प्रवचन - भाग - १
अद्भुत है गंगा का उद्गम स्थल, जहां से गंगा जी का प्राकट्य होता है, उनका प्रथम दर्शन होता है, जिसे हम लोग गोमुख बोलते हैं। इस जल के क्षय के युग में भी जब जल का स्वरूप संकुचित होता जा रहा है, उसके बावजूद वहां प्रवाह स्थल काफी बड़ा है, जहां से गंगा प्रकट होती है। वहां कोई मजबूत से मजबूत वस्तु टिक नहीं सकती, हाहाकार मचाती गंगा प्रकट होती हैं और उनका हाहाकार बढ़ते-बढ़ते कहां गोमुख से लेकर गंगोत्री और तमाम स्थलों को स्पर्श करते हुए, ऋषिकेश और हरिद्वार तक उसी रूप में गंगा सागर तक चलता है। नहरों के निकलने के कारण बीच-बीच में प्रवाह कुछ कम हुआ है, लेकिन बाद में गंगा बिहार पहुंचकर फिर बड़ी हो जाती हैं, उनका प्रवाह क्षेत्र बड़ा हो जाता है।
नर्मदा का जो उद्गम स्थल है, वह ऐसा हो गया है कि बूंद-बूंद जल गिरता है। लगता है, वह सूखता जा रहा है। वह सूखा पर्वत है, जहां से नर्मदा जी प्रकट हुई हैं। अमरकंटक में उस स्थल को देखकर निराशा हुई कि अगर यही स्थिति रहेगी, तो नर्मदा ज्यादा दिन नहीं रह पाएंगी। जहां लोग कुंड में स्नान करते हैं, वहां भी प्रवाह का स्वरूप बहुत शिथिल था। प्रदूषण से प्रभावित था। लोगों के स्नान से प्रभावित था। भगवान ही मालिक हैं, किन्तु हम लोगों ने बिना नाक-भौं सिकोड़े स्नान किया, क्योंकि हम पूर्ण श्रद्धाभाव से गए थे। यदि किसी की मां गोबर थापने वाली ही होंगी, तो क्या हुआ, है तो मां ही। जैसे किसी धनवान मां का बच्चा मां से प्यार करता है, ठीक उसी तरह से गरीब मां का बच्चा भी मां को वैसे ही प्यार करता है, दुलारता है, संवारता है।
मुझे यह भावना नहीं हो रही थी कि जल गंदा है, किन्तु यह चिंता जरूर हुई कि जिस व्यक्ति में नर्मदा मां के प्रति पूर्ण आस्था नहीं होगी, वह तो देखकर भडक़ जाएगा।
तो गंगा का जलीय स्वरूप नर्मदा से आज भी बड़ा है। जितने बड़े शहरों का निर्माण गंगा ने किया है, उतने बड़े क्षेत्र का निर्माण नर्मदा द्वारा नहीं हुआ है। गंगा के साथ आप आगे चलेंगे, तो ऋषिकेश का बड़ा स्वरूप है, हरिद्वार कुंभ क्षेत्र है। शुकताल एक बड़ा तीर्थ है, जहां शुकदेव जी ने परीक्षित को श्रीमद्भागवत कथा सुनाई थी। आगे कानपुर है, विशाल उद्योग नगरी है, आगे तीर्थराज प्रयाग है, काशी है, बक्सर है, जहां वाल्मीकि जी जैसे ऋषि थे, गौतम जी का आश्रम था, जहां अहल्या का राम जी ने उद्धार किया। आगे बढ़ते हुए गंगा पटना को आबाद कर रही हैं, बिहार का बड़ा शहर है, उसके बाद भागलपुर को आबाद करते हुए गंगा आगे बढ़ रही हैं। गंगा का जो मैदान है, वह एशिया का सबसे बड़ा उपजाऊ क्षेत्र माना जाता है। मध्य प्रदेश में चना-गेहूं अच्छे होने लगे, लेकिन जिस समृद्धि का निर्माण और भौतिक दृष्टि से संरक्षण देने का स्वरूप गंगा के माध्यम से हुआ, वह नर्मदा के माध्यम से नहीं हुआ है।
पहले मैं बाह्य स्वरूप में चर्चा कर रहा हूं। जितनी गंगा से नहरें निकलती हैं हरिद्वार से लेकर आगे तक। यदि काशी ज्ञान की बड़ी नगरी है, तो उसमें गंगा का बड़ा योगदान है, भगवान शंकर की जटा से वह निकली हैं, ऐसा विश्वास है हमारा। प्रयाग या इलाहाबाद में भगवान माधव, बक्सर में महा तीर्थ, पटना के तीर्थ। काशी यदि संसार की प्राचीनतम नगरी है, तो पाटलीपुत्र भी ऐतिहासिक नगरी है, जहां का राजा अशोक इतिहास का सबसे बड़ा राजा है। पाटलीपुत्र का ज्ञान जिसको नहीं है, वह मुंह बिचका लेता है कि पटना क्या होता है, लेकिन भारत का जो स्वर्ण युग है, मोर्य वंश, गुप्त वंश की राजधानी वहां थी। उन सभी अच्छाइयों में गंगा का योगदान है। चाणक्य की वह भूमि है, चाणक्य आधुनिक राजनीति को प्रेरणा देने वाले महापुरुष हैं। निश्चित रूप से गंगा की हवा, गंगा के अपने जलीय स्वरूप ने चाणक्य को भी प्रभावित किया होगा, गौतम बुद्ध को भी प्रभावित किया होगा, जैन धर्म के तीर्थंकरों को और आदि शंकराचार्य को भी प्रभावित किया होगा। शंकराचार्य को भी यहां आकर मंडन मिश्र जैसे शिष्य मिले। ज्ञान विज्ञान का जो विकास हुआ, वह बिहार में ही हुआ है और उसमें गंगा का योगदान है। सिख धर्म की शक्ति में भी गंगा का बड़ा योगदान रहा। पटना साहिब गंगा के किनारे ही स्थित है।
क्रमश:
अद्भुत है गंगा का उद्गम स्थल, जहां से गंगा जी का प्राकट्य होता है, उनका प्रथम दर्शन होता है, जिसे हम लोग गोमुख बोलते हैं। इस जल के क्षय के युग में भी जब जल का स्वरूप संकुचित होता जा रहा है, उसके बावजूद वहां प्रवाह स्थल काफी बड़ा है, जहां से गंगा प्रकट होती है। वहां कोई मजबूत से मजबूत वस्तु टिक नहीं सकती, हाहाकार मचाती गंगा प्रकट होती हैं और उनका हाहाकार बढ़ते-बढ़ते कहां गोमुख से लेकर गंगोत्री और तमाम स्थलों को स्पर्श करते हुए, ऋषिकेश और हरिद्वार तक उसी रूप में गंगा सागर तक चलता है। नहरों के निकलने के कारण बीच-बीच में प्रवाह कुछ कम हुआ है, लेकिन बाद में गंगा बिहार पहुंचकर फिर बड़ी हो जाती हैं, उनका प्रवाह क्षेत्र बड़ा हो जाता है।
नर्मदा का जो उद्गम स्थल है, वह ऐसा हो गया है कि बूंद-बूंद जल गिरता है। लगता है, वह सूखता जा रहा है। वह सूखा पर्वत है, जहां से नर्मदा जी प्रकट हुई हैं। अमरकंटक में उस स्थल को देखकर निराशा हुई कि अगर यही स्थिति रहेगी, तो नर्मदा ज्यादा दिन नहीं रह पाएंगी। जहां लोग कुंड में स्नान करते हैं, वहां भी प्रवाह का स्वरूप बहुत शिथिल था। प्रदूषण से प्रभावित था। लोगों के स्नान से प्रभावित था। भगवान ही मालिक हैं, किन्तु हम लोगों ने बिना नाक-भौं सिकोड़े स्नान किया, क्योंकि हम पूर्ण श्रद्धाभाव से गए थे। यदि किसी की मां गोबर थापने वाली ही होंगी, तो क्या हुआ, है तो मां ही। जैसे किसी धनवान मां का बच्चा मां से प्यार करता है, ठीक उसी तरह से गरीब मां का बच्चा भी मां को वैसे ही प्यार करता है, दुलारता है, संवारता है।
मुझे यह भावना नहीं हो रही थी कि जल गंदा है, किन्तु यह चिंता जरूर हुई कि जिस व्यक्ति में नर्मदा मां के प्रति पूर्ण आस्था नहीं होगी, वह तो देखकर भडक़ जाएगा।
तो गंगा का जलीय स्वरूप नर्मदा से आज भी बड़ा है। जितने बड़े शहरों का निर्माण गंगा ने किया है, उतने बड़े क्षेत्र का निर्माण नर्मदा द्वारा नहीं हुआ है। गंगा के साथ आप आगे चलेंगे, तो ऋषिकेश का बड़ा स्वरूप है, हरिद्वार कुंभ क्षेत्र है। शुकताल एक बड़ा तीर्थ है, जहां शुकदेव जी ने परीक्षित को श्रीमद्भागवत कथा सुनाई थी। आगे कानपुर है, विशाल उद्योग नगरी है, आगे तीर्थराज प्रयाग है, काशी है, बक्सर है, जहां वाल्मीकि जी जैसे ऋषि थे, गौतम जी का आश्रम था, जहां अहल्या का राम जी ने उद्धार किया। आगे बढ़ते हुए गंगा पटना को आबाद कर रही हैं, बिहार का बड़ा शहर है, उसके बाद भागलपुर को आबाद करते हुए गंगा आगे बढ़ रही हैं। गंगा का जो मैदान है, वह एशिया का सबसे बड़ा उपजाऊ क्षेत्र माना जाता है। मध्य प्रदेश में चना-गेहूं अच्छे होने लगे, लेकिन जिस समृद्धि का निर्माण और भौतिक दृष्टि से संरक्षण देने का स्वरूप गंगा के माध्यम से हुआ, वह नर्मदा के माध्यम से नहीं हुआ है।
पहले मैं बाह्य स्वरूप में चर्चा कर रहा हूं। जितनी गंगा से नहरें निकलती हैं हरिद्वार से लेकर आगे तक। यदि काशी ज्ञान की बड़ी नगरी है, तो उसमें गंगा का बड़ा योगदान है, भगवान शंकर की जटा से वह निकली हैं, ऐसा विश्वास है हमारा। प्रयाग या इलाहाबाद में भगवान माधव, बक्सर में महा तीर्थ, पटना के तीर्थ। काशी यदि संसार की प्राचीनतम नगरी है, तो पाटलीपुत्र भी ऐतिहासिक नगरी है, जहां का राजा अशोक इतिहास का सबसे बड़ा राजा है। पाटलीपुत्र का ज्ञान जिसको नहीं है, वह मुंह बिचका लेता है कि पटना क्या होता है, लेकिन भारत का जो स्वर्ण युग है, मोर्य वंश, गुप्त वंश की राजधानी वहां थी। उन सभी अच्छाइयों में गंगा का योगदान है। चाणक्य की वह भूमि है, चाणक्य आधुनिक राजनीति को प्रेरणा देने वाले महापुरुष हैं। निश्चित रूप से गंगा की हवा, गंगा के अपने जलीय स्वरूप ने चाणक्य को भी प्रभावित किया होगा, गौतम बुद्ध को भी प्रभावित किया होगा, जैन धर्म के तीर्थंकरों को और आदि शंकराचार्य को भी प्रभावित किया होगा। शंकराचार्य को भी यहां आकर मंडन मिश्र जैसे शिष्य मिले। ज्ञान विज्ञान का जो विकास हुआ, वह बिहार में ही हुआ है और उसमें गंगा का योगदान है। सिख धर्म की शक्ति में भी गंगा का बड़ा योगदान रहा। पटना साहिब गंगा के किनारे ही स्थित है।
क्रमश:
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