर विराजमान थे।
श्रीमठ से अनेक ग्रंथों का प्रकाशन हुआ है, किन्तु यह पुस्तिका या ग्रंथ इस मामले में एक शुरुआत है कि इसमें रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज के प्रवचन संकलित हैं। प्रवचन समकालीन समस्याओं पर केन्द्रित हैं, इसमें रामभक्ति से लेकर हिग्स बोसोन या ईश्वरीय कण की वैज्ञानिक खोज पर भी विस्तृत चर्चा है। इस प्रवचन ग्रंथ से यह समझने में सहायता मिलती है कि धर्म क्या है? आज की समस्याओं का समाधान क्या है? दु:ख क्यों होता है? सुख कैसे होगा? कन्या भ्रूण हत्या से लेकर आतंकवाद और प्रतिशोध जैसे विषय पर भी इसमें प्रवचन संकलित हैं।
इस अवसर पर अपने उद्बोधन में स्वामी रामनरेशाचार्य जी ने कहा,‘तुलसीदास जी ने कहा है, निरंतर सुनिए, निरंतर गाइए और निरंतर स्मरण कीजिए, मैं भी निरंतर बोल रहा हूं, निरंतर सुन रहा हूं, निरंतर स्मरण कर रहा हूं, किन्तु लिखने या लिखवाने का अवसर नहीं आया। लिखने का काम अब ज्ञानेश जी ने किया है।’ उन्होंने यह भी कहा, ‘मैं पुस्तिका को पढ़ रहा था, मेरे मन में बार-बार प्रश्न आ रहा था, क्या यह मैंने ही कहा था या ज्ञानेश जी को ही ज्ञान हो गया और उन्होंने लिख दिया। अब विश्वास नहीं होता, ये मेरे ही शब्द हैं। किन्तु ध्यान दीजिए, गीता बस एक बार श्री कृष्ण के मुख से निकली थी। ऐसा नहीं है कि जब कहा जाए, कृष्ण गीता सुनाने लगें, एक विशेष अवसर व प्रयोजन था, जब गीता अवतरित हुई।’
डॉ. जटाशंकर जी ने कहा, ‘धर्म प्रत्येक व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाने का कार्य करता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि धार्मिक आचरण, दूसरों की सेवा, दया, करुणा से व्यक्ति के दु:ख कम होते हैं।’ उन्होंने पुस्तिका में प्रवचन में उल्लिखित महर्षि वेदव्यास जी के श्लोक - को विशेष रूप से याद किया। इस श्लोक में महर्षि वेदव्यास कह रहे हैं कि मैं दोनों हाथ ऊपर उठाकर पुकार-पुकारकर कह रहा हूं, पर मेरी बात कोई नहीं सुनता। धर्म से मोक्ष तो सिद्ध होता ही है, अर्थ और काम भी सिद्ध होते हैं, तो भी लोग उसका सेवन क्यों नहीं करते? जटाशंकर जी ने कहा, ‘आज वास्तव में धर्म की पुकार को सुनने की आवश्यकता है। शास्त्र हमें समाधान बता सकते हैं, हमारे दु:ख दूर करने के उपाय बता सकते हैं।’
श्री बलदेवानंद सागर जी ने पुस्तिका के शीर्षक की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘बुरे आचरण के कारण ही दु:ख होता है। यह पुस्तिका एक पावन व प्रशंसनीय प्रयास है, पुस्तिका के माध्यम से रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी के विचार मुद्रित अवस्था में लोगों तक पहुंचेंगे, जिससे समाज और देश का भला होगा।’ प्रस्तुत पुस्तिका में स्वामी रामनरेशाचार्य जी का परिचय लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय जी ने कहा, ‘रामानंद संप्रदाय अकेला ऐसा संप्रदाय है, जिसमें सभी जाति और धर्म के लोगों के लिए जगह है। यह देश के लिए एक अत्यंत उपयोगी संप्रदाय है। यह देश को एक सूत्र में पिरोने का काम कर सकता है।’ उन्होंने स्वामी रामनरेशाचार्य जी की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘यह एक ऐसे सच्चे, सहज और प्रखर संत हैं, जिनसे देश को बहुत आशाएं हैं। देश में ऐसे संत बहुत कम हैं, जो वास्तव में देश और समाज के भले के लिए सोच रहे हैं।’
जयपुर से आए वरिष्ठ पत्रकार व पुस्तिका के संयोजक व संपादन सेवक ज्ञानेश उपाध्याय ने कहा, ‘आज के अत्यंत दुष्कर समय में महाराज स्वामी रामनरेशाचार्य जी के रूप में एक सूर्य उगा हुआ है, हमें अपने-अपने दरवाजे-झरोखे खोल लेने चाहिए और उनके प्रवचन प्रकाश को अपने भीतर उतरने देना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘यह पुस्तिका एक बड़े अभाव की छोटी पूर्ति है। यह एक सिलसिले की शुरुआत है, जो राम जी और जगदगुरु के आशीर्वाद से आगे निरंतर रहेगा।’ उन्होंने स्वामी रामनरेशाचार्य जी को समकालीन समाज और पत्रकारों के लिए अत्यंत उपयोगी बताते हुए और लोकार्पण स्थल के निकट ही बह रही गंगा जी की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘जैसे गंगा मैया की तुलना केवल गंगा मैया से हो सकती है, जैसे सागर की तुलना केवल सागर से हो सकती है, जैसे राम जी की तुलना केवल राम जी से हो सकती है, ठीक उसी प्रकार महाराज जी (स्वामी रामनरेशाचार्य जी) की तुलना केवल महाराज जी से ही हो सकती है।’
दु:ख क्यों होता है? - पुस्तिका के निर्माण में पग-पग पर सहयोगी रहे संस्कृत के जयपुरवासी रामभक्त विद्वान शास्त्री कोसलेन्द्रदास ने लोकार्पण कार्यक्रम का अत्यंत कुशल व व्यापक बहुमुखी संचालन करके इस अवसर को ऐतिहासिक और पावन बना दिया। उन्होंने पुस्तिका के मुद्रक प्रिंट ओ लैंड के स्वामी श्री सत्यनारायण अग्रवाल की भी प्रशंसा करते हुए कहा, ‘यह प्रयास था कि पुस्तिका ज्यादा मोटी या कीमती न हो, ऐसी हो कि सहजता से जन-जन तक पहुंचे और रामभक्ति का प्रसार हो।’ उन्होंने कहा, ‘रामभक्ति समाधान की संभावनाओं का अनंत आकाश है, जिसके माध्यम से हमारे सारे दु:ख दूर हो सकते हैं। यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि महाराज जी के आशीर्वाद से इंटरनेट पर आज एक ऐसा ब्लॉग है, जिसके माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने में जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी के श्रीमुख से निकले पावन मार्गदर्शक शब्द पूरे संसार में प्रचार-प्रसार पा रहे हैं। रामभक्ति की यह यात्रा सतत रहनी चाहिए।’
वाराणसी सेआए विद्वान एवं श्रीमठ के प्रकाशन का दायित्व संभालने वाले डॉ. उदय प्रताप सिंह ने लोकार्पण के अवसर पर उपस्थित विद्वजनों, संतों और श्रद्धालुओं का आभार जताते हुए कहा, ‘पुस्तिका के रूप में एक अच्छा प्रयास सामने आया है, महाराज के प्रवचन प्रकाशित हुए हैं, यह दायित्व मेरा था, लेकिन मीडिया में होने के कारण ज्ञानेश उपाध्याय मुझसे इस मामले में आगे निकल गए हैं। उनको मेरी तरफ से बधाई है।’
लोकार्पण के अवसर पर हरित माधव मंदिर में बड़ी संख्या में संत, विद्वजन, भक्त और सेवक उपस्थित थे, सभी ने रामभक्ति धारा और पुस्तिका का आनंद लिया। लोकार्पण के उपरांत भव्य भंडारे का भी आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में उपस्थित जनों ने प्रसाद पाया। कार्यक्रम स्थल के निकट ही ‘दु:ख क्यों होता है?’ पुस्तिका के लिए एक स्टॉल लगाई गई थी, जिस पर रखी सभी पुस्तिकाएं देखते-देखते बिक गईं। करीब ७८ पृष्ठ और २५ रुपये कीमत वाली पुस्तिका में श्री रामबहादुर राय द्वारा लिखित महाराज जी के परिचय के उपरांत महाराज जी के १३ प्रवचन अंश हैं और सबसे अंत में रामानंद संप्रदाय की मूल गद्दी वाराणसी में गंगा किनारे पंचगंगा घाट पर स्थित श्रीमठ पर लिखा गया एक फीचर है, जिसमें श्रीमठ के कल और आज के बारे में जाना जा सकता है। पुस्तिका के कवर पृष्ठ पर महाराज जी का चित्र और पिछले कवर पृष्ठ पर महाराज जी की प्रिय प्रार्थना महाकवि जयदेव रचित मंगलगीतम - श्रितकमलाकुचमण्डल. . . भी मुद्रित है।
जय श्री राम
श्रीमठ से अनेक ग्रंथों का प्रकाशन हुआ है, किन्तु यह पुस्तिका या ग्रंथ इस मामले में एक शुरुआत है कि इसमें रामानंदाचार्य स्वामी श्री रामनरेशाचार्य जी महाराज के प्रवचन संकलित हैं। प्रवचन समकालीन समस्याओं पर केन्द्रित हैं, इसमें रामभक्ति से लेकर हिग्स बोसोन या ईश्वरीय कण की वैज्ञानिक खोज पर भी विस्तृत चर्चा है। इस प्रवचन ग्रंथ से यह समझने में सहायता मिलती है कि धर्म क्या है? आज की समस्याओं का समाधान क्या है? दु:ख क्यों होता है? सुख कैसे होगा? कन्या भ्रूण हत्या से लेकर आतंकवाद और प्रतिशोध जैसे विषय पर भी इसमें प्रवचन संकलित हैं।
इस अवसर पर अपने उद्बोधन में स्वामी रामनरेशाचार्य जी ने कहा,‘तुलसीदास जी ने कहा है, निरंतर सुनिए, निरंतर गाइए और निरंतर स्मरण कीजिए, मैं भी निरंतर बोल रहा हूं, निरंतर सुन रहा हूं, निरंतर स्मरण कर रहा हूं, किन्तु लिखने या लिखवाने का अवसर नहीं आया। लिखने का काम अब ज्ञानेश जी ने किया है।’ उन्होंने यह भी कहा, ‘मैं पुस्तिका को पढ़ रहा था, मेरे मन में बार-बार प्रश्न आ रहा था, क्या यह मैंने ही कहा था या ज्ञानेश जी को ही ज्ञान हो गया और उन्होंने लिख दिया। अब विश्वास नहीं होता, ये मेरे ही शब्द हैं। किन्तु ध्यान दीजिए, गीता बस एक बार श्री कृष्ण के मुख से निकली थी। ऐसा नहीं है कि जब कहा जाए, कृष्ण गीता सुनाने लगें, एक विशेष अवसर व प्रयोजन था, जब गीता अवतरित हुई।’
डॉ. जटाशंकर जी ने कहा, ‘धर्म प्रत्येक व्यक्ति को श्रेष्ठ बनाने का कार्य करता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि धार्मिक आचरण, दूसरों की सेवा, दया, करुणा से व्यक्ति के दु:ख कम होते हैं।’ उन्होंने पुस्तिका में प्रवचन में उल्लिखित महर्षि वेदव्यास जी के श्लोक - को विशेष रूप से याद किया। इस श्लोक में महर्षि वेदव्यास कह रहे हैं कि मैं दोनों हाथ ऊपर उठाकर पुकार-पुकारकर कह रहा हूं, पर मेरी बात कोई नहीं सुनता। धर्म से मोक्ष तो सिद्ध होता ही है, अर्थ और काम भी सिद्ध होते हैं, तो भी लोग उसका सेवन क्यों नहीं करते? जटाशंकर जी ने कहा, ‘आज वास्तव में धर्म की पुकार को सुनने की आवश्यकता है। शास्त्र हमें समाधान बता सकते हैं, हमारे दु:ख दूर करने के उपाय बता सकते हैं।’
श्री बलदेवानंद सागर जी ने पुस्तिका के शीर्षक की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘बुरे आचरण के कारण ही दु:ख होता है। यह पुस्तिका एक पावन व प्रशंसनीय प्रयास है, पुस्तिका के माध्यम से रामानंदाचार्य स्वामी रामनरेशाचार्य जी के विचार मुद्रित अवस्था में लोगों तक पहुंचेंगे, जिससे समाज और देश का भला होगा।’ प्रस्तुत पुस्तिका में स्वामी रामनरेशाचार्य जी का परिचय लिखने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्री रामबहादुर राय जी ने कहा, ‘रामानंद संप्रदाय अकेला ऐसा संप्रदाय है, जिसमें सभी जाति और धर्म के लोगों के लिए जगह है। यह देश के लिए एक अत्यंत उपयोगी संप्रदाय है। यह देश को एक सूत्र में पिरोने का काम कर सकता है।’ उन्होंने स्वामी रामनरेशाचार्य जी की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘यह एक ऐसे सच्चे, सहज और प्रखर संत हैं, जिनसे देश को बहुत आशाएं हैं। देश में ऐसे संत बहुत कम हैं, जो वास्तव में देश और समाज के भले के लिए सोच रहे हैं।’
जयपुर से आए वरिष्ठ पत्रकार व पुस्तिका के संयोजक व संपादन सेवक ज्ञानेश उपाध्याय ने कहा, ‘आज के अत्यंत दुष्कर समय में महाराज स्वामी रामनरेशाचार्य जी के रूप में एक सूर्य उगा हुआ है, हमें अपने-अपने दरवाजे-झरोखे खोल लेने चाहिए और उनके प्रवचन प्रकाश को अपने भीतर उतरने देना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘यह पुस्तिका एक बड़े अभाव की छोटी पूर्ति है। यह एक सिलसिले की शुरुआत है, जो राम जी और जगदगुरु के आशीर्वाद से आगे निरंतर रहेगा।’ उन्होंने स्वामी रामनरेशाचार्य जी को समकालीन समाज और पत्रकारों के लिए अत्यंत उपयोगी बताते हुए और लोकार्पण स्थल के निकट ही बह रही गंगा जी की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘जैसे गंगा मैया की तुलना केवल गंगा मैया से हो सकती है, जैसे सागर की तुलना केवल सागर से हो सकती है, जैसे राम जी की तुलना केवल राम जी से हो सकती है, ठीक उसी प्रकार महाराज जी (स्वामी रामनरेशाचार्य जी) की तुलना केवल महाराज जी से ही हो सकती है।’
दु:ख क्यों होता है? - पुस्तिका के निर्माण में पग-पग पर सहयोगी रहे संस्कृत के जयपुरवासी रामभक्त विद्वान शास्त्री कोसलेन्द्रदास ने लोकार्पण कार्यक्रम का अत्यंत कुशल व व्यापक बहुमुखी संचालन करके इस अवसर को ऐतिहासिक और पावन बना दिया। उन्होंने पुस्तिका के मुद्रक प्रिंट ओ लैंड के स्वामी श्री सत्यनारायण अग्रवाल की भी प्रशंसा करते हुए कहा, ‘यह प्रयास था कि पुस्तिका ज्यादा मोटी या कीमती न हो, ऐसी हो कि सहजता से जन-जन तक पहुंचे और रामभक्ति का प्रसार हो।’ उन्होंने कहा, ‘रामभक्ति समाधान की संभावनाओं का अनंत आकाश है, जिसके माध्यम से हमारे सारे दु:ख दूर हो सकते हैं। यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि महाराज जी के आशीर्वाद से इंटरनेट पर आज एक ऐसा ब्लॉग है, जिसके माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने में जगदगुरु स्वामी रामनरेशाचार्य जी के श्रीमुख से निकले पावन मार्गदर्शक शब्द पूरे संसार में प्रचार-प्रसार पा रहे हैं। रामभक्ति की यह यात्रा सतत रहनी चाहिए।’
वाराणसी सेआए विद्वान एवं श्रीमठ के प्रकाशन का दायित्व संभालने वाले डॉ. उदय प्रताप सिंह ने लोकार्पण के अवसर पर उपस्थित विद्वजनों, संतों और श्रद्धालुओं का आभार जताते हुए कहा, ‘पुस्तिका के रूप में एक अच्छा प्रयास सामने आया है, महाराज के प्रवचन प्रकाशित हुए हैं, यह दायित्व मेरा था, लेकिन मीडिया में होने के कारण ज्ञानेश उपाध्याय मुझसे इस मामले में आगे निकल गए हैं। उनको मेरी तरफ से बधाई है।’
लोकार्पण के अवसर पर हरित माधव मंदिर में बड़ी संख्या में संत, विद्वजन, भक्त और सेवक उपस्थित थे, सभी ने रामभक्ति धारा और पुस्तिका का आनंद लिया। लोकार्पण के उपरांत भव्य भंडारे का भी आयोजन हुआ, जिसमें बड़ी संख्या में उपस्थित जनों ने प्रसाद पाया। कार्यक्रम स्थल के निकट ही ‘दु:ख क्यों होता है?’ पुस्तिका के लिए एक स्टॉल लगाई गई थी, जिस पर रखी सभी पुस्तिकाएं देखते-देखते बिक गईं। करीब ७८ पृष्ठ और २५ रुपये कीमत वाली पुस्तिका में श्री रामबहादुर राय द्वारा लिखित महाराज जी के परिचय के उपरांत महाराज जी के १३ प्रवचन अंश हैं और सबसे अंत में रामानंद संप्रदाय की मूल गद्दी वाराणसी में गंगा किनारे पंचगंगा घाट पर स्थित श्रीमठ पर लिखा गया एक फीचर है, जिसमें श्रीमठ के कल और आज के बारे में जाना जा सकता है। पुस्तिका के कवर पृष्ठ पर महाराज जी का चित्र और पिछले कवर पृष्ठ पर महाराज जी की प्रिय प्रार्थना महाकवि जयदेव रचित मंगलगीतम - श्रितकमलाकुचमण्डल. . . भी मुद्रित है।
जय श्री राम