समापन भाग
हमें विश्वामित्र जी से प्रेरणा लेनी चाहिए। हम लडऩा भी जानते है और शास्त्रार्थ में पराजित करना भी जानते हैं। भारतीय संस्कृति में केवल पढऩा या शास्त्र तैयार करना ही पर्याप्त नहीं है। हम केवल ज्ञानवान नहीं हैं, हमारे पास धन भी रहना चाहिए। हमारे पास ज्ञान भी रहना चाहिए।
शक्ति होनी चाहिए कि आज जो भारत भूमि को लांछित कर रहा है, रामराज्य को लांछित कर रहा है, हम उन्हें निश्चित रूप से सबक सिखा दें, इस तरह का सामथ्र्य भी हमारे पास होना चाहिए, इसके लिए हमें विश्वामित्र जी से प्र्रेरणा लेनी चाहिए। विश्वामित्र जी हर दृष्टि से समर्थ रहे। हमारा जीवन अपने लिए, समाज, परिवार की रक्षा, संरक्षण के लिए होना चाहिए। हमारा जीवन मानवता के लिए वरदान होना चाहिए। ज्ञान भी चाहिए और शक्ति भी चाहिए और धर्म के माध्यम से चाहिए। विश्वामित्र जी ने अपने को ऐसा बनाया था कि आज भी हमें गौरव है। इस देश में वशिष्ठ और विश्वामित्र जैसे ऋषि-संत हमारे लिए प्रेरणा स्रोत हैं, उनका ज्ञान, उनका जीवन हमारे लिए आदर्श है, उनका इतिहास हमारे साथ है। भगवान से प्रार्थना है कि ऋषियों की प्रेरणा, उनका ज्ञान, उनकी नीति, उनके द्वारा किया गया प्रयोग सभी के जीवन में आए और हम लोग अपने देश, संसार, मानवता को सभी दृष्टि से लांछित होने से बचाएं। संतत्व को लांछित होने से बचाएं। गुरुत्व लांछित हो रहा है, भारत भूमि की वंदना लांछित हो रही है। धर्मज्ञान, अध्यात्म लांछित हो रहा है, हमें सुधार की दिशा में बढऩा ही चाहिए।
कितना प्रभाव था विश्वामित्र जी का जनकपुर में, अनेक राजा-महाराजा आए थे, कोई विश्वामित्र जी के साथ आंख नहीं मिला सकता था, जनक जी ने स्वयं को धन्य माना कि आप राम जी को लेकर आए। वशिष्ठ ने भी स्वयं को धन्य माना। कहीं कोई कमी नहीं है, दूसरों को सम्मान देने में स्नेह देने में। जब दो परिपूर्ण विभूतियां एक दूसरे के साथ सही ढंग से जुड़ेंगी, तभी तो समाज को लाभ होगा, नहीं तो समाज अपनी संपत्ति को खो देगा, बिखर जाएगा।
हमें ऋषियों से गौरव लेना है, ज्ञान लेना है, दिशा लेनी है। रामजी को परिपूर्ण जीवन मिला। गृहस्थ जीवन बिना दान-त्याग के अधूरा होता है। हम कह सकते हैं कि विश्वामित्र जी ने ही जानकी जी से राम जी का विवाह करवाया। यह भी अद्भुत घटना है। जनकपुर में रामजी हैं, उस विवाह में वशिष्ठ जी भी पहुंचते हैं, वहां विश्वामित्र जी पहले से हैं, कहीं कोई संतुलन नहीं बिगड़ता है। दोनों एक दूसरे के लिए भरपूर सम्मान रखते हैं, एक दूसरे का प्रभाव बढ़ाते हुए रामराज्य को सशक्त करते हैं। यदि हम इन ऋषियों से कुछ भी सीखते हैं, तो हमारा खोया हुआ जगतगुरुत्व, खोया हुआ जो संसार का नेतृत्व है, जो खोया हुआ हमारा वैभव है, वह हमें अवश्य प्राप्त हो जाएगा।
जय श्रीराम
हमें विश्वामित्र जी से प्रेरणा लेनी चाहिए। हम लडऩा भी जानते है और शास्त्रार्थ में पराजित करना भी जानते हैं। भारतीय संस्कृति में केवल पढऩा या शास्त्र तैयार करना ही पर्याप्त नहीं है। हम केवल ज्ञानवान नहीं हैं, हमारे पास धन भी रहना चाहिए। हमारे पास ज्ञान भी रहना चाहिए।
शक्ति होनी चाहिए कि आज जो भारत भूमि को लांछित कर रहा है, रामराज्य को लांछित कर रहा है, हम उन्हें निश्चित रूप से सबक सिखा दें, इस तरह का सामथ्र्य भी हमारे पास होना चाहिए, इसके लिए हमें विश्वामित्र जी से प्र्रेरणा लेनी चाहिए। विश्वामित्र जी हर दृष्टि से समर्थ रहे। हमारा जीवन अपने लिए, समाज, परिवार की रक्षा, संरक्षण के लिए होना चाहिए। हमारा जीवन मानवता के लिए वरदान होना चाहिए। ज्ञान भी चाहिए और शक्ति भी चाहिए और धर्म के माध्यम से चाहिए। विश्वामित्र जी ने अपने को ऐसा बनाया था कि आज भी हमें गौरव है। इस देश में वशिष्ठ और विश्वामित्र जैसे ऋषि-संत हमारे लिए प्रेरणा स्रोत हैं, उनका ज्ञान, उनका जीवन हमारे लिए आदर्श है, उनका इतिहास हमारे साथ है। भगवान से प्रार्थना है कि ऋषियों की प्रेरणा, उनका ज्ञान, उनकी नीति, उनके द्वारा किया गया प्रयोग सभी के जीवन में आए और हम लोग अपने देश, संसार, मानवता को सभी दृष्टि से लांछित होने से बचाएं। संतत्व को लांछित होने से बचाएं। गुरुत्व लांछित हो रहा है, भारत भूमि की वंदना लांछित हो रही है। धर्मज्ञान, अध्यात्म लांछित हो रहा है, हमें सुधार की दिशा में बढऩा ही चाहिए।
कितना प्रभाव था विश्वामित्र जी का जनकपुर में, अनेक राजा-महाराजा आए थे, कोई विश्वामित्र जी के साथ आंख नहीं मिला सकता था, जनक जी ने स्वयं को धन्य माना कि आप राम जी को लेकर आए। वशिष्ठ ने भी स्वयं को धन्य माना। कहीं कोई कमी नहीं है, दूसरों को सम्मान देने में स्नेह देने में। जब दो परिपूर्ण विभूतियां एक दूसरे के साथ सही ढंग से जुड़ेंगी, तभी तो समाज को लाभ होगा, नहीं तो समाज अपनी संपत्ति को खो देगा, बिखर जाएगा।
हमें ऋषियों से गौरव लेना है, ज्ञान लेना है, दिशा लेनी है। रामजी को परिपूर्ण जीवन मिला। गृहस्थ जीवन बिना दान-त्याग के अधूरा होता है। हम कह सकते हैं कि विश्वामित्र जी ने ही जानकी जी से राम जी का विवाह करवाया। यह भी अद्भुत घटना है। जनकपुर में रामजी हैं, उस विवाह में वशिष्ठ जी भी पहुंचते हैं, वहां विश्वामित्र जी पहले से हैं, कहीं कोई संतुलन नहीं बिगड़ता है। दोनों एक दूसरे के लिए भरपूर सम्मान रखते हैं, एक दूसरे का प्रभाव बढ़ाते हुए रामराज्य को सशक्त करते हैं। यदि हम इन ऋषियों से कुछ भी सीखते हैं, तो हमारा खोया हुआ जगतगुरुत्व, खोया हुआ जो संसार का नेतृत्व है, जो खोया हुआ हमारा वैभव है, वह हमें अवश्य प्राप्त हो जाएगा।
जय श्रीराम
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