भाग - ४
एक आख्यान आपको सुनाऊंगा - उस आश्रम को प्रेमानन्द आश्रम कहते हैं। जब उस आश्रम का स्वरूप उतना चमका नहीं था, तब वहां महात्मा प्रेमानन्द जी रहते थे, जूना अखाड़े के महात्मा थे। जिनसे मुझे आश्रम मिला है, उनके ये गुरुदेव थे। उनके समय यह आश्रम जबलपुर शहर से दूर माना जाता था। महात्मा जी वहां जमने जा रहे थे, किन्तु वहां कुछ अराजक तत्व थे, जो पीछे पड़े हुए थे। उन अराजक तत्व का षड्यंत्र आश्रम की भूमि हड़पने का था। स्वामी प्रेमानन्द राम भक्त थे, बड़े संत थे, एक बार राम कहकर उन्हें चुप कराने में आधा घंटा लगता था, इतना रोते थे, संन्यासी होकर राम मंदिर उन्होंने बनवाया, रामायण गाते थे। अराजक तत्व जमीन खाली करवाने के लिए उन्हें निरंतर परेशान कर रहे थे, तंग होकर उन्होंने निर्णय लिया कि कल चला जाऊंगा। उसी रात्रि में एक बूढ़ी महिला आई, सफेद कपड़ा पहनकर और अभिवादन किया, 'स्वामी जी प्रणाम, ओम नमो नारायण।Ó स्वामी प्रेमानन्द जी ने भी अभिवादन किया।
उस महिला ने पूछा, 'आप रो रहे हैं?
स्वामी जी ने जवाब दिया, 'अब मुझे यहां से जाना है, लोग मुझे बहुत तंग कर रहे हैं, जमीन पर कब्जा करने के लिए।
अभी आश्रम का परिसर १५ एकड़ में है, तब तो और ज्यादा था।
बूढ़ी महिला ने कहा, 'नहीं अब कोई तंग नहीं करेगा, आप यहीं रहें और राम मंदिर बनवाएं।
स्वामी प्रेमानन्द जी के मन में पहले से ही राम मंदिर का विचार चल रहा था। स्वामी जी भाव विह्वल थे, 'नहीं, मैं अब तंग हो गया हूं, अब जाऊंगा...।
किन्तु जब वह महिला चली गई, तो स्वामी जी को होश आया कि देखें समय क्या हो रहा है, तो रात्रि के २ बज रहे थे। वह स्थान शहर से १० से १२ किलोमीटर दूर था, उस समय संध्या को भी वहां कोई नहीं आता था। वे घूमकर खोजने लगे, कहां है वह महिला, किन्तु कहीं भी वह नहीं मिली।
प्रेरणा मिली, तो स्वामी प्रेमानन्द जी ने वहीं रुकने का निर्णय किया। उन्होंने राम मंदिर बनवाया। इस बात को अब ७० साल के करीब हो गए हैं। यह सब कथा मुझे वहां जाने पर सुनाई गई। यह नर्मदा जी का ही आश्रम है, तो मैंने निर्णय लिया, हम प्रयोग करें। मैंने भी श्रद्धा भक्ति से शुरुआत की और नर्मदा जी की पूजा में एक महीने का उत्सव किया। वैशाख मास में और रोज नर्मदा जी का पूजन, रोज साड़ी चढ़ाना, रोज देशी घी का हलवा, वहां दरिद्र नारायण भी बैठते हैं, अब तो उनका भोजन भी वहां होता है, प्रति दिन दरिद्र नारायण की सेवा होती है।
पहले भी नियम था आश्रम में कोई भी आए, तो चाय पिलाना है, भोजन देना है, तो वहां हमने बड़ा भंडार शुरू कर दिया, जो आए भोजन कराया जाए, इस देश में जहां भी हम भोजन की व्यवस्था करते हैं, सबसे बड़ा भोजनालय जबलपुर में ही है। नर्मदा जी के लिए मेरे अंदर गंगा जी के समान ही निष्ठा है, उसी निष्ठा के अनुरूप मैंने नर्मदा परिक्रमा की। परिक्रमा या प्रदक्षिणा भी पूजन का ही अंग है। पूजन जब होता है, तो ब्राह्मण यह वंदना करते हैं :
ú यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।
जो हमारे यहां पूजन की विधि है, उसका एक भाग प्रदक्षिणा है। इसका अर्थ है हमने सम्पूर्ण जीवन आपको अर्पित कर दिया, तभी आपके आगे-पीछे घूम रहे हैं। कहा जाता है कि वह उनके आगे पीछे घूमता है, इसका मतलब है कि पूर्ण समर्पित है। प्रदक्षिणा का अर्थ है पूर्ण सम्मान देना, पूर्ण रूप से उसके लिए समाहित हो जाना। भगवान की दया से हम लोग नर्मदा जी की पूजा परिक्रमा के लिए गए थे। इस परिक्रमा का अर्थ है, नर्मदा जी के लिए सम्पूर्ण समर्पण का भाव।
परिक्रमा के मार्ग पर प्रवचन भी होते थे, मैं रोज कुछ कहता था, यह भी कहता था कि परिक्रमा का अर्थ किसी के समग्र स्वरूप का दर्शन करना है। जैसे मैं आपको अभी एक कोण से देख रहा हूं, लेकिन जब परिक्रमा करने लगूंगा, तो आपकी बांह को भी देखूंगा, पीठ को भी देखूंगा, बालों को देखूंगा और जो भी अंग प्रत्यंग हैं, मतलब समग्रता दर्शन का एक प्रयास परिक्रमा है। समग्रता के साथ एक प्रयास परिक्रमा है। परिक्रमा का निवेदन है कि आप हम पर कृपा करें।
वैसे संसार में बहुधा आंशिक ही समर्पण हो पाता है। जैसे बीस-तीस प्रतिशत वोट पाकर भी नेता जीत जाता है, राजनीतिक दल सरकार बना लेते हैं, अब कभी किसी को सौ प्रतिशत वोट नहीं मिलता है। यह बात भी सच है कि सौ प्रतिशत लोग वोट भी नहीं डालते। वैसे मैं कहूंगा, लोगों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोट डालना चाहिए, ताकि सम्पूर्ण भाव या मानस का पता लगे। अभी अखबार वालों ने वोट के लिए बहुत प्रयास किए, वोट प्रतिशत राज्यों में भी बढ़ा और लोकसभा चुनाव में भी बढ़ा है। वोट का अर्थ समझना चाहिए। अंग्रेज जब थे, तो आपको कोई पूछता था क्या, लेकिन अब वोट का महत्व है, उससे आप सरकार चुनते हैं। जिसका चुनाव करना है, पूरा चुनाव कीजिए। सम्पूर्णता के साथ जब तक चयन नहीं होगा, तब तक बात नहीं बनेगी।
क्रमश:
एक आख्यान आपको सुनाऊंगा - उस आश्रम को प्रेमानन्द आश्रम कहते हैं। जब उस आश्रम का स्वरूप उतना चमका नहीं था, तब वहां महात्मा प्रेमानन्द जी रहते थे, जूना अखाड़े के महात्मा थे। जिनसे मुझे आश्रम मिला है, उनके ये गुरुदेव थे। उनके समय यह आश्रम जबलपुर शहर से दूर माना जाता था। महात्मा जी वहां जमने जा रहे थे, किन्तु वहां कुछ अराजक तत्व थे, जो पीछे पड़े हुए थे। उन अराजक तत्व का षड्यंत्र आश्रम की भूमि हड़पने का था। स्वामी प्रेमानन्द राम भक्त थे, बड़े संत थे, एक बार राम कहकर उन्हें चुप कराने में आधा घंटा लगता था, इतना रोते थे, संन्यासी होकर राम मंदिर उन्होंने बनवाया, रामायण गाते थे। अराजक तत्व जमीन खाली करवाने के लिए उन्हें निरंतर परेशान कर रहे थे, तंग होकर उन्होंने निर्णय लिया कि कल चला जाऊंगा। उसी रात्रि में एक बूढ़ी महिला आई, सफेद कपड़ा पहनकर और अभिवादन किया, 'स्वामी जी प्रणाम, ओम नमो नारायण।Ó स्वामी प्रेमानन्द जी ने भी अभिवादन किया।
उस महिला ने पूछा, 'आप रो रहे हैं?
स्वामी जी ने जवाब दिया, 'अब मुझे यहां से जाना है, लोग मुझे बहुत तंग कर रहे हैं, जमीन पर कब्जा करने के लिए।
अभी आश्रम का परिसर १५ एकड़ में है, तब तो और ज्यादा था।
बूढ़ी महिला ने कहा, 'नहीं अब कोई तंग नहीं करेगा, आप यहीं रहें और राम मंदिर बनवाएं।
स्वामी प्रेमानन्द जी के मन में पहले से ही राम मंदिर का विचार चल रहा था। स्वामी जी भाव विह्वल थे, 'नहीं, मैं अब तंग हो गया हूं, अब जाऊंगा...।
किन्तु जब वह महिला चली गई, तो स्वामी जी को होश आया कि देखें समय क्या हो रहा है, तो रात्रि के २ बज रहे थे। वह स्थान शहर से १० से १२ किलोमीटर दूर था, उस समय संध्या को भी वहां कोई नहीं आता था। वे घूमकर खोजने लगे, कहां है वह महिला, किन्तु कहीं भी वह नहीं मिली।
प्रेरणा मिली, तो स्वामी प्रेमानन्द जी ने वहीं रुकने का निर्णय किया। उन्होंने राम मंदिर बनवाया। इस बात को अब ७० साल के करीब हो गए हैं। यह सब कथा मुझे वहां जाने पर सुनाई गई। यह नर्मदा जी का ही आश्रम है, तो मैंने निर्णय लिया, हम प्रयोग करें। मैंने भी श्रद्धा भक्ति से शुरुआत की और नर्मदा जी की पूजा में एक महीने का उत्सव किया। वैशाख मास में और रोज नर्मदा जी का पूजन, रोज साड़ी चढ़ाना, रोज देशी घी का हलवा, वहां दरिद्र नारायण भी बैठते हैं, अब तो उनका भोजन भी वहां होता है, प्रति दिन दरिद्र नारायण की सेवा होती है।
पहले भी नियम था आश्रम में कोई भी आए, तो चाय पिलाना है, भोजन देना है, तो वहां हमने बड़ा भंडार शुरू कर दिया, जो आए भोजन कराया जाए, इस देश में जहां भी हम भोजन की व्यवस्था करते हैं, सबसे बड़ा भोजनालय जबलपुर में ही है। नर्मदा जी के लिए मेरे अंदर गंगा जी के समान ही निष्ठा है, उसी निष्ठा के अनुरूप मैंने नर्मदा परिक्रमा की। परिक्रमा या प्रदक्षिणा भी पूजन का ही अंग है। पूजन जब होता है, तो ब्राह्मण यह वंदना करते हैं :
ú यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।
जो हमारे यहां पूजन की विधि है, उसका एक भाग प्रदक्षिणा है। इसका अर्थ है हमने सम्पूर्ण जीवन आपको अर्पित कर दिया, तभी आपके आगे-पीछे घूम रहे हैं। कहा जाता है कि वह उनके आगे पीछे घूमता है, इसका मतलब है कि पूर्ण समर्पित है। प्रदक्षिणा का अर्थ है पूर्ण सम्मान देना, पूर्ण रूप से उसके लिए समाहित हो जाना। भगवान की दया से हम लोग नर्मदा जी की पूजा परिक्रमा के लिए गए थे। इस परिक्रमा का अर्थ है, नर्मदा जी के लिए सम्पूर्ण समर्पण का भाव।
परिक्रमा के मार्ग पर प्रवचन भी होते थे, मैं रोज कुछ कहता था, यह भी कहता था कि परिक्रमा का अर्थ किसी के समग्र स्वरूप का दर्शन करना है। जैसे मैं आपको अभी एक कोण से देख रहा हूं, लेकिन जब परिक्रमा करने लगूंगा, तो आपकी बांह को भी देखूंगा, पीठ को भी देखूंगा, बालों को देखूंगा और जो भी अंग प्रत्यंग हैं, मतलब समग्रता दर्शन का एक प्रयास परिक्रमा है। समग्रता के साथ एक प्रयास परिक्रमा है। परिक्रमा का निवेदन है कि आप हम पर कृपा करें।
वैसे संसार में बहुधा आंशिक ही समर्पण हो पाता है। जैसे बीस-तीस प्रतिशत वोट पाकर भी नेता जीत जाता है, राजनीतिक दल सरकार बना लेते हैं, अब कभी किसी को सौ प्रतिशत वोट नहीं मिलता है। यह बात भी सच है कि सौ प्रतिशत लोग वोट भी नहीं डालते। वैसे मैं कहूंगा, लोगों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में वोट डालना चाहिए, ताकि सम्पूर्ण भाव या मानस का पता लगे। अभी अखबार वालों ने वोट के लिए बहुत प्रयास किए, वोट प्रतिशत राज्यों में भी बढ़ा और लोकसभा चुनाव में भी बढ़ा है। वोट का अर्थ समझना चाहिए। अंग्रेज जब थे, तो आपको कोई पूछता था क्या, लेकिन अब वोट का महत्व है, उससे आप सरकार चुनते हैं। जिसका चुनाव करना है, पूरा चुनाव कीजिए। सम्पूर्णता के साथ जब तक चयन नहीं होगा, तब तक बात नहीं बनेगी।
क्रमश:
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