भाग - २
जब से सृष्टि हुई, ब्राह्मण कभी आगे नहीं आते थे, अपने शिष्यों को राज्य संचालन-संरक्षण के लिए शिक्षित, प्रशिक्षित और प्रेरित करते थे। पीछे से संपूर्ण शक्ति, ज्ञान का स्रोत, संपूर्ण व्यावहारिक संस्कारों का स्रोत, संपूर्ण हमदर्दी का स्रोत उनके पास होता था। वस्तुत: तो पुरोहित ही राजा होता था। राज्य में अकाल पड़ गया, तो पुरोहित ही समाधान करता था कि वर्षा कैसे होगी, किसी भी तरह के संकट के समय उपाय करता था, समाधान खोजता था।
रघुवंश के ही एक प्रतापी राजा दिलीप को संतति नहीं हो रही थी, तो वशिष्ठ जी ने कहा कि नंदिनी की सेवा करो, कामधेनु की बेटी है। कामधेनु का अपमान हो गया है, आप कहीं से आ रहे थे, रास्ते में कामधेनु थी, लेकिन आपने उनका सम्मान नहीं किया, इसी कारण आपका वंश रुक गया। उसके बाद वशिष्ठ के निर्देश के अनुसार, राजा ने नंदिनी की सेवा की। राजा स्वयं गाय चराने जा रहा है, विश्व के इतिहास में यह अनोखी घटना है कि दुनिया का सबसे प्रतापी राजा रोज गाय चराने जाता है, गाय खड़ी होती है, तो खड़ा होना, जहां जा रही हो, वहां जाना, हवा के समान उस गऊ का अनुसरण करना।
कितनी ऊर्जा थी कि किसी राजा को संतति चाहिए, तो पुरोहित को मालूम है कि क्यों संतति रुक गई। राजा को गऊ के पीछे लगा देना, गऊ की हर सेवा में अपने को समर्पित कर देना, उससे पुण्य की प्राप्ति होना, उससे पुत्र की प्राप्ति होना, यह कोई मामूली बात नहीं है। केवल पंचांग देखकर पूजा करवा देना ही पुरोहित का काम नहीं है।
मैंने पढ़ा है कि एक राजा ने वशिष्ठ जी के बिना ही यज्ञ करवा दिया, तो वशिष्ठ जी ने शापित कर दिया, अरे, मैं पुरोहित हूं, तुमने दूसरे पुरोहित से यज्ञ करवा लिया, मैं कहीं चला गया, तो तुम मेरी प्रतीक्षा न कर सके। उसे शापित करके मनुष्य योनि से वंचित कर दिया। बाद में लोगों ने उन्हें समझाया। तो इतनी शक्ति थी गुरु वशिष्ठ में। अनुग्रह और निग्रह की अपार शक्ति गुरु वशिष्ठ के पास थी, तो कहने का अर्थ यह है कि पुरोहित अपने जजमान का संपूर्ण ज्ञान, विज्ञान, सामाजिक आर्थिक विकास करता था, उसमें सहायक बनता है।
बहुत महत्वपूर्ण भूमिका गुरु वशिष्ठ की है। इस भूमिका का इतने लंबे समय तक उन्होंने निर्वाह किया। जिस वंश का विश्व में कितना बड़ा योगदान है, राम जी जिस वंश में हुए। ईश्वर अवतार लेता ही रहता है, अपनी सृष्टि की देखभाल करता है, जो कमी आ रही है, उसे दूर करना, साधुजनों का सम्मान करना, संरक्षण करना, साधुजनों को दिव्य लाभ देना। राम जी को सबल बनाने में वशिष्ठ जी का भी बहुत बड़ा योगदान है।
दशरथ जी की तीन रानियों को कोई संतति नहीं हो रही थी। सभी ओर से हतोत्साहित होकर, कहीं से जब उपाय नहीं दिखा, तब गुरु वशिष्ठ को कहा। तब गुरु ने कहा कि हां, आपको पुत्र की प्राप्ति होगी। फिर यज्ञ हुआ, तो राम जी आए, राम जी को प्रकट कराने के अन्य कई कारण हैं, अन्य कई भूमिकाएं हैं, कई लोगों को श्रेय मिलेगा, लेकिन मुख्य श्रेय गुरु वशिष्ठ को मिलेगा। यदि ईश्वर प्रगट होता है, तो कोई साधारण घटना नहीं होती। सुप्रीम पावर मनुष्य रूप में आए, यह कोई मामूली बात नहीं है। राम के रूप में ईश्वर सुप्रीम रूप में प्रगट हुए, इसका एक कारण वशिष्ठ भी थे, उनकी भूमिका अनुपम है।
उनका यज्ञ समाधान यज्ञ होता है। समाधान भी गुरु वशिष्ठ ने ही किया। उन्होंने दशरथ जी से कहा,
धरहु धीर होइहहिं सुत चारी। त्रिभुवन विदित भगत भय हारी।
उन्होंने कहा कि आपको चार पुत्र होंगे। स्वयं चरम शक्ति आपको पुत्र के रूप में प्राप्त होगी। किसी काल में वशिष्ठ जी ने ही राजा भगीरथ को ऐसे तैयार किया था कि वे गंगा को धरा पर लाने में समर्थ हो गए। वशिष्ठ जी के काल में जितनी महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, वो रामराज्य में सहायक बनीं। यदि ऐसा कहा जाए कि राम राज्य रूपी महल के संबल थे वशिष्ठ जी, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। रामजी जंगल जाते हैं १४ वर्ष तक भरत राज्य का संचालन करते हैं, भरत जी राम जी को मनाने जाते हैं, प्रजा के साथ गुरु वशिष्ठ भी जाते हैं और पूरा प्रयास करते हैं कि राम जी लौट आएं। लौटकर प्रजा को प्रसन्न करें, प्रजा दुखी हो रही है। भरत को ऐसा राज्य नहीं चाहिए। उसमें भी मुख्य भूमिका है वशिष्ठ जी की। यदि नहीं आते हैं राम, तो चरण पादुका का लाभ हुआ, तो बड़ी सांत्वना भरत जी को राम जी की ओर से मिल गई। उसी को सिंहासन पर प्रतिष्ठित करके भरत जी ने १४ वर्ष तक राज्य का संचालन किया, इस राज्य के मुख्य केन्द्र गुरु वशिष्ठ जी ही रहे। भरत जी तो नंदीग्राम में रहते थे और चरण पादुका और गुरु वशिष्ठ जी से आज्ञा मांगकर सलाह लेकर प्रेरणा लेकर, उनका भाव समझकर, उनके चरणों की छाया, उनके दिव्य व्यक्तित्व की छाया में संपूर्ण राज्य का संचालन करते थे। तो अभिप्राय यह है कि वशिष्ठ जी ने अपने ज्ञान-पुण्य प्रताप से रघुवंश को ऊंचाई पर पहुंचा दिया।
क्रमश:
जब से सृष्टि हुई, ब्राह्मण कभी आगे नहीं आते थे, अपने शिष्यों को राज्य संचालन-संरक्षण के लिए शिक्षित, प्रशिक्षित और प्रेरित करते थे। पीछे से संपूर्ण शक्ति, ज्ञान का स्रोत, संपूर्ण व्यावहारिक संस्कारों का स्रोत, संपूर्ण हमदर्दी का स्रोत उनके पास होता था। वस्तुत: तो पुरोहित ही राजा होता था। राज्य में अकाल पड़ गया, तो पुरोहित ही समाधान करता था कि वर्षा कैसे होगी, किसी भी तरह के संकट के समय उपाय करता था, समाधान खोजता था।
रघुवंश के ही एक प्रतापी राजा दिलीप को संतति नहीं हो रही थी, तो वशिष्ठ जी ने कहा कि नंदिनी की सेवा करो, कामधेनु की बेटी है। कामधेनु का अपमान हो गया है, आप कहीं से आ रहे थे, रास्ते में कामधेनु थी, लेकिन आपने उनका सम्मान नहीं किया, इसी कारण आपका वंश रुक गया। उसके बाद वशिष्ठ के निर्देश के अनुसार, राजा ने नंदिनी की सेवा की। राजा स्वयं गाय चराने जा रहा है, विश्व के इतिहास में यह अनोखी घटना है कि दुनिया का सबसे प्रतापी राजा रोज गाय चराने जाता है, गाय खड़ी होती है, तो खड़ा होना, जहां जा रही हो, वहां जाना, हवा के समान उस गऊ का अनुसरण करना।
कितनी ऊर्जा थी कि किसी राजा को संतति चाहिए, तो पुरोहित को मालूम है कि क्यों संतति रुक गई। राजा को गऊ के पीछे लगा देना, गऊ की हर सेवा में अपने को समर्पित कर देना, उससे पुण्य की प्राप्ति होना, उससे पुत्र की प्राप्ति होना, यह कोई मामूली बात नहीं है। केवल पंचांग देखकर पूजा करवा देना ही पुरोहित का काम नहीं है।
मैंने पढ़ा है कि एक राजा ने वशिष्ठ जी के बिना ही यज्ञ करवा दिया, तो वशिष्ठ जी ने शापित कर दिया, अरे, मैं पुरोहित हूं, तुमने दूसरे पुरोहित से यज्ञ करवा लिया, मैं कहीं चला गया, तो तुम मेरी प्रतीक्षा न कर सके। उसे शापित करके मनुष्य योनि से वंचित कर दिया। बाद में लोगों ने उन्हें समझाया। तो इतनी शक्ति थी गुरु वशिष्ठ में। अनुग्रह और निग्रह की अपार शक्ति गुरु वशिष्ठ के पास थी, तो कहने का अर्थ यह है कि पुरोहित अपने जजमान का संपूर्ण ज्ञान, विज्ञान, सामाजिक आर्थिक विकास करता था, उसमें सहायक बनता है।
बहुत महत्वपूर्ण भूमिका गुरु वशिष्ठ की है। इस भूमिका का इतने लंबे समय तक उन्होंने निर्वाह किया। जिस वंश का विश्व में कितना बड़ा योगदान है, राम जी जिस वंश में हुए। ईश्वर अवतार लेता ही रहता है, अपनी सृष्टि की देखभाल करता है, जो कमी आ रही है, उसे दूर करना, साधुजनों का सम्मान करना, संरक्षण करना, साधुजनों को दिव्य लाभ देना। राम जी को सबल बनाने में वशिष्ठ जी का भी बहुत बड़ा योगदान है।
दशरथ जी की तीन रानियों को कोई संतति नहीं हो रही थी। सभी ओर से हतोत्साहित होकर, कहीं से जब उपाय नहीं दिखा, तब गुरु वशिष्ठ को कहा। तब गुरु ने कहा कि हां, आपको पुत्र की प्राप्ति होगी। फिर यज्ञ हुआ, तो राम जी आए, राम जी को प्रकट कराने के अन्य कई कारण हैं, अन्य कई भूमिकाएं हैं, कई लोगों को श्रेय मिलेगा, लेकिन मुख्य श्रेय गुरु वशिष्ठ को मिलेगा। यदि ईश्वर प्रगट होता है, तो कोई साधारण घटना नहीं होती। सुप्रीम पावर मनुष्य रूप में आए, यह कोई मामूली बात नहीं है। राम के रूप में ईश्वर सुप्रीम रूप में प्रगट हुए, इसका एक कारण वशिष्ठ भी थे, उनकी भूमिका अनुपम है।
उनका यज्ञ समाधान यज्ञ होता है। समाधान भी गुरु वशिष्ठ ने ही किया। उन्होंने दशरथ जी से कहा,
धरहु धीर होइहहिं सुत चारी। त्रिभुवन विदित भगत भय हारी।
उन्होंने कहा कि आपको चार पुत्र होंगे। स्वयं चरम शक्ति आपको पुत्र के रूप में प्राप्त होगी। किसी काल में वशिष्ठ जी ने ही राजा भगीरथ को ऐसे तैयार किया था कि वे गंगा को धरा पर लाने में समर्थ हो गए। वशिष्ठ जी के काल में जितनी महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं, वो रामराज्य में सहायक बनीं। यदि ऐसा कहा जाए कि राम राज्य रूपी महल के संबल थे वशिष्ठ जी, तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। रामजी जंगल जाते हैं १४ वर्ष तक भरत राज्य का संचालन करते हैं, भरत जी राम जी को मनाने जाते हैं, प्रजा के साथ गुरु वशिष्ठ भी जाते हैं और पूरा प्रयास करते हैं कि राम जी लौट आएं। लौटकर प्रजा को प्रसन्न करें, प्रजा दुखी हो रही है। भरत को ऐसा राज्य नहीं चाहिए। उसमें भी मुख्य भूमिका है वशिष्ठ जी की। यदि नहीं आते हैं राम, तो चरण पादुका का लाभ हुआ, तो बड़ी सांत्वना भरत जी को राम जी की ओर से मिल गई। उसी को सिंहासन पर प्रतिष्ठित करके भरत जी ने १४ वर्ष तक राज्य का संचालन किया, इस राज्य के मुख्य केन्द्र गुरु वशिष्ठ जी ही रहे। भरत जी तो नंदीग्राम में रहते थे और चरण पादुका और गुरु वशिष्ठ जी से आज्ञा मांगकर सलाह लेकर प्रेरणा लेकर, उनका भाव समझकर, उनके चरणों की छाया, उनके दिव्य व्यक्तित्व की छाया में संपूर्ण राज्य का संचालन करते थे। तो अभिप्राय यह है कि वशिष्ठ जी ने अपने ज्ञान-पुण्य प्रताप से रघुवंश को ऊंचाई पर पहुंचा दिया।
क्रमश:
No comments:
Post a Comment