भाग - ५
मैं कहता हूं, आंशिक समर्पण से काम नहीं चलेगा। पत्नी यदि पति के लिए सम्पूर्ण रूप से समर्पित हो जाए और पति यदि पत्नी के लिए सम्पूर्ण समर्पित हो जाए, तो राम राज्य आ जाएगा। ईश्वर के लिए सम्पूर्ण रूप से समर्पित होने की भी प्रक्रिया है कि हम उसका पैर भी धोएं, भोग लगाएं, वस्त्र दें, दक्षिणा भी दें, इत्र भी लगाएं और परिक्रमा भी करें। सम्पूर्ण प्रेम-भक्ति भाव व्यक्त करें।
जो ऊर्जावान पदार्थ होता है, वह प्रभावित करता है। दर्शन शास्त्र में पढ़ाया जाता है, वस्तु शक्ति को ज्ञान की जरूरत नहीं है। जैसे यह प्रकाश है, इसका आपको ज्ञान हो या नहीं हो, आपका अंधेरा तो दूर होगा। जो भी परिवर्तन स्वत: होने हैं, वो तो होंगे ही। वैसी ही ऊर्जावान नर्मदा जी ने असंख्य लोगों को धन्य जीवन दिया, जब उनके अगल-बगल में घूमेंगे, पूजन करेंगे, तो हमें भी पुण्य की प्राप्ति होगी, हमारे पाप नष्ट होंगे।
अब थोड़ी वेदांत की बात कर दूं। यहां सब कुछ ब्रह्म है, लेकिन ब्रह्म प्रकट नहीं है। एक बड़ा प्रसिद्ध वाक्य पढ़ाया जाता है शास्त्रों में - सर्वं खल्विदं ब्रह्म, सबकुछ ब्रह्म है, ब्रह्म द्वारा ही निर्मित है। जो कारण होता है, वह कार्य का व्यापक होता है। जहां-जहां कार्य रहेगा, कारण रहेगा ही। जहां-जहां घड़ा रहेगा, वहां-वहां मिट्टी रहेगी ही रहेगी।
न्याय शास्त्र की पहली पुस्तक - तर्कसंग्रह में लिखा है :-
कार्यनियतपूर्ववृत्ति कारणम् ।
भगवान से ही यह संसार बना है। सब ब्रह्ममय है, लेकिन ब्रह्म कहीं-कहीं उद्भुत है, प्रकट है। जैसे सब्जी में, चावल में। आम वही था, जो छोटा था, वही था, जब मंजर के रूप में था, आम वही था, जो वृक्ष में रस के रूप में था, लेकिन जब पक गया, बड़ा हो गया, आकर्षक आम हो गया। जैसे कोई आदमी जन्म लेता है बच्चा, तो द्विज नहीं है, ब्राह्मण नहीं है, उसका जो संस्कार हुआ, वह द्विज हो गया। उससे भी काम नहीं चलेगा, वह वेदाध्ययन करे, शास्त्रों को पढ़े, तब जाकर वह विद्वान होगा। ब्राह्मणत्व उद्भुत हो गया। तिल में तेल है, लेकिन उससे काम नहीं चलेगा। पकौड़ी बनेगी, तो सीधे सरसों से नहीं बनेगी। पकौड़ी तब बनेगी, जब सरसों से तेल उद्भुत हो जाएगा। सरसों को पेरा जाएगा, तभी तेल प्रकट होगा। वैसे ही ब्रह्म कहीं-कहीं उद्भुत है, बाकी सब जगह अनुद्भुत है।
नर्मदा इत्यादि नदियां भगवान का शरीर हैं। उपनिषद में लिखा है, जैसे भगवान हम लोगों की आत्मा का शरीर हैं, वैसे ही पूरा संसार भगवान का शरीर है, जल भी भगवान का शरीर है। किन्तु जल तो वह भी है, जो नाला में बह रहा है, जल तो वह भी है, जो भोजन बन रहे बर्तन में है, जल तो वह भी है, जिससे हम स्नान करते हैं और जल वह भी है, जो हमारे स्नान करके बाद बहता है। कुआं, तालाब इत्यादि में भी जल है, लेकिन जो जल कुछ नदियों में है, उन्हें ऋषियों ने देखा। इन नदियों का ब्रह्मत्व पूर्ण है, इनमें पाप नाशकत्व है, विलक्षण शक्ति है, शक्ति उद्भुत है, प्रकट है, इन्हीं नदियों को हम लोग पुण्य नदी कहते हैं। जिनमें पुण्यदायकता प्रकट हो गई है। ऋषियों ने देखा अनुभव किया, पुराणों में नदियों का वर्णन हुआ, यह कोई आम आदमी का चिंतन नहीं है। आम आदमी का चिंतन होता, तो कोई मानता क्या? अभी कोई रिक्शा चलाने वाला बोले कि बराक ओबामा ने सम्पूर्ण अमरीका ही भारत को दे दिया, तो लोग उसकी पिटाई ही कर देंगे।
एक साधु को झूठ बोलने का अभ्यास था, उन्होंने अपने भक्तों से एक दिन कहा, 'गाड़ी कोलकाता में उलट गई, बहुत लोग मर गए।
शिष्यों-भक्तों ने पूछा, 'अखबार कहां है?
तो वो साधु अखबार दिए कि इसमें लिखा है, किन्तु देते समय अखबार भी उलटा ही थमाए। अंग्रेजी का अखबार था, उस साधु को यही नहीं पता था कि सीधी लाइन कौन-सी है। झूठ बोल रहे थे।
भक्तों ने कहा, 'आप हमारे गुरु हैं, लेकिन ऐसी बात नहीं बोलनी चाहिए। आपको पता है कि सीधी लाइन कौन-सी है?
उत्तर मिला, 'मुझे नहीं पता, मैं अंग्रेजी पढ़ा हूं क्या, बेवकूफ कहीं का।
क्रमश:
मैं कहता हूं, आंशिक समर्पण से काम नहीं चलेगा। पत्नी यदि पति के लिए सम्पूर्ण रूप से समर्पित हो जाए और पति यदि पत्नी के लिए सम्पूर्ण समर्पित हो जाए, तो राम राज्य आ जाएगा। ईश्वर के लिए सम्पूर्ण रूप से समर्पित होने की भी प्रक्रिया है कि हम उसका पैर भी धोएं, भोग लगाएं, वस्त्र दें, दक्षिणा भी दें, इत्र भी लगाएं और परिक्रमा भी करें। सम्पूर्ण प्रेम-भक्ति भाव व्यक्त करें।
जो ऊर्जावान पदार्थ होता है, वह प्रभावित करता है। दर्शन शास्त्र में पढ़ाया जाता है, वस्तु शक्ति को ज्ञान की जरूरत नहीं है। जैसे यह प्रकाश है, इसका आपको ज्ञान हो या नहीं हो, आपका अंधेरा तो दूर होगा। जो भी परिवर्तन स्वत: होने हैं, वो तो होंगे ही। वैसी ही ऊर्जावान नर्मदा जी ने असंख्य लोगों को धन्य जीवन दिया, जब उनके अगल-बगल में घूमेंगे, पूजन करेंगे, तो हमें भी पुण्य की प्राप्ति होगी, हमारे पाप नष्ट होंगे।
अब थोड़ी वेदांत की बात कर दूं। यहां सब कुछ ब्रह्म है, लेकिन ब्रह्म प्रकट नहीं है। एक बड़ा प्रसिद्ध वाक्य पढ़ाया जाता है शास्त्रों में - सर्वं खल्विदं ब्रह्म, सबकुछ ब्रह्म है, ब्रह्म द्वारा ही निर्मित है। जो कारण होता है, वह कार्य का व्यापक होता है। जहां-जहां कार्य रहेगा, कारण रहेगा ही। जहां-जहां घड़ा रहेगा, वहां-वहां मिट्टी रहेगी ही रहेगी।
न्याय शास्त्र की पहली पुस्तक - तर्कसंग्रह में लिखा है :-
कार्यनियतपूर्ववृत्ति कारणम् ।
भगवान से ही यह संसार बना है। सब ब्रह्ममय है, लेकिन ब्रह्म कहीं-कहीं उद्भुत है, प्रकट है। जैसे सब्जी में, चावल में। आम वही था, जो छोटा था, वही था, जब मंजर के रूप में था, आम वही था, जो वृक्ष में रस के रूप में था, लेकिन जब पक गया, बड़ा हो गया, आकर्षक आम हो गया। जैसे कोई आदमी जन्म लेता है बच्चा, तो द्विज नहीं है, ब्राह्मण नहीं है, उसका जो संस्कार हुआ, वह द्विज हो गया। उससे भी काम नहीं चलेगा, वह वेदाध्ययन करे, शास्त्रों को पढ़े, तब जाकर वह विद्वान होगा। ब्राह्मणत्व उद्भुत हो गया। तिल में तेल है, लेकिन उससे काम नहीं चलेगा। पकौड़ी बनेगी, तो सीधे सरसों से नहीं बनेगी। पकौड़ी तब बनेगी, जब सरसों से तेल उद्भुत हो जाएगा। सरसों को पेरा जाएगा, तभी तेल प्रकट होगा। वैसे ही ब्रह्म कहीं-कहीं उद्भुत है, बाकी सब जगह अनुद्भुत है।
नर्मदा इत्यादि नदियां भगवान का शरीर हैं। उपनिषद में लिखा है, जैसे भगवान हम लोगों की आत्मा का शरीर हैं, वैसे ही पूरा संसार भगवान का शरीर है, जल भी भगवान का शरीर है। किन्तु जल तो वह भी है, जो नाला में बह रहा है, जल तो वह भी है, जो भोजन बन रहे बर्तन में है, जल तो वह भी है, जिससे हम स्नान करते हैं और जल वह भी है, जो हमारे स्नान करके बाद बहता है। कुआं, तालाब इत्यादि में भी जल है, लेकिन जो जल कुछ नदियों में है, उन्हें ऋषियों ने देखा। इन नदियों का ब्रह्मत्व पूर्ण है, इनमें पाप नाशकत्व है, विलक्षण शक्ति है, शक्ति उद्भुत है, प्रकट है, इन्हीं नदियों को हम लोग पुण्य नदी कहते हैं। जिनमें पुण्यदायकता प्रकट हो गई है। ऋषियों ने देखा अनुभव किया, पुराणों में नदियों का वर्णन हुआ, यह कोई आम आदमी का चिंतन नहीं है। आम आदमी का चिंतन होता, तो कोई मानता क्या? अभी कोई रिक्शा चलाने वाला बोले कि बराक ओबामा ने सम्पूर्ण अमरीका ही भारत को दे दिया, तो लोग उसकी पिटाई ही कर देंगे।
एक साधु को झूठ बोलने का अभ्यास था, उन्होंने अपने भक्तों से एक दिन कहा, 'गाड़ी कोलकाता में उलट गई, बहुत लोग मर गए।
शिष्यों-भक्तों ने पूछा, 'अखबार कहां है?
तो वो साधु अखबार दिए कि इसमें लिखा है, किन्तु देते समय अखबार भी उलटा ही थमाए। अंग्रेजी का अखबार था, उस साधु को यही नहीं पता था कि सीधी लाइन कौन-सी है। झूठ बोल रहे थे।
भक्तों ने कहा, 'आप हमारे गुरु हैं, लेकिन ऐसी बात नहीं बोलनी चाहिए। आपको पता है कि सीधी लाइन कौन-सी है?
उत्तर मिला, 'मुझे नहीं पता, मैं अंग्रेजी पढ़ा हूं क्या, बेवकूफ कहीं का।
क्रमश:
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