Saturday, 29 March 2014

मङ्गलाशासन

(महाराज की प्रवचन पुस्तिका में उनका परिचय मुनि समान आचार्य रामानुज देवनाथन जी की कलम से)   
आचार्य रामानुज देवनाथन जी


किं कारणं ब्रह्म कुतस्मजाता जीवाम केन क्व च सम्प्रतिष्ठा: ।
अधिष् िठता: केन सुखेतरेषु वर्तामहे ब्रह्मविदो व्यवस्थाम्।।
ते घ्यानयोगानुगता अपश्यन् देवात्मशक्तिं स्वगुणैर्निगूढ़ाम्।
सर्वाजीवे सर्वसंस्थे बृंहते तस्मिन्हंसो भ्राम्यते ब्रह्मचक्रे।।
पृथगात्मानं प्रेरितारं च मत्वा जुष्टस्ततस्तेनामृतत्वमेति।

इस वेदवाक्य का तात्पर्य है कि ब्रह्मविदों के द्वारा यह संशय प्रकट किया गया था कि इस जगत के कारण ब्रह्म क्या देवतारूप है? किस ब्रह्म से हमारे जन्म और स्थिति है? कहां पर हमारी प्रतिष्ठा है? किस ब्रह्म के अधीन होकर हम लोग कष्ट से भरा हुआ इस जन्म और सुव्यवस्था के अनुसार चलते हैं? वे ही ब्रह्मविद् लोग अपने ध्यानयोग से यह समाधान भी पाए हुए हैं कि अपहतपाप्मा दिव्यो देव एको नारायण: इति श्रुतिप्रसिद्ध देव कहे गए नारायण रूपी शक्ति जो कि ब्रह्म है, वही इन सबका अर्थात पूर्वोक्त प्रश्नों के कारण और समाधान है। इसी ब्रह्मचक्र में संसार में पर्यटन करने वाला हंस कहा गया यह जीव भी भ्रमण करता है। ऐसा ब्रह्म से भ्रमित होनेवाला अर्थात संसार में भ्रमित होने वाला जीव उसी ब्रह्म यानि परमात्मा से जुड़े रहने का प्रयास करता हुआ उस ब्रह्म से भक्ति के द्वारा युक्त होकर मुक्ति पाता है। यह श्वेताश्वतरोपनिषद् में दर्शाया गया जीवन्मुक्ति का मार्ग है। और छान्दोग्य उपनिषद् में कहा गया है कि सत्यं त्वेव विजिज्ञासितव्यमिति। सत्यं भगवो विजिज्ञास इति। . . . मतिं भगवो विजिज्ञास इति। . . . श्रद्धा भगवो विजिज्ञात इति।। तात्पर्य है कि सत्य पर अटल रहें, विज्ञान को जानें, ताकि सत्य पर अटल रह सकें, विज्ञान के लिए मति को जानें, इस मति को जानने के लिए श्रद्धा की आवश्यकता है। श्रद्धा के लिए निष्ठा की आवश्यकता है। निष्ठा के लिए कार्य करने की आवश्यकता है। कार्य करने से ही सुख मिलता है। इस प्रकार छान्दोग्य उपनिषद् आगे बढ़ता है।
इन उपनिषदों में कहे गए सत्य मार्ग पर उपदेश हमें कौन देगा? कौन हमें अच्छे मनुष्य बनाकर हमारा उद्धार करेगा? हम लोग कुमार्ग पर चलते हों, तो कौन हमें सच्चा मार्ग दिखाएगा? इन प्रश्नों का उत्तर है कि साधु और संन्यासी लोग हैं। इन संतों के उपदेश से ही हमारी प्रवृत्ति और हमारे व्यवहार में परिवर्तन सम्भव है। उन अच्छे और सच्चे संतों में अग्रगण्य हैं जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज। आप हैं संन्यास आश्रम के सही अनुपालना करने वाले संत शिरोमणि। शास्त्र पूर्ण उद्भट विद्वत्ता के साथ समझाने की उनकी विधि अतुलनीय है। अपनी रहस्यमयी और बोधगम्य वाणी से जब आप किसी भी विषय को समझाने लगते हैं, तो लगता है कि साक्षात व्यास जी हमारे सामने उपस्थित हो गए हैं। संन्यास आश्रम के अनुकूल शान्त और गुरु के अनुकूल गम्भीर होकर जब आप बोलते लगते हैं, तो सभी का इन के प्रति आकृष्ट होना स्वाभाविक है। ऐसे जगद्गुरु के कतिपय प्रवचनों के संग्रह के रूप में यह ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है। इससे जो लोग स्वामी जी के प्रवचन नहीं सुन पाए हैं, वे भी लाभान्वित होंगे। मेरा विश्वास है कि इस ग्रन्थ को पढक़र सभी लोग अच्छे और सच्चे मार्ग पर चलने लगेंगे।
इस ग्रन्थ के संपादक वरिष्ठ पत्रकार, चरित्र के धनी, धर्म के अनुयायी, मृदु और साधु भाषी, विद्या विनय संपन्न, संस्कार के आदर्श और सर्वोपरि श्री स्वामी जी के परम भक्त श्री ज्ञानेश उपाध्याय हैं। जिन्हें अकिंचन होते हुए भी वेदाध्ययन किया हूं कि अधिकार से आशीर्वाद देता हूं कि ये चिर काल इसी प्रकार धर्म, आध्यात्मिकता, गुरुसेवा और उत्तम राष्ट्र सेवा करते रहें। श्रीस्वामी जी के आशीर्वाद के पात्र होकर इसी विनय के साथ सीताराम की सेवा में लगे रहें।
अशेषविघ्नशमन अनीकेश्वर सबकी रक्षा करें।

इत्थं विदां वचनकर:
- रामानुजदेवनाथ:
(श्री रामानुज देवनाथन्, कुलपति, जगद्गुरु रामानंदाचार्य राजस्थान संस्कृत विश्वविद्यालय)
श्रीविजय-कटक-कृष्ण-एकादशी
रोहिणयुक्त शुक्रवार (२-८-२०१३)

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