Wednesday, 30 October 2013

शक्ति का दुरुपयोग न हो

प्रवचन भाग - दो
पहले के समय में शक्ति की सच्ची अराधना होती थी, उसका लाभ मिलता था। जो जीवन को सही स्वरूप देने वाला शक्ति का उपयोग है, वह होता था। श्रीमद्भागवत में लिखा है, कमाई का एक भाग अपने में लगाना चाहिए, एक भाग परिजनों में अर्थात भाई-बहनों-सम्बंधियों में, एक भाग राष्ट्र में, एक भाग धर्म में और एक भाग व्यवसाय में लगाना चाहिए।
एक भाग परिजनों को भी देना पड़ता है, जैसे संपत्ति बंटी, तो मुकेश अंबानी की बहनों को भी हिस्सा मिला, कहते हैं कि दस-दस फीसद धन उन्हें मिला, उनकी माता कोकिला बेन को भी मिला। अब तो कानून बन गया है कि बहनों को भी बराबर का हिस्सा मिलेगा। बहनों की शक्ति बढ़ गई। राष्ट्र को भी कमाई का एक भाग देना चाहिए, जब सीमा पर लड़ाई छिड़ेगी, तो क्या आप लडऩे जाएंगे? तो राष्ट्र को भी आपकी कमाई का हिस्सा मिलना चाहिए, ताकि विकास हो, मूलभूत सुविधाएं बढ़ें। एक भाग धर्म में भी लगना चाहिए। व्यापार में भी एक भाग लगे, तभी तो व्यापार बढ़ेगा, धन आएगा।
शक्ति के छोटे-छोटे अनेक क्रम हैं, लेकिन जो सर्वोच्च शक्ति है, उसके रूप में देवी पूजन इत्यादि होता है। शक्ति या कमाई का सदुपयोग होना ही चाहिए। शक्ति जो अर्जित होती है अराधना से, उसका छोटा-छोटा सदुपयोग भी होता था और बड़ा-बड़ा सदुपयोग भी।
हमारे राष्ट्र में शक्ति पूजन का इतना लंबा क्रम चल रहा था, इसलिए चल रहा था कि शक्ति के अर्जन और उपयोग की प्रक्रिया नियंत्रित व संतुलित थी, हमारे पूर्वज शक्ति का बहुत विवेक के साथ उपयोग करते थे, अब सब गड़बड़ा रहा है। समाज में पहले भी ऐसी घटनाएं होती थीं शक्ति के अपमान की, बलात्कार या हत्या की, लेकिन बहुत कम होती थीं, किन्तु अब बहुत बढ़ गई हैं, क्योंकि शक्ति के प्रति सम्मान और सदुपयोग का भाव कम हो गया है। प्राचीन काल में भी बहुत अत्याचार हुए हैं, जब जानकी जी का ही अपहरण हो सकता है, तो क्या कहा जाए? राजाओं की बहुत-सी पत्नियां थीं। राम जी के पिता राजा दशरथ जी की भी कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा के अतिरिक्त साढ़े तीन सौ पत्नियां थीं। राम जी जब वनवास को जाने लगे, तब सारी माताएं अपने यथास्थान खड़ी थीं। हर किसी का अपना स्थान होता है, कौन कहां खड़ा होगा, कहां बैठेगा, इसकी भी अपनी एक परंपरा रही है। राजघरानों में भी यह व्यवस्था होती है। हालांकि अब तो चपरासी भी आगे बढक़र साहब के साथ खड़ा हो जाता है, छोटा भाई अपने बड़े भाई को पीछे करके आगे खड़ा हो जाता है। लोग अपने पिता से आगे खड़े हो जाते हैं। संत-महात्माओं के दरबार में भी गड़बड़ हुई है, पुराने संत चेले सेवा करके घिस जाते हैं, गुरुजी के सामने बैठने का अवसर नहीं मिलता, किन्तु कोई धनवान नया चेला भी आ जाए, तो गुरुजी उसे एकदम पास बिठाते हैं। 
तो अध्यात्म रामायण में लिखा है, राम जी जब चलने लगे, तो अपनी उन सभी ३५० माताओं से कहा, 'आप सभी को प्रणाम करता हूं, यदि मुझसे कोई भी अपराध हो गया हो, तो क्षमा करें, जैसे मां कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा माताएं हैं, वैसे ही आप भी माता हैं, मैंने आपसे कोई भेद नहीं किया, आप मेरे पिता को सुख देने वाली हैं, मैं आपका सम्मान करता हूं।

पौराणिक काल में भी गलत काम हुए थे। गाड़ी चलाने में पहले भी दुर्घटनाएं होती थीं, आज भी हो रही हैं, जब कोई ध्यान से गाड़ी नहीं चलाएगा, जब इधर-उधर देखकर चलाएगा, मोबाइल में बात करते हुए चलाएगा, तो दुर्घटना तो होगी ही। अच्छे-अच्छे वाहन आ गए हैं, किन्तु जब उन्हें ठीक से चलाया नहीं जाता है, तो दुर्घटनाएं होती हैं।
क्रमश:

No comments:

Post a Comment