धर्म के ज्ञान से ही व्यक्ति को जीने की कला आती है.
Saturday, 31 December 2022
जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज
।। श्री श्री सीताराम चन्द्राभ्यां नमः।।
Dev Deepawali and Ramanandacharya Swami Sriramnareshacharya ji
Hajara, Panchganga Ghaat, Varanasi
A trip to this holy land at this time of the year is an enlightening experience. With the ghats all lit up with thousands of lights and tiny diyas that are set afloat down river in honour of Kartik Poornima, also called Dev Deepavali or the Deepavali of gods, has pilgrims from across the world flock this landscape for contemplation in order to find the light within.
Swami Ramnareshacharya who heads the Shri Math, credited for reintroducing the festival of Dev Deepavali in the 1980s and giving it the shape that we recognise says, “The festivals in India start from Sharad Purnima and Dev Deepawali is the culmination of all festivals. Diyas are lit along the banks to welcome the gods and mark their descent on earth.” From - Hindustan Times
जगदगुरु रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज
रामजी का युद्ध सत्य की रक्षा के लिए था, सत्ता के लिए नहीं। आज जो भी युद्ध हो रहे हैं, सत्ता पाने के लिए हो रहे हैं। सत्य के लिए युद्ध कोई नहीं करता। सत्य हारता नहीं, लेकिन परेशान अवश्य होता है। राम ने रावण का वध लंका का राज्य पाने के लिए नहीं किया, उन्होंने तो रावण की सत्ता भी विभीषण को सौंप दी थी। सीता सेवा है तो राम वैराग्य। लक्ष्मण ज्ञान है और हनुमान चेतना। यदि हमारा शरीर पंचवटी जैसा होगा, तो ही मन, बुद्धि और चित्त में अहंकार का प्रवेश नहीं हो पाएगा। हनुमान जैसी भक्ति और शक्ति ही राक्षसी प्रवृत्तियों का नाश करने में सक्षम होगी।
Friday, 18 November 2022
Tuesday, 8 November 2022
श्रीमठ में देव दीपावली
काशी में देव दीपावली के भव्य आयोजन की शुरुआत 1985 में पंचगंगा घाट से ही हुई थी। यह वही घाट है, जहां रामानंदाचार्य संप्रदाय का मूल श्रीमठ विराजमान है।
वैसे तो बनारस के घाटों पर रोज ही सैंकड़ों दीये जलते हैं, लेकिन देव दीपावली मनाने की शुरुआत नई है। आखिर क्यों मनाई जाती है देव दीपावली?
पुराणों के अनुसार, बताया जाता है कि त्रिपुरासुर राक्षस का आतंक तीनों लोकों में बहुत बढ़ गया था। देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर का अंत कर दिया। वह त्रिपुरारि कहलाए। इससे प्रसन्न होकर देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था। तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली का विधान रहा है।
वर्तमान रामानंदाचार्य जगद्गुरु स्वामी श्रीरामनरेशाचार्य जी महाराज के नेतृत्व में पंचगंगा घाट पर संपूर्ण भक्ति भाव से पूजन करते हुए देव दीपावली का आयोजन होता है। श्रीमठ में ऐतिहासिक महत्व का हजारा स्थित है, जिस पर देव दीपावली के अवसर पर एक साथ हजार दीप प्रज्ज्वलित किए जाते हैं।